बुधवार, 31 जुलाई 2013

प्रेमचंद जयंती पर विशेष

मिट्ठू

प्रेमचंद

बंदरों के तमाशे तो तुमने बहुत देखे होंगे। मदारी के इशारों पर बंदर कैसी-कैसी नकलें करता है, उसकी शरारतें भी तुमने देखी होंगी। तुमने उसे घरों से कपड़े उठाकर भागते देखा होगा। पर आज हम तुम्हें एक ऐसा हाल सुनाते हैं, जिससे मालूम होगा कि बंदर लड़कों से भी दोस्ती कर सकता है।
कुछ दिन हुए लखनऊ में एक सरकस-कंपनी आयी थी। उसके पास शेर, भालू, चीता और कई तरह के और भी जानवर थे। इनके सिवा एक बंदर मिट्ठू भी था। लड़कों के झुंड-के-झुंड रोज इन जानवरों को देखने आया करते थे। मिट्ठू ही उन्हें सबसे अच्छा लगता। उन्हीं लड़कों में गोपाल भी था। वह रोज आता और मिट्ठू के पास घंटों चुपचाप बैठा रहता। उसे शेर, भालू, चीते आदि से कोई प्रेम न था। वह मिट्ठू के लिए घर से चने, मटर, केले लाता और खिलाता। मिट्ठू भी उससे इतना हिल गया था कि बगैर उसके खिलाए कुछ न खाता। इस तरह दोनों में बड़ी दोस्ती हो गयी।
एक दिन गोपाल ने सुना कि सरकस कंपनी वहां से दूसरे शहर में जा रही है। यह सुनकर उसे बड़ा रंज हुआ। वह रोता हुआ अपनी मां के पास आया और बोला, ''अम्मा, मुझे एक अठन्नी1 दो, मैं जाकर मिट्ठू को खरीद लाऊं। वह न जाने कहां चला जायेगा! फिर मैं उसे कैसे देखूंगा ? वह भी मुझे न देखेगा तो रोयेगा।''
मां ने समझाया, ''बेटा, बंदर किसी को प्यार नहीं करता। वह तो बड़ा शैतान होता है। यहां आकर सबको काटेगा, मुफ्त में उलाहने सुनने पड़ेंगे।'' लेकिन लड़के पर मां के समझाने का कोई असर न हुआ। वह रोने लगा। आखिर मां ने मजबूर होकर उसे एक अठन्नी निकालकर दे दी। अठन्नी पाकर गोपाल मारे खुशी के फूल उठा। उसने अठन्नी को मिट्टी से मलकर खूब चमकाया, फिर मिट्ठू को खरीदने चला। लेकिन मिट्ठू वहां दिखाई न दिया। गोपाल का दिल भर आया-मिट्ठू कहीं भाग तो नहीं गया ? मालिक को अठन्नी दिखाकर गोपाल बोला, ''क्यों साहब, मिट्टू को मेरे हाथ बेचेंगे ?''

मालिक रोज उसे मिट्ठू से खेलते और खिलाते देखता था। हंसकर बोला, ''अबकी बार आऊंगा तो मिट्ठू को तुम्हें दे दूंगा।''
गोपाल निराश होकर चला आया और मिट्ठू को इधर-उधर ढूँढ़ने लगा। वह उसे ढूंढ़ने में इतना मगन था कि उसे किसी बात की खबर न थी। उसे बिलकुल न मालूम हुआ कि वह चीते के कठघरे के पास आ गया था। चीता भीतर चुपचाप लेटा था। गोपाल को कठघरे के पास देखकर उसने पंजा बाहर निकाला और उसे पकड़ने की कोशिश करने लगा। गोपाल तो दूसरी तरफ ताक रहा था। उसे क्या खबर थी कि चीते का पंजा उसके हाथ के पास पहुंच गया है! करीब था कि चीता उसका हाथ पकड़कर खींच ले कि मिट्ठू न मालूम कहां से आकर उसके पंजे पर कूद पड़ा और पंजे को दांतों से काटने लगा। चीते ने दूसरा पंजा निकाला और उसे ऐसा घायल कर दिया कि वह वहीं गिर पड़ा और जोर-जोर से चीखने लगा।
मिट्ठू की यह हालत देखकर गोपाल भी रोने लगा। दोनों का रोना सुनकर लोग दौड़े, पर देखा कि मिट्ठू बेहोश पड़ा है और गोपाल रो रहा है। मिट्ठू का घाव तुरंत धोया गया और मरहम लगाया गया। थोड़ी देर में उसे होश आ गया। वह गोपाल की ओर प्यार की आंखों से देखने लगा, जैसे कह रहा हो कि अब क्यों रोते हो? मैं तो अच्छा हो गया!
कई दिन मिट्ठू की मरहम-पट्टी होती रही और आखिर वह बिल्कुल अच्छा हो गया। पाल अब रोज आता और उसे रोटियां खिलाता।
आखिर कंपनी के चलने का दिन आया। गोपाल बहुत रंजीदा था। वह मिट्ठू के कठघरे के पास खड़ा आंसू-भरी आंखों से देख रहा था कि मालिक ने आकर कहा, ''अगर तुम मिट्ठू को पा जाओ तो उसका क्या करोगे ?''
गोपाल ने कहा, ''मैं उसे अपने साथ ले जाऊंगा, उसके साथ-साथ खेलूंगा, उसे अपनी थाली में खिलाऊंगा, और क्या!''
मालिक ने कहा, ''अच्छी बात है, मैं बिना तुमसे अठन्नी लिए ही इसे तुम्हारे हाथ बेचता हूं।''

गोपाल को जैसे कोई राज मिल गया। उसने मिट्ठू को गोद में उठा लिया, पर मिट्ठू नीचे कूद पड़ा और उसके पीछे-पीछे चलने लगा। दोनों खेलते-कूदते घर पहुंच गये।

मंगलवार, 30 जुलाई 2013

हिंदी विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रो.ए.अरविंदाक्षन को हिंदी रत्न सम्मान

महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा के प्रतिकुलपति तथा सुपरिचित साहित्‍यकार प्रो. ए. अरविंदाक्षन को हिंदी भवन न्‍यास समिति, नई दिल्‍ली का ‘हिंदी रत्‍न सम्‍मान’ घोषित हुआ है। प्रो. अरविंदाक्षन को यह पुरस्‍कार एक अगस्‍त को नई दिल्‍ली में हिंदी भवन द्वारा हिंदी भवन सभागार में आयोजित एक विशेष समारोह में प्रदान किया जाएगा। पुरस्‍कार स्‍वरुप प्रशस्ति पत्र, शाल, रजत श्रीफल, प्रतीक चिन्‍ह के रूप में सरस्‍वती की प्रतिमा तथा एक लाख रुपये की सम्‍मान राशि प्रदान की जाएगी।
     यह सम्‍मान राजर्षि टंडनजी की जयंती के उपलक्ष्‍य में प्रतिवर्ष 1 अगस्‍त को हिंदी सेवी पंडित भीमसेन विद्यालंकार की स्‍मृति में ऐसे हिंदी प्रेमी को दिया जाता है, जिसकी मातृभाषा हिंदी न हो तथा जिसने साहित्‍य, भाषा और कला के माध्‍यम से हिंदी के उन्‍नयन में विशिष्‍ट योगदान दिया हो। प्रो. अरविंदाक्षन की मलयालम, हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में 50 से भी अधिक पुस्‍तकें प्रकाशित हुईं हैं।  



शुक्रवार, 26 जुलाई 2013

श्री रामानन्द सरस्वती पुस्तकालय जोकहरा की प्रेरणास्रोत थीं श्रीमती सरस्वती राय

इलाहाबाद के बुद्धिजीवियों और संस्‍कृतिकर्मियों द्वारा भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई

महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के कुलपति मा. विभूति नारायण राय की मां सरस्‍वती देवी के निधन पर इलाहाबाद के बुद्धिजीवियों, साहित्‍यकारों और संस्‍कृतिकर्मियों द्वारा भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई। श्रीमती सरस्‍वती राय जीवन भर नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा और ज्ञान का आधार स्‍तम्‍भ रहीं। श्रीमती राय ने अपने पैतृक गांव जोकहरा में श्री रामानन्‍द सरस्‍वती पुस्‍तकालय की स्‍थापना में महत्‍वपूर्ण भूमिका अदा की। यह पुस्‍तकालय आज पूर्वांचल में ज्ञान के प्रचार-प्रसार में संलग्‍न है। उल्‍लेखनीय है कि छियासी वर्ष की उम्र में वर्धा में हृदयगति रुकने से दिनांक 12 जुलाई 2013 को वे दिवंगत हुईं। इलाहाबाद में श्रद्धांजलि सभा में उनके चारों पुत्र श्री प्रकाश नारायण राय, श्री विभूति नारायण राय, श्री विकास नारायण राय, श्री प्रदीप नारायण राय तथा उनकी पुत्री श्रीमती शशिबाला सहित परिवारीजन एवं अनेक नज़दीकी आत्‍मीयजन उपस्थित थे। श्रद्धांजलि सभा में स्‍थानीय साहित्‍यकारों में प्रमुख रूप से दूधनाथ सिंह, अजित पुष्‍कल, रामजी राय, राजेन्‍द्र कुमार, मीना राय, सचिन तिवारी, हरिश्‍चन्‍द्र पाण्‍डेय, असरार गांधी, इम्तियाज गाज़ी, जयकृष्‍ण राय तुषार, रविनन्‍दन सिंह, अशोक सिद्धार्थ, राजलक्ष्‍मी वर्मा, ए.ए. फातमी, श्रीप्रकाश मिश्र, हिमांशु रंजन, सुरेन्‍द्र राही, जे.पी. मिश्र, यू.एस. राय, सुधांशु मालवीय, अविनाश मिश्र, अनुपम आनन्‍द, फखरूल करीम, नीलम शंकर, अनिल रंजन भौमिक, संदीप भार्गव, विनोद शुक्‍ल ने दिवंगत सरस्‍वती देवी के चित्र पर पुष्‍प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी


बुधवार, 24 जुलाई 2013

निजी एवं सार्वजनिक जीवन में खुले चरित्र का निर्माण चाहते थे प्रेमचंद- दूधनाथ सिंह

हिंदी वि.वि. के इलाहाबाद केंद्र में प्रेमचंद की रचनाओं पर हुई गोष्‍ठी

महाजनी सभ्यताऔर मंगलसूत्रप्रेमचंद की अंतिम दौर की रचनाऍं हैं। महाजनी सभ्यता के दो महत्वपूर्ण सूत्र हैं- पहला समय ही धन हैऔर दूसरा विजनेस इज बिजनेस। यह निबंध प्रेमचंद ने मध्य वर्ग के चरित्र की गिरावट की पूर्व संध्या में लिखा। पहले सूत्र का सार तत्व है-लूट और दूसरे सूत्र का तात्पर्य मानवीय संबंधों का क्षरण है। सन् 1936 तक प्रेमचंद हृदय परिवर्तन कराते हैं, निहित स्वार्थ को छोड़ना सिखाते हैं, वर्ग संघर्ष की जगह वर्ग समन्वय की बात करते हैं, औपनिवेशिक दासता से मुक्ति में सभी की भागीदारी होना जरूरी मानते हैं। निजी और सार्वजनिक जीवन में खुले चरित्र का निर्माण चाहते हैं। मंगलसूत्रसंबंधों के क्षरण की कथा है। मध्यवर्ग का समझौतावादी चरित्र उजागर होता है इस रचना में। सोवियत यूनियन की एकता ही प्रेमचंद का मंगलसूत्र है। उक्त बातें मुख्य अतिथि के तौर पर हिंदी विश्‍वविद्यालय के आवासीय लेखक वरिष्‍ठ कथाकार दूधनाथ सिंह ने महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा के इलाहाबाद क्षेत्रीय केंद्र द्वारा आयोजित कार्यक्रम महाजनी सभ्यता और मंगलसूत्र के हवाले से देश की बातमें कहीं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्‍ठ कथाकार एवं विश्‍वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय ने कहा कि इन दोनों रचनाओं को फिर से पढ़ने का मौका मिला और मैंने पाया कि प्रेमचंद अपनी दोनों रचनाओं में एक सैद्धांतिकी गढ़ रहे थे, प्रेमचंद में विचार और करूणा दोनों का समन्वय था। प्रेमचंद अपने लेखन के विकास क्रम में अंत में काफी कुछ बदलाव महसूस कर रहे थे, अंत में कुछ बदल रहा था। पूंजीवाद की गहरी समझ उनमें थी। पूंजीवाद गहरे संकट में था। समाजवाद में उन्हें आशा की किरण दिखाई दे रही थी, वे अपने अंतिम दौर में गांधीवाद से मुक्त होकर वैज्ञानिक चेतना की ओर अग्रसर हो रहे थे।
मुख्य वक्ता इतिहासकार लालबहादुर वर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा कि, पूंजीवाद केवल अर्थव्यवस्था नहीं वह सभ्यता भी है। शासितों को यथासंभव वश में रखना उसकी नियति है। जन की मानसिकता को बदलना और उनमें अजनबियत बढ़ाना उसका कार्य-व्यापार है। मार्क्स का कहना था कि बेहतर समाज से बेहतर इंसान पैदा होता है। किंतु पूंजीवादी व्यवस्था समाज को ही भ्रष्‍ट करती है। दिशाहीन करती है। अपनी दुर्दशा और वंदना से हम संतुष्‍ट होते जा रहे हैं। पूंजीवाद का नारा है कि दुनिया विकल्पहीन हो गयी है। हम सब बाजार में खड़े हैं। हमसे हमारी निजता खोती जा रही है और प्रेमचन्द ने संकेत किया है कि पूंजीवादी व्यवस्था से ज्यादा खतरनाक है महाजनी सभ्यता। पूंजीवादी व्यवस्था राजा बालिकी तरह है जो दुश्‍मनों की आधी ताकत छीन लेता है।
अन्य वक्ता कथाकार श्री शकील सिद्दीकी ने कहा कि प्रेमचंद के चिंतन का फलक विराट है। उनके दृष्टिकोण और सरोकार में अंतरराष्‍ट्रीयता है। कार्पोरेट संस्कृति में समय ही धन है, चरितार्थ हो रहा है। वही महाजनी सभ्यता का बीज वक्तव्य है। प्रो.ए.ए. फातमी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि आज दौलत की हुकुमत है। कबीर और गालिब भी कभी बाजार की बात करते थे, किन्तु उनके सरोकार भिन्न थे।
कार्यक्रम की शुरूआत में कार्यक्रम के संयोजक एवं क्षेत्रीय केंद्र के प्रभारी प्रो.संतोष भदौरिया ने कहा कि भूमंडलीकरण के इस कठिन दौर में संवेदनहीनता बढ़ रही है। बाजार संचालित व्यवस्था में हम सभी बाजार में खड़े कर दिए गए हैं। इस बाजार का किसी भी देश के आवाम से कोई आत्मीय रिश्‍ता नहीं होता है। बोलो तुम क्या-क्या खरीदोगे की तर्ज पर यह समस्त दुनिया को भ्रमित कर अपना स्वार्थ साध रहा है। ऐसे वक्त में प्रेमचंद की दोनों रचनाएँ हमें कुछ रास्ता सुझा सकती हैं।
कार्यक्रम का संयोजन, संचालन व धन्यवाद ज्ञापन क्षेत्रीय केंद्र के प्रभारी प्रो. संतोष भदौरिया द्वारा किया गया। क्षेत्रीय निदेशक पीयूष पातंजलि ने अतिथियों का स्वागत किया।

गोष्ठी में प्रमुख रूप से ज़िया भाई, सतीश अग्रवाल, सुधांशु मालवीय, मार्तण्ड सिंह, असरार गांधी, बी.एन.सिंह, मीना राय, अशोक सिद्धार्थ, अनीता गोपेश, रविनंदन सिंह, अनिल रंजन भौमिक, विवेक सत्यांशु, नीलम शंकर, हरीशचन्द पाण्डेय, जयकृष्‍ण राय तुषार, नन्दल हितैषी, फखरूल करीम, जेपी मिश्रा, अविनाश मिश्र, श्रीप्रकाश मिश्र, हितेश कुमार सिंह, इम्तियाज अहमद गाज़ी, नीलाभ राय, पूर्णिमा मालवीय, फज़ले हसनैन, सुनीता, सत्येन्द्र सिंह, शिवम सिंह सहित तमाम साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे।

समाजसेवा राजनीति का मुखौटा है – डॉ. शम्‍सूल इस्लाम

हिंदी विवि के संचार एवं मीडिया अध्ययन केंद्र में व्याख्यान

राजनीति आज पूँजीपतियों के हाथ का खिलौना बन गया है। राजनीति करनेवाले समाजसेवा का मुखौटा पहनकर दोनों हाथों से देश की जनता को लूट रहे है, पूँजीपति और राजनीति करनेवाले दोनों जनता को लूटने के लिए ऐसी प्रक्रिया को बनाते है कि जनता खुद समझ ही नहीं पाती की उनका शोषण कहाँ और कैसे हो रहा है, उक्त विचार राजनीति के विख्यात विद्वान तथा दिल्ली विश्‍वविद्यालय के प्रो. डॉ शम्‍सूल इस्लाम ने व्यक्त किए।

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय वर्धा के संचार एवं मीडिया अध्ययन केंद्र द्वारा राजनीति, मीडिया और धर्मनिरपेक्षता विषय पर आयोजित व्याख्यान में छात्रों को उदबोधन देते समय वे बोल रहे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता केंद्र के निदेशक प्रो. अनिल के राय ने की । डॉ शम्‍सूल इस्लाम ने राजनीति, मीडिया और धर्मनिरपेक्षता इस तीनों मुद्दों पर अपने स्पष्ट विचार रखे। उन्होंने  धर्मनिरपेक्षता पर सारे धर्म को ही कठघरे में खड़ा किया और इसपर पुन: विवेचना करने की बात कहीं । उन्होंने धर्म को सिर्फ़ उन्माद तो धर्मनिरपेक्षता को लालिपाप बताया। मीडिया को उन्होंने पमरिया का तीसरा रूप कहकर मीडिया के सकारात्मक पहलू पर प्रकाश डालते हुए मीडिया को अंधेरे में एकमात्र रौशनी कहाँ। अपने अध्यक्षीय उदबोधन में प्रो. अनिल के राय ने राजनीति, मीडिया और धर्मनिरपेक्षता इस विषय पर और गहरे अध्ययन की बात कहकर समाज के हर आदमी को अपना निर्णय स्वयं लेने की क्षमता विकसित करने की जरूरत पर ज़ोर दिया। कार्यक्रम में केंद्र के संकाय सदस्य डॉ धरवेश कठेरिया, डॉ अख़्तर आलम, संदीप वर्मा, राजेश लेहकपुरे, रेणु सिंह, अंजनी राय सहित केंद्र छात्र-छात्रएं भारी संख्या में उपास्थित थे।

गुरुवार, 18 जुलाई 2013

बंगाल के बुद्धिजीवियों ने शोक जताया


पश्चिम बंगाल के बुद्धिजीवियों ने महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति विभूतिनारायण राय की मां सरस्वती देवी के निधन पर शोक जताया है।
महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कोलकाता केंद्र में मंगलवार को आयोजित शोक सभा में नेपाल के महावाणिज्यदूत चंद्रकुमार घिमेरे, कोलकाता विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डा. राम आह्लाद चौधरी, सन्मार्ग के संपादक हरिराम पांडेय, प्रभात खबर के स्थानीय संपादक तारकेश्वर मिश्र, दैनिक जागरण के संपादकीय प्रभारी रवि प्रकाश, कथाकार सेराज खान बातिश, लेखक-अनुवादक सुशील कांति, भोजपुरी साहित्यकार हरेंद्र पांडेय, समाजवादी चिंतक राजेंद्र राय, शिक्षाविद अखिलेश्वर शर्मा, मंगलेश्वर राय, सुषमा त्रिपाठी, जयप्रकाश मिश्र, डा. मुकेश कुमार, बांग्ला के वरिष्ठ पत्रकार स्नेहांशु अधिकारी व सुकुमार मित्र, हिंदी विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर तथा कोलकाता केंद्र के प्रभारी डा. कृपाशंकर चौबे तथा सहायक क्षेत्रीय निदेशक डा. प्रकाश त्रिपाठी ने दो मिनट मौन रखकर दिवंगत सरस्वती देवी को श्रद्धांजलि अर्पित की। 

दिनेश कुशवाह में विलक्षण नागरिक बोधः दामोदर मिश्र


बीसवीं शताब्दी की सांध्यवेला में हिंदी में जो कवि तेजी से उभरे, उनमें दिनेश कुशवाह अन्यतम हैं। यह कहना है आलोचक डा. दामोदर मिश्र का। डा. मिश्र महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कोलकाता केंद्र में पाखी के जून अंक में प्रकाशित दिनेश कुशवाह की कविता उजाले में अजानबाहु पर आयोजित अंतरंग संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। श्री मिश्र ने कहा कि दिनेश कुशवाह अपनी इस कविता में नई सामाजिक व राजनीतिक चेतना और नया सौंदर्यबोध लेकर आते हैं। वे गहरे अर्थ में प्रतिबद्ध कवि हैं और उनकी प्रतिबद्धता की जड़ें ठेठ भारतीय आबोहवा और जमीन में हैं। दिनेश कुशवाह में विलक्षण नागरिक बोध है। वह बोध एक ऐसी संस्कृति है जो रक्त में दौड़ती है और भीतरी संघर्ष का पर्यावरण रचती है। इस तरह जीवन के पक्ष में बने रहकर अपने लिखे जाने के बाद भी तात्पर्यपूर्ण बनी रहती है।
मिश्र ने कहा कि दिनेश की कविता संपूर्ण जीवन की कविता है। वे साधारण की असाधारणता को खोजते हैं। दिनेश कुशवाह की कविता उनका पक्ष है जो गैर बराबरी, अन्याय और शोषण का शिकार हैं। गैर बराबरी, अन्याय तथा शोषण का प्रतिरोध करते हुए हाशिए को लोगों से दिनेश कुशवाह अपना सरोकार जोड़ते हैं। अपने समय के उलझावों को पहचानने और उससे सामना करने का विलक्षण साहस दिनेश कुशवाह ने इस कविता में दिखाया है। उनकी कविता में कठिन समय में भी जीवन का प्रसार है। बीज वक्तव्त देते हुए डा. कृपाशंकर चौबे ने कहा कि दिनेश कुशवाह की इस कविता का स्थापत्य उनकी पूर्ववर्ती कविताओं से अलग है। दिनेश कुशवाह की कविता समय और सन्दर्भ के साथ संबंध रखने वाली सभी सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक प्रवृत्तियों का समुच्चय है। भूमंडलीकरण के इस दौर में जब भोगा हुआ यथार्थ की जगह बदला हुआ यथार्थ है और वह यथार्थ भयावह फैंटेसी में तब्दील हो रहा है,  ऐसे में दिनेश कुशवाह की कविता सर्वहारा के पक्ष में गवाही है।
हिंदी भाषा साहित्य के प्राध्यापक, लेखक व अनुवादक डा. सत्यप्रकाश तिवारी ने कहा कि दिनेश कुशवाह के लिए कविता न सिर्फ रचने-बचने का एक मात्र सहारा है, बल्कि मननशील मनुष्य होने तथा एक-दूसरे को निकट लाने की आश्वस्ति तथा संभावना भी है। उन्होंने कहा कि दिनेश कुशवाह की अप्रतिम कलात्मक कोशिश उन्हें एक अलग काव्य व्यक्तित्व प्रदान करती है। उनके यहां जीवन, प्रकृति और जगत के पुनर्सृजन की जितनी मौलिक चेष्टा दिखती है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। संगोष्ठी के बाद दूसरे सत्र में बर्दवान विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डा. विद्याधर मिश्र से डा. हरिश्चंद्र मिश्र व अन्य ने संवाद किया।

गुरुवार, 4 जुलाई 2013

हिंदी विवि में 12 करोड़ की लागत से बनेगा संग्रहालय

महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा में 12 करोड़ की लागत से अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर का म्‍यूजियम बनाया जा रहा है। विश्‍वविद्यालय परिसर स्थित गांधी हिल में स्‍वामी सहजानंद सरस्‍वती संग्रहालय (म्‍यूजियम) के भवन का शिलान्‍यास करते हुए कुलपति विभूति नारायण राय ने कहा कि यह संग्रहालय ज्ञान-विज्ञान के उन्‍नयन में मील का पत्‍थर साबित होगा। उन्‍होंने आशा जताई कि संग्रहालय में बहुमूल्‍य सांस्‍कृतिक विरासत को सहेजकर रखा जाएगा निश्चित रूप से यहॉं शोधार्थी सर्जनात्‍मक ऊर्जा से एक बेहतर समाज के निर्माण में अपनी महती भूमिका निभाऍंगे। शिलान्‍यास समारोह के दौरान संग्रहालय के प्रभारी प्रो.देवराज, विशेष कर्तव्‍याधिकारी नरेन्‍द्र सिंह, भवन समिति के सदस्‍य डॉ.आर.जी.बैस, उ.प्र.समाज कल्‍याण निर्माण निगम लि.वर्धा के अधिशासी अभियंता कालिका प्रसाद प्रमुखता से उपस्थित थे।
     
उल्‍लेखनीय है कि म्‍यूजियम की उच्‍च तकनीक युक्‍त दो मंजिला इमारत दो लिफ्टों से युक्‍त होगी। साथ ही इसके आकर्षण का केंद्र स्‍वचालित सीढि़यॉं भी होंगी। विश्‍वविद्यालय परिसर का स्‍थापत्‍य प्राकृतिक सौन्‍दर्य के अनुरूप है। विश्‍वविद्यालय परिसर में चहुँओर ईको-फ्रेंडली निर्माण कार्य किया जा रहा है।
प्रतिकुलपति, वित्‍ताधिकारी, प्रोफेसर, पुस्‍तकालयाध्‍यक्ष आदि के 56 आवासों का भी शिलान्‍यास कुलपति श्री राय ने किया। अज्ञेय संकुल के समीप नवनिर्मित ट्रांजिट हॉस्‍टल में 24 कर्मियों को आवास दिए जाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। पिछले चार-पांच वर्षों में विश्‍वविद्यालय के स्‍वरूप में काफी परिवर्तन आया है। यहॉं अकादमिक गुणवत्‍ता के साथ इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चरल डेवलपमेंट का कार्य काफी तीव्र गति से हो रहा है। जहॉं उत्‍तरी परिसर में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू जैसे परिवर्तनकामी क्रांतिकारियों के नाम पर छह सौ कमरे के तीन पुरुष छात्रावास बनाये जा रहे हैं वहीं दक्षिणी परिसर में सावित्रीबाई फुले महिला छात्रावास के समीप रोज़ा लक्‍ज़ेमबर्ग के नाम पर एक महिला छात्रावास का निर्माण किया जाएगा।

कुलपति श्री राय ने उत्‍तरी परिसर के विकास कार्य को तेजी से करने के लिए आर.सी.सी.सड़क मार्ग का भी शिलान्‍यास किया। विश्‍वविद्यालय के दक्षिणी परिसर में सीवरेज ट्रीटमेंट प्‍लांट लगाया गया है जिससे सीवर का पानी शुद्ध होकर पौधों की सिचाई में काम आएगा। उत्‍तरी परिसर में भी सीवरेज ट्रीटमेंट प्‍लांट लगाया जा रहा है। मेजर ध्‍यानचंद खेल परिसर के समीप महाकवि निराला के नाम पर एक हजार क्षमता वाले ऑडिटोरियम का निर्माण कार्य काफी तेजी से हो रहा है। ऑडिटोरियम का शिलान्‍यास विश्‍व‍विद्यालय के कुलाधिपति प्रो.नामवर सिंह द्वारा फरवरी में किया गया था।

हिंदी विवि में क्षमता निर्माण कार्यक्रम का समापन

शोध को विवेक और तर्क की कसौटी पर परखें : विभूति नारायण राय



शोध एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। शोध में सुधार की सबसे अधिक गुंजाइश रहती है। अपने शोध को स्‍तरीय बनाने के लिए उसे विवेक और तर्क की कसौटी पर परखा जाए। उक्‍त उदबोधन महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय ने दिये। वे विश्‍वविद्यालय में भारतीय सामाजिक अनुसंधान परिषद के सहयोग से आयोजित क्षमता निर्माण कार्यक्रम के समापन समारोह की अध्‍यक्षता कर रहे थे। भाषा विद्यापीठ के सभागार में चौदह दिवसीय कार्यक्रम का समापन सोमवार को हुआ। इस अवसर पर जाने माने चिंतक एवं सामाजिक कार्यकर्ता गौहर रजा प्रमुखता से उपस्थित थे।
कुलपति राय ने समाज विज्ञान में शोध की महत्‍ता को आरेखित करते हुए कहा कि समाज विज्ञान में अपने समय का महत्‍व बहुत अधिक है। हमारा समय एक अदभूत समय है। इस समय में परिवर्तन की आंधी सी चल रही है। जिससे धर्म, परिवार और राष्‍ट्र राज्‍य इन तीनों संस्‍थाओं को झकझोर कर रख दिया है। इन तीनों संस्‍थाओं के परंपरागत गढ़ को हमारे समय में आए परिवर्तनों ने ध्‍वस्‍त कर दिया है। यह बदलाव पिछले पचास वर्षों में आया है। हमारे समय की पहली पीढ़ी को इस पर विश्‍वास करना कठीन हो सकता है। उन्‍होंने कहा कि शोध कर्ताओं को चाहिए की वे इस यथार्थ को पकड़कर अपने शोध को पुख्‍ता बनाएं। कुलपि‍त राय ने कहा कि शोध करते समय परंरागत सोच को दूर रखकर वस्‍तुनिष्‍ठ प्रतिफल निकाले जाए। इस बात का जरूर ध्‍यान रखा जाना चाहिए की वस्‍तुनिष्‍ठता के अभाव में गलत शोध प्रस्‍तुत न हो।  इस अवसर पर कुलपति राय द्वारा सभी प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र प्रदान किए गए। इस दौरान गौहर रजा ने पॉवर प्‍वाइंट प्रेजेंटेशन के माध्‍यम से समाज में बराबरी लाने के लिए साइंटिफिक टेंपर का प्रदर्शन किया। समाज में विज्ञान की पहुंच आसान बनाने के लिए विज्ञान शिक्षक को बढ़ावा देना चाहिए। उन्‍होंने शोधकर्ताओं से अपील की कि विश्‍लेषण के सांस्‍कृतिक मॉडल का उपयोग कर विज्ञान और आम आदमी में आए सांस्‍कृतिक अंतर को पाटने की जरूरत पर बल दिया। अपने विद्वतापूर्ण वक्‍तव्‍य में शोध प्रविधि की विभिन्‍न पद्धतियों को समझाया। कार्यक्रम का संचालन दूर शिक्षा के सहायक प्रोफेसर अमरेंद्र कुमार शर्मा ने किया तथा धन्‍यवाद ज्ञापन कार्यक्रम के संयोजक तथा दूर शिक्षा निदेशालय के क्षेत्रीय निदेशक रवींद्र बोरकर ने प्रस्‍तुत किया।
इस अवसर पर प्रो. अनिल कुमार राय, प्रो. रामशरण जोशी, प्रो. देवराज, क्षेत्रीय निदेशक डॉ. जयप्रकाश राय, डॉ. अनवर अहमद सिद्दीकी, डॉ. वीरपाल यादव, डॉ. सतीश पावडे, डॉ. विधु खरे दास, डॉ. चित्रा माली, डॉ. राजीव रंजन राय, डॉ. आर. पी. यादव, सुरजीत कुमार सिंह, राकेश मिश्र, डॉ. रयाज हसन, सह संयोजक अमित राय, डॉ. धनजंय सोनटक्‍के, दूर शिक्षा के सहायक प्रोफेसर शैलेश कदम मरजी, डॉ. रवी कुमार, मुन्‍नालाल गुप्‍ता, डॉ. प्रियराज महेशकर, डॉ. एन. एच. खोडे आदि सहित विभिन्‍न महाविद्यालयों के प्रतिभागी उपस्थित थे।