शुक्रवार, 21 मार्च 2014

कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र ने ‘शोध पद्धति के मूल आधार’ विषय पर किया संबोधित



शोध के लिए समय के साथ संवेदनशील होने की आवश्‍यकता

महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. गिरीश्‍वर मिश्र ने ‘शोध पद्धति के मूल आधार’ विषय पर शोधार्थियों तथा प्राध्‍यापकों को संबोधित करते हुए कहा कि सूचना क्रांति के आज के दौर में समाज विज्ञान के क्षेत्र में बड़ी तेजी से बदलाव हो रहे हैं। शोधार्थियों को चाहिए कि वे समय के साथ संवेदनशील हों। उन्‍होंने कहा कि शोध के लिए पुरातन उपकरणों को छोड़कर नए उपकरणों का उपयोग करना चाहिए ताकि अपने शोध को दूसरों के द्वारा किए गए शोध से अलग स्‍थापित किया जाए।
विश्‍वविद्यालय के हबीब तनवीर सभागार में बुधवार को शोध प्रकोष्‍ठ के माध्‍यम से आयोजित विशेष व्‍याख्‍यान के दौरान मंच पर शोध प्रकोष्‍ठ एवं अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. देवराज, कुलानुशासक प्रो. सूरज पालीवाल, छात्र कल्‍याण अधिष्‍ठाता प्रो. अनिल कुमार राय मंचस्‍थ थे। कुलपति प्रो. मिश्र ने शोध के विभिन्‍न आयाम, बारीकियां, प्रचलित शोध पद्धतियां, शोध की वस्‍तुनिष्‍ठता एवं प्रामाणिकता आदि पर अपने गहन तथा चिंतनशील विचारों के माध्‍यम से उपस्थितों को शोध के विषय में अवगत कराया। उन्‍होंने कहा कि ज्ञान हर किसी के लिए उपलब्‍ध होना चाहिए और वह वस्‍तुनिष्‍ठ होना चाहिए। वैज्ञानिक अध्‍ययन के लिए यह जरूरी है तभी वैध, प्रामाणिक तथा विश्‍वसनीय ज्ञान प्राप्‍त हो सकता है। उन्‍होंने भौतिक विज्ञानी थॉमस कूहन के संदर्भ में कहा कि विज्ञान की प्रगति कुछ चरणों में होती है। जिसमें अनेक प्रकार के कोलाहल चलते रहते है। उसमें किसी एक को महत्‍वपूर्ण माना नहीं जा सकता। ज्ञान एक रचना है और एक आकर्षण भी। शोध के संदर्भ में उन्‍होंने कहा कि शोधकर्ता ही स्‍वयं शोध का उपकरण है। शोध में नयापन लाने के लिए उस पद्धति या जीवन पद्धति को अपनाना होता है। जैसे बौद्ध और वेदान्‍त चिंतन में शोध करना हो तो उसकी जीवन पद्धति अपनानी पड़ती है। उस पद्धति में स्‍वयं को डूबोना पड़ता है ताकि नए शोध के माध्‍यम से आपकी पात्रता भी निर्धारित हो सकें। उन्‍होंने कहा कि शोध करते समय यह शर्त अपनानी चाहिए कि आपका ज्ञान किसी और का न हो न हीं वह ज्ञान नकल या दौहराव का हो। आपका ज्ञान सार्वजनिक क्षेत्र में हो ताकि लोग उसका उपयोग कर सकें। शोध में नयापन हो पुनरावृत्ति नहीं। शोध की ललक और जिज्ञासा ही शोधकर्ता को गुणात्‍मक शोध की दिशा में ले जाती है। उन्‍होंने मात्रात्‍मक एवं गुणात्‍मक शोध के बारे में भी शोधार्थियों को बताया। इस दौरान कुलपति प्रो. मिश्र ने छात्रों की जिज्ञासाओं और प्रश्‍नों का यतोचित समाधान भी प्रस्‍तुत किया। कार्यक्रम का प्रास्‍ताविक एवं संचालन प्रो. देवराज ने किया तथा धन्‍यवाद ज्ञापन प्रो. अनिल कुमार राय ने प्रस्‍तुत किया। व्‍याख्‍यान के दौरान विविध विभागों के अध्‍यापक, शोधार्थी एवं छात्र बड़ी संख्‍या में उपस्थित थे।

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