रचनात्मक आलोचक थे परमानंद श्रीवास्तव –प्रो. सूरज पालीवाल
प्रसिद्ध कवि तथा आलोचक प्रो. परमानंद श्रीवास्तव
के निधन पर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में साहित्य
विद्यापीठ की ओर से आयोजित शोक सभा में अधिष्ठाता प्रो. सूरज पालीवाल ने कहा कि प्रो.
श्रीवास्तव एक रचनात्मक आलोचक थे।
डा. परमानंद श्रीवास्तव की गणना हिंदी के शीर्ष
आलोचकों में होती है। उन्होंने लंबे समय तक साहित्यिक पत्रिका आलोचना
का संपादन किया। उन्होंने लेखन की शुरुआत कविता से की लेकिन आलोचना ने ही
उन्हें पहचान दिलाई। उन्हें साहित्य में योगदान के लिए उत्तर प्रदेश सरकार का
प्रसिद्ध भारत भारती पुरस्कार,
केके बिड़ला फाउंडेशन का प्रतिष्ठित
व्यास सम्मान सहित कई बड़े सम्मान मिल चुके हैं। आलोचना के संपादक मंडल
में शामिल होने के बाद से ही परमानंद श्रीवास्तव को नए लेखकों-कवियों
को प्रोत्साहित करने वाले आलोचक के रूप में जाना जाता है।
उजली हंसी के छोर पर, अगली शताब्दी के
बारे में, नई कविता का परिप्रेक्ष्य, हिंदी कहानी की रचना प्रक्रिया, कविकर्म एवं
काव्य भाषा, जैनेन्द्र और उनके उपन्यास, समकालीन कविता का व्याकरण, शब्द और
मनुष्य, कविता का अर्थात् आदि कृतियों के सर्जक, कवि व आलोचक प्रो. परमानंद
श्रीवास्तव का दि. 5 नवंबर को गोरखपुर में निधन हुआ। उनका जन्म 10 फरवरी 1935
में गोरखपुर जिले के बॉंसगांव कस्बे में हुआ था। उन्होंने वर्धमान विश्वविद्यालय,
वर्धमान में हिंदी विभाग में प्रोफेसर एवं अध्यक्ष के रूप में कार्य किया था।
उनके निधन पर साहित्य विद्यापीठ में उन्हें
श्रद्धासुमन अर्पित किये गये। प्रो. देवराज ने प्रो. श्रीवास्तव की पाठ की परंपरा
पर प्रकाश ड़ाला। डॉ. जय प्रकाश राय धूमकेतु ने कहा कि वे प्रगतिशील लेखक संघ के
सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में कार्यरत थे। शोक सभा में डॉ. उमेश कुमार सिंह, डॉ.
अख्तर आलम आदि ने प्रो. श्रीवास्तव से जुड़े संस्मरण सुनाये और उनके जीवन और उनकी
रचनाओं पर प्रकाश ड़ाला। साहित्य विद्यापीठ के अध्यक्ष प्रो. के. के. सिंह ने संचालन
किया तथा शोक प्रस्ताव पढ़ा। उपस्थितों द्वारा दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि
अर्पित की गयी। इस दौरान डॉ. अशोक नाथ त्रिपाठी, डॉ. अनवर अहमद सिद्दीकी, डॉ. बीर
पाल सिंह यादव, डॉ. वीरेन्द्र यादव, राजेश यादव, डॉ.
एच. ए. हुनगुंद सहित विभाग के शोधार्थी एवं छात्र उपस्थित थे।
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