मंगलवार, 29 अप्रैल 2014

हिंदी विवि और कलकत्ता विवि संयुक्त पाठ्यक्रम चलाएंगेः प्रो. गिरीश्वर मिश्र




नेपाली साहित्य हिंदी में लाएगा हिंदी विविः कुलपति ने नेपाल के महावाणिज्यदूत से कहा

महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय और कलकत्ता विश्वविद्यालय ने चुनिंदा विषयों में संयुक्त पाठ्यक्रम प्रारंभ करने का फैसला किया है। दोनों विश्वविद्यालयों के कुलपतियों ने एक बैठक में यह महत्वपूर्ण निर्णय किया। बैठक में महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र ने प्रारंभ में साइबर पत्रकारिता तथा तुलनात्मक साहित्य के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम संयुक्त रूप से चलाए जाने का प्रस्ताव दिया जिसे कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुरंजन दास ने तत्काल स्वीकार कर लिया। प्रो. दास ने बताया कि संयुक्त पाठ्यक्रमों के प्रमाण पत्रों पर दोनों विश्वविद्यालयों के परीक्षा नियंत्रकों तथा कुलपतियों के दस्तखत होंगे। संयुक्त पाठ्यक्रमों के बारे में एक एमओयू पर दोनों कुलपति जल्द ही हस्ताक्षर करेंगे।

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र, कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुरंजन दास को हिंदी विवि द्वारा प्रकाशित किताबों का सेट भेंट करते हुए।
महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र ने बताया कि संयुक्त पाठ्यक्रम के अलावा उनके विश्वविद्यालय के कोलकाता केंद्र में हिंदी (तुलनात्मक साहित्य) में एमफिल तथा अनुवाद में स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम इसी सत्र से शुरू होंगे। वेब पत्रकारिता का पाठ्यक्रम पहले से ही चल रहा है। प्रो. गिरीश्वर मिश्र ने भविष्य के पाठ्यक्रमों पर विचार –विमर्श के लिए कोलकाता केंद्र में नेपाल के महावाणिज्य दूत चंद्र कुमार घिमिरे, यादवपुर विश्वविद्यालय की प्राध्यापिका डा. सुतापा सेनगुप्त, कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डा. राम आह्लाद चौधरी तथा संस्कृत विभाग के सहायक आचार्य डा. कमल किशोर मिश्र के साथ भी बैठक की।
प्रो. गिरीश्वर मिश्र ने कहा कि हिंदी में नेपाली तथा पूर्वोत्तर की 53 जनजातीय भाषाओं  के साहित्य की कमी को दूर करने के लिए उनका विश्वविद्यालय अनुवाद कर उन भाषाओं के साहित्य को हिंदी में प्रकाशित करेगा। बैठकों के पूर्व प्रो. गिरीश्वर मिश्र ने कोलकाता केंद्र में भाषा और संस्कृति के अंतर्संबंध पर व्याख्यान देते हुए कहा कि भाषा संप्रेषण का काम तो करती ही है, हमारे अनुभवों को रचने का काम भी करती है। भाषा अमूर्त को भी गढ़ देती है। उन्होंने सोदाहरण बताया कि भाषा और संस्कृति में अन्योन्याश्रित संबंध है।  
कुलपति ने कोलकाता केंद्र द्वारा संचालित वेब पत्रकारिता के विद्यार्थियों-नेहा गुप्ता, सोनी कुमारी सिंह, फातिमा कनीज, अम्बरीन अरशद, विनय कुमार प्रसाद, अभिषेक शर्मा, अमित राय, जया तिवारी, करुणा गुप्ता और उपेंद्र शाह द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर भी दिए।
व्याख्यान के आरंभ में कोलकाता केंद्र के सहायक क्षेत्रीय निदेशक तथा 'वचन' के संपादक डा. प्रकाश नारायण त्रिपाठी ने पुस्तक भेंट कर कुलपति का स्वागत किया। कोलकाता केंद्र के प्रभारी डा. कृपाशंकर चौबे ने धन्यवाद ज्ञापन किया।











सौंदर्यशास्त्र को हिंदुस्तानी नजरिए से देखें – प्रो. नामवर सिंह



हिंदी विश्‍वविद्यालय में दिया ‘भारतीय और पाश्‍चात्‍य सौंदर्यशास्‍त्र का स्‍वरूप’ विषय पर व्‍याख्‍यान

प्रख्‍यात आलोचक प्रो. नामवर सिंह ने कहा है कि सौंदर्यशास्‍त्र की परिभाषा करने के संदर्भ में भारतीय काव्‍य शास्‍त्रीय चिंतन को आधार बनाना बहुत जरूरी है। इस चिंतन के आधार पर ही सौंदर्यशास्‍त्र संपूर्णता में परिभाषित हो सकता है। प्रो. सिंह महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के सृजन विद्यापीठ में बुधवार को ‘भारतीय और पाश्‍चात्‍य सौंदर्यशास्‍त्र का स्‍वरूप’ विषय पर व्‍याख्‍यान दे रहे थे। कार्यक्रम की अध्‍यक्षता विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. गिरीश्‍वर मिश्र ने की। समारोह में कुलपति द्वारा आठ साल तक विश्‍वविद्यालय के कुलाधिपति रहे प्रो. नामवर सिंह को प्रशस्ति पत्र एवं एलबम भेटकर सम्‍मानित किया।
प्रो. नामवर सिंह ने कहा कि सौंदर्यशास्‍त्र को जीवन से जोड़कर देखने की जरूरत है। ऐसा करके ही हम सौंदर्यशास्‍त्र संबंधी चिंतन में आए गतिरोध को दूर कर सकते हैं।
अध्‍यक्षीय उदबोधन में कुलपति प्रो. गिरीश्‍वर मिश्र ने कहा, सौंदर्यशास्‍त्र संवेदना और आस्‍वादन पर विचार करने वाला विषय है। जटिल जीवन में सौंदर्यशास्‍त्र की परिधि व्‍यापक होनी चाहिए। सृजन विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. सुरेश शर्मा ने कहा कि प्रो. नामवर सिंह ने पिछले 65 वर्षों में सौंदर्यशास्‍त्र को परिभाषित करने के लिए लगातार प्रयास किए हैं। उन्‍होंने नामवर जी के महत्‍वपूर्ण उद्धरण प्रस्‍तुत कर सौंदर्य संबंधी उनकी अवधारणा स्‍पष्‍ट की। विदित हो कि भारतीय एवं पाश्‍चात्‍य कला एवं सौंदर्यशास्‍त्र पाठ्यक्रम के प्रारूप का निर्माण डॉ. शिवप्रिय ने विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग को प्रस्‍तुत किया था और इस कार्यक्रम को विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग ने अनुमोदित कर विभाग की स्‍थापना हेतु वित्‍तीय सहायता प्रदान की थी।
कार्यक्रम के दौरान कला आयाम के संयोजक ज्‍योतिष पायेंग द्वारा प्रो. नामवर सिंह का बनाया पोट्रेट कुलपति प्रो. मिश्र ने प्रो. सिंह का भेट किया। प्रो. नामवर सिंह का स्‍वागत प्रो. संतोष भदौरिया विजयपाल पांडे, भारतीय एवं पाश्‍चात्‍य कला एवं सौंदर्यशास्‍त्र पाठ्यक्रम के सहायक संयोजक डॉ. शिपप्रिय, अविचल गौतम ने पुष्‍पगुच्छ देकर किया। कार्यक्रम का संचालन प्रो. सुरेश शर्मा ने किया तथा आभार कुलसचिव प्रो. देवराज ने माना। इस अवसर पर वित्‍ताधिकारी संजय गवई, अधिष्‍ठाता प्रो. मनोज कुमार, प्रो. सूरज पालीवाल, प्रो. हनुमान प्रसाद शुक्‍ल, प्रो. अनिल कुमार राय, प्रो. के. के. सिंह, राजेंद्र मुंढे सहित अध्‍यापक, अधिकारी, शोधार्थी एवं छात्र बड़ी संख्‍या में उपस्थित थे।

सोमवार, 31 मार्च 2014

हिंदी विश्वविद्यालय में दो-दिवसीय अनुवाद कार्यशाला का समापन

महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय का दूर शिक्षा निदेशालय और साने गुरूजी राष्‍ट्रीय स्‍मारक ट्रस्‍ट, मुंबई के संयुक्‍त तत्‍वावधान में विश्‍वविद्यालय में आयोजित दो दिवसीय (दि. 28 एवं 29 मार्च) को आयोजित अनुवाद कार्यशाला का समापन हबीब तनवीर सभागार में शनिवार को हुआ। समापन समारोह में दूर शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो. मनोज कुमार, आंतरभारती अनुवाद सुविधा केंद्र की अध्‍यक्ष प्रो. पुष्‍पा भावे, इंडिया इंटरनेशनल मल्‍टीव्‍हर्सिटी, पुणे के कुलपति प्रो. प्रमोद तलगेरी तथा प्रख्‍यात अनुवादक प्रो. नीरजा मंचस्‍थ थे।
समापन वक्‍तव्‍य में प्रो. पुष्‍पा भावे ने कहा, अनुवाद करते समय मूल लेखक और पाठ के बीच अनुवादक का रिश्‍ता होना चाहिए। जब तक अनुवादक को किसी भी दो भाषाओं का ज्ञान नहीं होता तब तक प्रमाणिक अनुवाद नहीं हो सकता। उन्‍होंने सांस्‍कृतिक शब्‍दों के अनुवाद में आने समस्‍याओं को भी समझाया। प्रो. मनोज कुमार ने अनुवाद करते समय अपने विवेक का उपयोग करने की सलाह दी और कहा कि ज्ञान के विस्‍तार के लिए अनुवाद के माध्‍यम से प्रयास होने चाहिए।

समापन समारोह में कार्यशाला में सहभागी प्रतिभागियों को अतिथियों के द्वारा प्रमाण पत्र प्रदान किये गये। समारोह का संचालन सहायक प्रोफेसर संदीप सपकाले ने किया तथा धन्‍यवाद ज्ञापन सहायक प्रोफेसर अमरेंद्र कुमार शर्मा ने प्रस्‍तुत किया। कार्यशाला के संयोजक सहायक प्रोफेसर शैलेश मरजी कदम ने सभी अतिथि तथा प्रतिभागियों को कार्यशाला में सहभागिता करने के लिए धन्‍यवाद दिया। समारोह में विश्‍वविद्यालय के अध्‍यापक, शोधार्थी, विभिन्‍न स्‍थानों से आए प्रतिभागी तथा विद्यार्थी बड़ी संख्‍या में उपस्थित थे। 

मंगलवार, 25 मार्च 2014

हिंदी विश्वविद्यालय में चीन के प्रतिनिधिमंडल का स्वागत




महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय में चीन के शनयाड विश्‍वविद्यालय से आये प्रतिनिधि मंडल का स्‍वागत कुलपति प्रो. गिरीश्‍वर मिश्र की अध्‍यक्षता में गुरूवार को आयोजित एक समारोह में किया गया। इस अवसर पर भाषा विद्यापीठ के कार्यवाहक अधिष्‍ठाता प्रो. देवराज, विदेशी शिक्षण प्रकोष्‍ठ के प्रभारी प्रो. हनुमान प्रसाद शुक्‍ल, भाषा विद्यापीठ के पूर्व अधिष्‍ठाता उपाशंकर उपाध्‍याय प्रमुखता से उपस्थित थे। चीन के शनयाड विश्‍वविद्यालय से तीन सदस्‍यों का एक प्रतिनिधि मंडल विश्‍वविद्यालय में आया जिसमें चीन के अंतरराष्‍ट्रीय शिक्षा महाविद्यालय के अध्‍यक्ष तथा अंतरराष्‍ट्रीय सहयोग कार्यालय के उपाध्‍यक्ष फंग शूएकांग, अंतरराष्‍ट्रीय शिक्षा महाविद्यालय की उपनिर्देशक सुश्री चीन शूएली और कन्‍फयूसिएस संस्‍थान कार्यालय की अनुवादक सुश्री हू पो शामिल हैं।

     
भाषा विद्यापीठ के सभागार में आयोजित समारोह में प्रतिनिधि मंडल का स्‍वागत कुलपति प्रो. गिरीश्‍वर मिश्र ने शाल, पुष्‍पगुच्‍छ एवं सूत की माला प्रदान कर किया। इस अवसर पर कुलपति प्रो. मिश्र ने प्रतिनिधि मंडल को बताया कि विश्‍वविद्यालय में अन्‍य पाठ्यक्रमों के साथ विदेशी भाषा के पाठ्यक्रम भी चल रहे हैं। उन्‍होंने अपनी बीजिंग यात्रा के दौरान आए अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि चीन का विकास पूरे विश्‍व को अपनी ओर आकर्षित करता है। भारत और चीन एशिया की दो महान सभ्‍येतावाले देश हैं। उन्‍होंने आशा व्‍यक्‍त की कि शनयाड विश्‍वविद्यालय के साथ साझा समझौते के माध्‍यम से हम एशिया की सभ्‍यताओं को और निकट ला सकेंगे। चीन के प्रतिनिधि मंडल ने एक दूसरे के साथ सहयोग तथा अध्‍यापक एवं छात्रों के लिए आदान-प्रदान कार्यक्रम चलाने की मंशा व्‍यक्‍त की। उन्‍होंने अपने विश्‍वविद्यालय की गतिविधियां एवं विस्‍तार की चर्चा भी की।

कार्यक्रम का संचालन सहायक प्रोफेसर रवि कुमार ने किया तथा धन्‍यवाद ज्ञापन प्रो. विजय कौल ने प्रस्‍तुत किया। इस दौरान डॉ. अनिल कुमार पांडे, प्रो. जगदीप दांगी, सहायक प्रोफेसर अनिर्बान घोष, धनजी प्रसाद, आराधना सक्‍सेना, सन्‍मति जैन, बी. एस. मिरगे तथा छात्र प्रमुखता से उपस्थित थे।