मंगलवार, 22 अक्तूबर 2013

लोकसाहित्‍य के अनुवाद में संस्‍कृति को जानना जरूरी – डॉ. महादेवी कनवी





हिंदी विवि में अनुवाद पर आयोजित राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी के दूसरे दिन अनुवाद के विभिन्‍न आयामों पर हुआ विमर्श


 
लोकसाहित्‍य और लोकभाषा का अनुवाद करते समय स्‍थानीय लोकसंस्‍कृति और शब्‍दों के अर्थ की परिभाषा जानना अनुवादकों का महत्‍वपूर्ण काम है। एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद के लिए शब्‍दों के अर्थ के साथ व्‍याकरण का ज्ञान रखना अनुवादकों के लिए महत्‍वपूर्ण शर्त होनी चाहिए। उक्‍त प्रतिपादन जी. एस. कॉलेज हावेरी, कर्नाटक में हिंदी भाषा की सहायक प्रोफेसर डॉ. महादेवी कनवी ने व्‍यक्‍त किये। वह महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के अनुवाद प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा केंद्रीय हिंदी निदेशालय, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, उच्‍चतर शिक्षा विभाग, नई दिल्‍ली एवं विश्‍वविद्यालय के संयुक्‍त तत्‍वावधान में दो दिवसीय राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी के दूसरे दिन मंगलवार को निर्वचन के उपयोग क्षेत्र विषय पर बोल रही थी। सत्र की अध्‍यक्षता भाषा विज्ञानी प्रो. उमाशंकर उपाध्‍याय ने की। इस अवसर पर प्रो. बेनी सैम्‍यूअल, डॉ. आराधना सक्‍सेना, डॉ. रामप्रकाश यादव, डॉ. हरप्रीत कौर मंचासीन थे।
सत्र में प्रो. बेनी सैम्‍यूअल ने इंटरप्रिटर की व्‍याख्‍या करते हुए कहा कि वह एक भाषा को दूसरी भाषा में अनुवाद कर समन्‍वय का काम करता है। उन्‍होंने इंटरप्रिटर के नीतिमूल्‍य, महत्‍व और गुणविशेषताएं आदि को व्‍याख्‍यायीत किया, वहीं डॉ. आराधना सक्‍सेना ने अनुवाद की बारिकिओं पर प्रकाश डाला। डॉ. रामप्रकाश यादव का कहना था कि सूचना क्रांति के दौर में वैश्विक दूरिया कम हो गई है। पर्यटन क्षेत्र में मेडिकल, खेल जैसे पर्यटन का प्रभाव बढ़ा है। वैसे इस क्षेत्र में दूभाषिओं की मांग बढ़ रही है। डॉ. हरप्रीत कौर ने निर्वचन क्षेत्र में परंपरागत शोध से हटकर नवोन्‍मेषी शोध की जरूरत पर बल दिया। अध्‍यक्षीय उदबोधन में प्रो. उमाशंकर उपाध्‍याय ने कहा की भारतीय भाषाओं के अनुवाद में समस्‍याएं समान होती है। इसलिए जरूरी है कि अनुवादकों को स्रोत भाषा और लक्ष्‍य भाषा की संस्‍कृति शब्‍दविन्‍यास और अर्थविन्‍यास की जानकारी हों। प्रारंभ में हेमाद्री, संतोष पोड़, लतिका चावडा, राजेश मून, शम्‍भू शरण गुप्‍त, सुधीर जिंदे आदि शोधार्थीओं ने शोधपत्र प्रस्‍तुत किए। सत्र का संचालन अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ के सहायक प्रोफेसर तथा संगोष्‍ठी के समन्‍वयक डॉ. अनवर अहमद सिद्दीकी ने किया। इस अवसर पर अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. देवराज तथा संगोष्‍ठी संयोजक डॉ. अन्‍नपूर्णा, प्रो. बी. वै. ललितांबा, कर्नाटक, केंद्रीय हिंदी निदेशालय के दीपक पांडे, भाषा विद्यापीठ के डॉ. एच. ए. हुनगुंद, डॉ. अनिल कुमार दुबे, वर्धा के डॉ. उत्‍तम पारेकर, साहित्‍य विद्यापीठ के डॉ. उमेश कुमार सिंह, डॉ. बीरपाल सिंह यादव, यशवंत महाविद्यालय के डॉ. संजय धोटे, अनुवाद प्रौद्योगिकी विभाग के नेहा, लेखा, लतिका, नर्मदा, ब्रिजेश, प्रशांत, गोदावरी आदि सहित छात्र-छात्राएं बड़ी संख्‍या में उपस्थित थे।

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