बुधवार, 28 नवंबर 2012


मेहनतकश से लगाव के बिना आंदोलन करना असंभव  : प्रदीप सक्सेना

आज पूरी दुनिया एक ध्रुवीय हो गई है। अमेरिका को दुनिया में जहां भी लाभ दिखता है, वहां वह सभी तरह की नीतियों में हस्तक्षेप कर अपनी बात मनवाता है। पहले हम साम्राज्‍यवादी ताकतों के सामने लड़ने को तत्‍पर रहते थे पर आज नव साम्राज्‍यवाद में कुछ छिपी ताकतें हमारे दिलों पर राज करती हैं। हम उनके रहन-सहन, खान-पान आदि को अपपाने के लिए लालायित रहने लगे हैं। उपभोक्‍तावादी दौर में हमारा लगाव मेहनतकश मजदूरों, किसानों के साथ नहीं रह गया है। हम नव साम्राजयवाद के खिलाफ चाहें जितनी भी जनांदोलन की बात कर लें, मेहनतकश मजदूरों व किसानों से लगाव के बिना कोई आंदोलन नहीं हो सकता है।
उक्‍त विचार साहित्‍यकार प्रदीप सक्‍सेना ने रखे। वे जोकहरा स्थित श्री रामानंद सरस्‍वती पुस्‍तकालय में नव साम्राज्‍यवाद और प्रगतिशील आंदोलन की भूमिका विषय पर आयोजित विचार गोष्‍ठी में बीज वक्‍तव्‍य देते हुए बोल रहे थे। महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय,वर्धा के कुलपति विभूति नारायण राय की प्रमुख उपस्थिति में कार्यक्रम की अध्‍यक्षता प्रलेस के महासचिव राजेन्‍द्र राजन ने की।
अध्‍यक्षीय वक्‍तव्‍य में साहित्‍यकार राजेन्‍द्र राजन ने कहा कि डॉ. रामविलास शर्मा 1953 तक प्रगतिशील लेखक संघ के राष्‍ट्रीय महासचिव थे। साहित्‍य में प्रगतिशील लेखन को प्रोत्‍साहित करने एवं उसकी पंरपरा को स्‍थापित करने में डॉ.शर्मा ने विशिष्‍ट योगदान दिया था। तुलसी के लोक चरित्र को इन्‍होंने बखूबी उजागर किया और निराला के साहित्‍य के क्रांतिकारी स्‍वरूप से आमलोगों को जोड़ा। साहित्‍य में प्रगतिशीलता के तहत अनेक तरह के भटकाव यथा : पद, पैसा और स्‍वार्थ से जो लेखन की शुरूआत हो चुकी थी, इसके विरूद्ध इन्‍होंने जनचेतना फैलायी और एक पैसे का पुरस्‍कार आजीवन कबूल नहीं किया। प्रगतिशील लेखक आंदोलन का प्रभाव यह है कि जनता के लिए जनभाषा में लिखने वालों की एक शक्ति तैयार हुई और साहित्‍य की मुख्‍यधारा प्रगतिवादी हुई।
भारत भारद्वाज ने कहा कि जिस तरह से साम्राज्‍यवाद का स्‍वरूप बदला है उसी तरह प्रगतिशील आंदोलन का भी। साम्राज्‍यवाद एक पूँजीवादी अवधारणा है जिसके पीछे सत्‍ता का वर्चस्‍व और अधिकार का विस्‍तार है। यह तो मुझे नहीं मालूम कि आधुनिक विश्‍व में पहला साम्राज्‍यवादी उपनिवेश कौन था, लेकिन मुझे मालूम है कि दुनिया का पहला उपनिवेश जिसे ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति मिली वह अमेरिका है। आज अमेरिका नव उपनिवेश स्‍थापित करना चाहता है। हमें यह जान लेना चाहिए कि दुनिया में समय-समय पर बदलाव आता रहा है। बदलने का सपना कार्ल मार्क्‍स ने 1848 में कम्‍युनिस्‍ट मेनिफेस्‍टो के द्वारा दिखाया। मार्क्‍स ने कहा कि दुनिया के मजदूरों एक हों, खोने के लिए तुम्‍हारे पास जंजीरें हैं और पाने के लिए पूरी दुनिया। मार्क्‍स समाज में समानता लाना चाहते थे और शोषित वर्ग को मुक्ति दिलाना चाहते थे। प्रगतिशील आंदोलन की शुरूआत 1936 ई. में हुई। जैसे-जैसे कम्‍युनिस्‍ट पार्टिंयां टूटती गईं उसी तरह से प्रगतिशील आंदोलन भी शिथिल पड़ता गया। प्रगतिशील आंदोलन ने लगातार नव साम्राज्‍यवाद व पूंजीवाद का विरोध किया। अमेरिका, चीन, जापान ने पूरी दुनिया के बाजार पर कब्‍जा कर रखा है। अमेरिका आई.एम.एफ. और वर्ल्‍ड बैंक के माध्‍यम से पूरी दुनिया के बाजार पर कब्‍जा कर रखा है।
अली अहमद फातमी बोले, नव साम्राज्‍यवादी ताकतें मनुष्‍य की नित्‍य रचना प्रक्रि‍या, सोचने-समझने की ताकत को क्षीण करने पर तुला है। प्रगतिशील कवियों, लेखकों की जिम्‍मेदारी बनती है कि वे इन ताकतों के खिलाफ अपनी आवाजें बुलंद करें। प्रगतिशील लेखक संघ,उ.प्र. के महासचिव डॉ.संजय श्रीवास्‍तव ने संचालन किया तथा महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के इलाहाबाद केंद्र के प्रभारी प्रो. संतोष भदौरिया ने स्‍वागत वक्‍तव्‍य दिया। इस अवसर पर संजीव, रघुवंशमणि, नरेन्‍द्र पुण्‍डरीक, कांति शर्मा, नरेन्‍द्र सिंह, अशरफ अली बेग, ख्‍वाजा जावेद अख्‍तर, जमीर अहसन, सुरेश शर्मा, कमलेश सिंह, प्रकाश त्रिपाठी, अभिषेक दुबे, विनोद कुमार शुक्‍ल, हरमंदिर पांडेय, अमित विश्‍वास, विनय भूषण, अल कबीर, हीना देसाई सहित बड़ी संख्‍या में साहित्‍यकार, जोकहरा व आजमगढ़ के साहित्‍य के सुधी जन उपस्थित  थे।
यादगार बनी काव्‍य संध्‍या- जोकहरा ‍स्थित श्री रामानंद सरस्‍वती पुस्‍तकालय में गंगा-जमुनी तहजीब मंच द्वारा आयोजित काव्‍य संध्‍या यादगार बनी। इलाहाबाद से आए वरिष्‍ठ शायर जमीर हसन की अध्‍यक्षता में देशभर से आए हिंदी-उर्दू के कवियों ने कविता, मुक्‍त छंद, गीत, गजल, नज्‍़म आदि से उपस्थितों को खूब रिझाया। कवियों के फ़न में जहॉं शोषण की चित्‍कारें थीं तो वहीं महिला अधिकारों सहित प्रेम व प्रेरणा गीत के बोल भी। कवियों ने गजल व गीत की परंपरा में गाकर खूब तालियां बटोरी। काव्‍य संध्‍या में शामिल होने वालों में भारत भारद्वाज, राजेन्‍द्र राजन, मूलचंद गौतम, रघुवंशमणि, राघवेन्‍द्र प्रताप सिंह, गिरीश चंद्र मासूम, असलम इलाहाबादी, नरेन्‍द्र पुण्‍डरीक, दानिश जमाल, अल कबीर, जय कृष्‍ण राय तुषार, बालेदीन यादव, असरफ बेग, शंभु शरण श्रीवास्‍तव, जय प्रकाश धूमकेतु, वैजनाथ यादव, सोनी पांडेय आदि शामिल हैं।
    
पुरस्‍कार  वितरण समरोह संपन्‍न - विगत 14 वर्षों से लगातार श्री रामानंद सरस्‍वती पुस्‍तकालय, जोकहरा द्वारा आयोजित सामान्‍य ज्ञान प्रतियोगिता में अव्‍वल आने वाले विद्यार्थियों को महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा के कुलपति विभूति नारायण राय द्वारा पुरस्‍कृत किया गया। कुल 705 बच्‍चे इस प्रतियोगिता में शामिल हुए थे। प्रथम श्रेणी में रमेश कुमार सिंह ने 72 अंक प्राप्‍त कर प्रथम स्‍थान प्राप्‍त किया। विशाल सिंह और सौरभ कुमार ने 68 अंक लेकर संयुक्‍त रूप से द्वितीय स्‍थान तथा मनीष राय, अरूण यादव, रमेश यादव, नवनीत ने 66 अंक लेकर तृतीय स्‍थान प्राप्‍त किया। इसमें प्रथम पुरस्‍कार के रूप में मोबाइल, 06 माह का कम्‍प्‍यूटर प्रशिक्षण मुफ्त, द्वितीय पुरस्‍कार के रूप में 06 माह का कम्‍प्‍यूटर प्रशिक्षण मुफ्त तथा तृतीय स्‍थान प्राप्‍त करने वाले प्रतिभागी को तीन माह का कम्‍प्‍यूटर प्रशिक्षण मुफ्त दिया गया।
द्वितीय श्रेणी में संदीप विश्‍वकर्मा ने 78 अंक तथा तृतीय श्रेणी में शिवम सिंह 86 अंक लेकर प्रथम स्‍थान प्राप्‍त किया। इन्‍हें पुरस्‍कार के रूप में क्रमश: यूनिक सामान्‍य अध्‍ययन और इयर बुक 2012 तथा तीन माह का कम्‍प्‍यूटर प्रशिक्षण मुफ्त देने की घोषणा की गई। कार्यक्रम में पुस्‍तकालय के सचिव शेषनाथ राय, निदेशिका हीना देसाई सहित बड़ी संख्‍या में हिंदी के सुधी जन उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. जय प्रकाश धूमकेतु ने किया।

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