गुरुवार, 30 अगस्त 2012


प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतिमान - हिंदी विश्वविद्यालय






मन को आह्लादित करने की असीम क्षमता यदि किसी के पास है,तो वह है-प्रकृति का विराट सौंदर्य। सौभाग्यशाली व्यक्तियों को ही प्रकृति की गोद में पहुंचकर वात्सल्य प्राप्त करने का सुअवसर प्राप्त होता है। प्रकृति की गोद में बसा महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय बहुत ही सुनियोजित तरीके से छात्रों को शिक्षा प्रदान करता है। यह विश्वविद्यालय अपनी स्वतंत्र अभिव्यक्ति के लिए भी जाना जाता है। आप विश्वविद्यालय की प्राकृतिक सुन्दरता से अभिभूत हुए बिना नहीं रह पाएंगे। यहां की प्राकृतिक दृश्यावली एवं पर्यावरण खुद ब खुद विद्यार्थियों को शिक्षा क्षेत्र में अच्छे प्रदर्शन के लिए प्रेरित कर देता है। यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता तो ऐसी है कि , जो छात्र एक बार यहाँ आता है वह यहीं का हो के रह जाता है। प्रस्तुत है विश्वाविद्यालय की प्राकृतिक सुन्दरता की कुछ मोहक तस्वीरें।

बुधवार, 29 अगस्त 2012


शोध प्रविधि की जानकारी से ही गुणात्मक शोध संभव- प्रो. विद्युत जोशी

हिंदी विश्‍वविद्यालय में शोध-प्रविधि : स्‍वरूप और सिद्धांत विषय पर त्रिदिवसीय राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी का उदघाटन

  शोध हमारी सांस्‍कृतिक विरासत का हिस्‍सा है, लेकिन वैज्ञानिक शोध के लिए परंपरागत मूल्‍यों के साथ वैज्ञानिक दृष्टि का होना भी जरूरी है। शोध प्रविधि के बारे में जानकारी होने से ही बेहतर शोध की कल्पना की जा सकती है। उक्‍त विचार गुजरात विश्‍वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. विद्युत जोशी ने व्‍यक्‍त किये। वे महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय में दि. 29,30 एवं 31 अगस्‍त को शोध-प्रविधि : स्‍वरूप और सिद्धांत विषय पर आयोजित राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी के उदघाटन के अवसर पर बुधवार को हबीब तनवीर सभागार में आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। उदघाटन समारोह की अध्‍यक्षता संस्‍कृति विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. मनोज कुमार ने की। इस अवसर पर संचार एवं मीडिया अध्‍ययन केंद्र के निदेशक प्रो. अनिल के. राय अंकित तथा संगोष्‍ठी संयोजक डॉ. नृपेन्‍द्र प्रसाद मोदी मंचस्‍थ थे। इस संगोष्‍ठी में देशभर के विभिन्‍न विश्‍वविद्यालयों से लगभग दो सौ से अधिक शोधार्थी, विद्यार्थी एवं  प्रतिनिधि उपस्थित हुए।                                    
प्रो. विद्युत जोशी ने शोध प्रविधि के विविध  आयामों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शोध प्रविधि के नाम पर केवल शोध उपकरण नहीं बल्कि शोधार्थियों में वैज्ञानिक चेतना की अलख जगाने की आवश्‍यकता है ताकि शोध को अधिक विश्‍वसनीय, प्रामाणिक और प्रभावी बनाया जा सके। उच्‍च शिक्षण संस्‍थानों में शोध की दशा और शोधार्थियों का जिक्र करते हुए उन्‍होंने कहा कि विश्‍वविद्यालय ज्ञान का संस्‍थान होता है, पर इसे शोधार्थियों में  रचनात्‍मक, लोकतांत्रिक और वैयक्तिक चेतना विकसित करने वाला संस्‍थान भी होना चाहिए। उन्होंने कहा कि शोध के क्षेत्र में गुणवत्ता लाए जाने की जरूरत है। शोध पत्र अपने आप में हर दृष्टि से पूर्ण होना चाहिए ताकि उससे विषय की सम्पूर्ण जानकारी हासिल हो सके। 
         मंच पर विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित संचार एवं मीडिया अध्‍ययन केंद्र के निदेशक प्रो. अनिल के. राय अंकित ने अपने वक्‍तव्‍य में कहा कि सामाजिक विज्ञान के शोधार्थियों के लिए हमारा पूरा समाज ही एक प्रयोगशाला है। शोध के नए और परंपरागत सिद्धांतों पर अपनी बात रखते हुए उन्‍होंने कहा कि शोध के नए सिद्धांतों को तो गढ़ना ही है , पुराने स्‍थापित सिद्धांतों की पुनर्व्याख्या भी जरूरी है। शोधार्थी को चाहिए कि वे अपने समाज को वैज्ञानिक और तार्किक दृष्टि से देखें। उन्होंने कहा कि शोधकर्ताओं को अपनी मंजिल स्वयं तय करनी चाहिये और शोध कार्य के लिये समर्पित भाव का होना आवश्यक है। उन्होंने शोध की विधियों और अच्छे अनुसंधान की विशेषताएं तथा गुणात्मक अनुसंधान की बारीकियों के बारे में छात्र-छात्राओं को जानकारी दी।
         उदघाटन समारोह का संचालन अहिंसा एवं शांति अध्‍ययन विभाग के अध्‍यक्ष प्रो. नृपेन्‍द्र प्रसाद मोदी ने किया। इस अवसर पर विश्‍वविद्यालय के अध्‍यापक, देश के विभिन्‍न विश्‍वविद्यालयों से आए प्रतिभागी, शोधार्थी एवं विद्यार्थी बड़ी संख्‍या में उपस्थित थे।
विश्‍वविद्यालय के अहिंसा एवं शांति अध्‍ययन विभाग के तत्‍वाधान में आयोजित इस त्रि‍दिवसीय राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी में अगले दो दिन तक शोध के विविध आयामों पर विस्‍तार से विमर्श किया जाएगा। संगोष्‍ठी में बरकतुल्‍लाह विश्‍वविद्यालय से प्रो. एस. एम. चौधरी, जेएनयू से प्रो. सुबोध मालाकार, बनारस हिंदू विश्‍वविद्यालय से प्रो. हरिकेश सिंह व डॉ. ज्ञान प्रकाश सिंह, भागलपुर विश्‍वविद्यालय से प्रो. प्रमोद कुमार सिन्‍हा आदि विषय विशेषज्ञ शोध प्रविधि पर मार्गदर्शन करेंगे।
         संगोष्‍ठी में 30 अगस्‍त को शोध में संदर्भ की आवश्‍यकता, प्रासंगिकता और प्रमाणिकता के प्रश्‍न तथा तथ्‍यों की बहुलता और उचित दृष्टिकोण का सवाल आदि विषयों पर चर्चा होगी। दुसरे सत्र में शोध-प्रविधि में कम्‍प्‍यूटर तथा इंटरनेट की उपयोगिता के संदर्भ और शोध-प्रारूप व शोध-प्रविधि का गुणात्‍मक संबंध विषयों पर विशेषज्ञ विमर्श करेंगे। संगोष्‍ठी का समापन शुक्रवार 31 अगस्‍त को दोपहर  2.30 बजे होगा। समापन के पूर्व प्रतिभागी और विशेषज्ञों के बीच चर्चा सत्र होगा तथा संगोष्‍ठी प्रतिवेदन इसी सत्र में प्रस्‍तुत किया जायेगा।


मंगलवार, 21 अगस्त 2012


कितना बदला साहित्‍य का मेयार : संदर्भ प्रेमचन्‍द पर गोष्‍ठी’

अन्‍याय और शोषण की मुखालफ़त के रचनाकार थे प्रेमचन्‍द : दूधनाथ सिंह


प्रेमचन्‍द का संपूर्ण साहित्‍य अन्‍याय और शोषण के खिलाफ न्‍याय और मानव मुक्ति की मांग करता है। प्रेमचन्‍द की बहुचर्चित कहानी ^पंच परमेश्‍वर* में सामाजिक न्‍याय की गुहार है। अपने लेखकीय जीवन के अन्तिम दस्‍तावेज़ ^महाजनी सभ्‍यता* में अन्‍तत: वह इस निष्‍कर्ष पर पहुंचे कि धन ही सब कुछ है और मानवीय सम्‍बन्‍धों की परवाह नहीं की जा रही है हालांकि यह बात उन्‍होंने अत्‍यन्‍त तकलीफ़ से कही।
उक्‍त विचार ‘कितना बदला साहित्‍य का मेयार : संदर्भ प्रेमचन्‍द’ विषय पर महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के इलाहाबाद स्थित क्षेत्रीय केंद्र द्वारा प्रेमचन्‍द जयंती के अवसर पर आयोजित गोष्‍ठी की अध्‍यक्षता कर रहे वरिष्‍ठ कथाकार दूधनाथ सिंह ने व्‍यक्‍त किए।
केंद्र के सत्‍यप्रकाश मिश्र सभागार में शहर के तमाम बुद्धिजीवियों एवं साहित्‍य प्रेमियों के बीच गोष्‍ठी की शुरूआत युवा आलोचक डॉ. कृष्‍ण मोहन की प्रस्‍तावना से हुई। इस दौरान उन्‍होंने कहा कि कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्‍द के लेखन से यह प्रमाणित होता है कि प्रेमचंद ने उच्‍च वर्ग का सौन्‍दर्य देखने की बजाय हमेशा निम्‍न वर्ग की चिन्‍ता की लेकिन अब विशाल मध्‍यवर्ग पर भी गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। बतौर विशिष्‍ट अतिथि वर्धा विश्‍वविद्यालय के राइटर-इन-रेजीडेंस वरिष्‍ठ कथाकार संजीव ने कहा कि प्रेमचन्‍द ने अपनी रचनाओं में जो भी समस्‍याएं उठाई वे आज भी जस की तस हैं। उन्‍होंने प्रेमचन्‍द को याद करते हुए विदर्भ में किसानों की आत्‍महत्‍याओं को भी याद किया। पुस्‍तक वार्ता के संपादक भारत भारद्वाज ने कहा कि साहित्‍य का काम मनोरंजन करना नहीं है, बल्कि रास्‍ता दिखाना है और यह कार्य प्रेमचन्‍द का वृहद साहित्‍य आज भी कर रहा है। जामिया मिल्लिया इस्‍लामिया के प्रो.दुर्गा प्रसाद गुप्‍त ने कहा कि प्रेमचन्‍द की भावनाएं उनके साहित्‍य में अभिव्‍यक्‍त हुई हैं, उन्‍होंने हमेशा मध्‍यम एवं निम्‍न वर्ग की वकालत की। कवि व आलोचक श्‍याम कश्‍यप ने प्रेमचन्‍द के पुनर्पाठ की आवश्‍यकता पर जोर दिया और कहा कि सामन्‍ती मूल्‍यों की जकड़न को प्रेमचन्‍द के साहित्‍य के माध्‍यम से ही समझा जा सकता है। उर्दू आलोचक प्रो.ए.ए. फातमी ने प्रेमचन्‍द द्वारा रचित उर्दू साहित्‍य के हवाले से प्रेमचंद के साहित्‍य पर प्रकाश डाला। युवा कथा लेखिका मनीषा कुलश्रेष्‍ठ एवं नरेन्‍द्र पुण्‍डरीक ने भी गोष्‍ठी में विचार व्‍यक्‍त किए। 
कार्यक्रम संचालन प्रो.ए.ए. फातमी ने किया तथा आभार गोष्‍ठी के संयोजक एवं केंद्र के प्रभारी प्रो.संतोष भदौरिया ने व्‍यक्‍त किया। अतिथियों का स्‍वागत विश्‍वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ.जयप्रकाश धूमकेतु ने किया।
गोष्‍ठी में प्रमुख रूप से कथाकार शेखर जोशी, वी.रा.जगन्‍नाथन, नीलम शंकर, के.के. पाण्‍डेय, मीना राय, नन्‍दल हितैषी, हिमांशु रंजन, संतोष चतुर्वेदी, जमीर अहसन, फखरूल करीम, पूनम तिवारी, पीयूष पातंजलि, अशोक सिद्धार्थ, प्रकाश त्रिपाठी, रेनू सिंह, यश मालवीय, रविनंदन सिंह, नरेन्‍द्र पुण्‍डरीक, श्रीप्रकाश मिश्र, अनिल भौमिक, जे.पी. मिश्र, रमेश ग्रोवर, कान्ति शर्मा, जयकृष्‍ण राय तुषार एवं शशिभूषण सिंह सहित बड़ी संख्‍या में साहित्‍य प्रेमी उपस्थित थे।


आस्‍था के लुप्‍त होते सूत्रों की खोज करती हैं मनीषा की रचनाएं- संजीव

कथाकार मनीषा कुलश्रेष्‍ठ कृष्‍ण प्रताप कथा सम्‍मान, 2011 से सम्‍मानित

युवा पीढ़ी में मनीषा कुलश्रेष्‍ठ बेहद संभावनाशील रचनाकार हैं। राजस्‍थान के ठेठ चुरू इलाके से आई लेखिका का कथा में प्रवेश करने का ढंग यानी एप्रोच एकदम अलग है। इस एप्रोच के माध्‍यम से वे अपनी रचनाओं में आस्‍था के लुप्‍त होते सूत्रों की तलाश करती हैं। एक लेखिका के रूप में उन्‍होंने लंबी दूरी तय कर ली है तथा नारी विमर्श में नए रंग जोड़े हैं। वे अपनी कहानियों में पारिवारिक हिंसा को केंद्रीयता प्रदान करती हैं। उनके पास चकित करने वाली काव्‍यात्‍मक भाषा है, खर पतवार पढ़ते हुए मुझे ऐसा ही महसूस हुआ।
वरिष्‍ठ कथाकार संजीव ने मनीषा कुलश्रेष्‍ठ के रचना संसार पर बात करते हुए ये विचार व्‍यक्‍त किए। अवसर था इलाहाबाद में महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के सत्‍यप्रकाश मिश्र सभागार में कृष्‍ण प्रताप कथा सम्‍मान, 2011 का आयोजन। जिसमें कथाकार संजीव बतौर विशिष्‍ट अतिथि उपस्थित थे। सम्‍मान समारोह के अध्‍यक्ष और हिंदी के ख्‍यातनाम कथाकार शेखर जोशी ने कहा कि मनीषा अपनी कहानियों में भारतीय एवं ग्रीक मिथकों का सटीक प्रयोग करती हैं। उनकी भाषा अर्जित की हुई भाषा है, उनके लेखन में परिपक्‍व संभावनाएं हैं।
समारोह के मुख्‍य अतिथि वरिष्‍ठ कथाकार एवं महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा के कुलपति तथा कृष्‍ण प्रताप कथा सम्‍मान के संस्‍थापक विभूति नारायण राय ने कहा कि पहले य‍ह वर्तमान साहित्‍य पत्रिका द्वारा आयोजित कृष्‍ण प्रताप कहानी प्रतियोगिता के रूप में शुरू किया गया था। लगभग दो दशक तक यह पुरस्‍कार सफलतापूर्वक सम्‍पन्‍न हुआ और बहुत से महत्‍वपूर्ण कथाकारों और कहानियों को पुरस्‍कृत किया गया। वर्ष 2010 से यह कृष्‍ण प्रताप कथा सम्‍मान के रूप में दिया जा रहा है। उनका कहना था कि इस सम्‍मान के माध्‍यम से वे कृष्‍ण प्रताप से अपनी मित्रता का दाय पूरा कर रहे हैं। इसका उद्देश्‍य है कि समकालीन कहानी के उन हस्‍ताक्षरों का सम्‍मान करना जो अनुभव, संवेदना और विचार के साथ नए यथार्थ से मुठभेड़ कर कहानी को नए आस्‍वाद से समृद्ध कर रहे हैं। उन्‍होंने उम्‍मीद जताई कि मनीषा आगे चलकर इस सम्‍मान का गौरव बढ़ाएंगी।
पुस्‍तक-वार्ता के संपादक एवं विशिष्‍ट अतिथि भारत भारद्वाज ने कहा कि मनीषा की कहानियों में वे साधारण लोग जगह पाते हैं जो लोक कला को जीवित रखे हैं। उनकी कहानियों की विशेषता यह है कि उनमें प्रखर राजनीतिक चेतना है और सांप्रदायिकता के विरोध की रचनात्‍मक ऊर्जा भी। बतौर वक्‍ता युवा आलोचक कृष्‍ण मोहन ने कृष्‍ण प्रताप के सद्य प्रकाशित कहानी संग्रह कहानी अधूरी है के हवाले से उनकी कहानियों की खूबियों और आलोचनात्‍मक लेखों का उल्‍लेख करते हुए कहा कि उन्‍हें फिर से पढ़ने की जरूरत है। सम्‍मानित लेखिका मनीषा कुलश्रेष्‍ठ ने अपने वक्‍तव्‍य में कहा कि यह एक शहीद हुए इंसान के नाम पर दिया जाने वाला सम्‍मान है, जो साहित्‍य के साथ एक गहरा रिश्‍ता रखते थे, इसलिए वो यह सम्‍मान पाकर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रही हैं।
सम्‍मान समारोह का संयोजन आयोजन समिति के सदस्‍य प्रो. संतोष भदौरिया ने किया। आभार सम्‍मान समारोह के संयोज‍क नरेन्‍द्र पुण्‍डरीक ने किया तथा अतिथियों का स्‍वागत अनामिका प्रकाशन के विनोद कुमार शुक्‍ल, डॉ. पीयूष पातंजलि तथा डॉ. प्रकाश त्रिपाठी ने किया।
सम्‍मान समारोह में प्रमुख रूप से दूधनाथ सिंह, वी.आर.जगन्‍नाथन, नीलम शंकर, के.के. पाण्‍डेय, मीना राय, नन्‍दल हितैषी, हिमांशु रंजन, संतोष चतुर्वेदी, जमीर अहसन, फखरूल करीम, पूनम तिवारी, अशोक सिद्धार्थ, रेनू सिंह, यश मालवीय, रविनंदन सिंह, नरेन्‍द्र पुण्‍डरीक, श्रीप्रकाश मिश्र, अनिल भौमिक, जे.पी.मिश्र, रमेश ग्रोवर, कान्ति शर्मा, जयकृष्‍ण तुषार एवं शशिभूषण सिंह सहित तमाम साहित्‍य प्रेमी उपस्थित थे।