शोध प्रविधि की जानकारी से ही गुणात्मक शोध संभव- प्रो. विद्युत जोशी
हिंदी विश्वविद्यालय में शोध-प्रविधि : स्वरूप और सिद्धांत विषय पर त्रिदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उदघाटन
शोध हमारी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है, लेकिन वैज्ञानिक शोध के लिए
परंपरागत मूल्यों के साथ वैज्ञानिक दृष्टि का होना भी जरूरी है। शोध प्रविधि के बारे में
जानकारी होने से ही बेहतर शोध की कल्पना की जा सकती है। उक्त विचार गुजरात विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति
प्रो. विद्युत जोशी ने व्यक्त किये। वे महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी
विश्वविद्यालय में दि. 29,30 एवं 31 अगस्त को शोध-प्रविधि : स्वरूप और सिद्धांत
विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के उदघाटन के अवसर पर बुधवार को हबीब तनवीर
सभागार में आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। उदघाटन समारोह
की अध्यक्षता संस्कृति विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. मनोज कुमार ने की। इस अवसर
पर संचार एवं मीडिया अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो. अनिल के. राय अंकित तथा
संगोष्ठी संयोजक डॉ. नृपेन्द्र प्रसाद मोदी मंचस्थ थे। इस संगोष्ठी में देशभर
के विभिन्न विश्वविद्यालयों से लगभग दो सौ से अधिक शोधार्थी, विद्यार्थी एवं प्रतिनिधि उपस्थित हुए।
प्रो. विद्युत जोशी ने शोध प्रविधि के विविध आयामों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शोध प्रविधि के नाम पर केवल शोध उपकरण नहीं बल्कि शोधार्थियों में वैज्ञानिक चेतना की अलख जगाने की आवश्यकता है ताकि शोध को अधिक विश्वसनीय, प्रामाणिक और प्रभावी बनाया जा सके। उच्च शिक्षण संस्थानों में शोध की दशा और शोधार्थियों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ज्ञान का संस्थान होता है, पर इसे शोधार्थियों में रचनात्मक, लोकतांत्रिक और वैयक्तिक चेतना विकसित करने वाला संस्थान भी होना चाहिए। उन्होंने कहा कि शोध के क्षेत्र में गुणवत्ता लाए जाने की जरूरत है। शोध पत्र अपने आप में हर दृष्टि से पूर्ण होना चाहिए ताकि उससे विषय की सम्पूर्ण जानकारी हासिल हो सके।
प्रो. विद्युत जोशी ने शोध प्रविधि के विविध आयामों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शोध प्रविधि के नाम पर केवल शोध उपकरण नहीं बल्कि शोधार्थियों में वैज्ञानिक चेतना की अलख जगाने की आवश्यकता है ताकि शोध को अधिक विश्वसनीय, प्रामाणिक और प्रभावी बनाया जा सके। उच्च शिक्षण संस्थानों में शोध की दशा और शोधार्थियों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ज्ञान का संस्थान होता है, पर इसे शोधार्थियों में रचनात्मक, लोकतांत्रिक और वैयक्तिक चेतना विकसित करने वाला संस्थान भी होना चाहिए। उन्होंने कहा कि शोध के क्षेत्र में गुणवत्ता लाए जाने की जरूरत है। शोध पत्र अपने आप में हर दृष्टि से पूर्ण होना चाहिए ताकि उससे विषय की सम्पूर्ण जानकारी हासिल हो सके।
मंच पर विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित
संचार एवं मीडिया अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो. अनिल के. राय अंकित ने अपने वक्तव्य
में कहा कि सामाजिक विज्ञान के शोधार्थियों के लिए हमारा पूरा समाज ही एक
प्रयोगशाला है। शोध के नए और परंपरागत सिद्धांतों पर अपनी बात रखते हुए उन्होंने
कहा कि शोध के नए सिद्धांतों को तो गढ़ना ही है , पुराने स्थापित सिद्धांतों की पुनर्व्याख्या
भी जरूरी है। शोधार्थी को चाहिए कि वे अपने समाज को वैज्ञानिक और तार्किक दृष्टि
से देखें। उन्होंने कहा कि शोधकर्ताओं को अपनी मंजिल
स्वयं तय करनी चाहिये और शोध कार्य के लिये समर्पित भाव का होना आवश्यक है। उन्होंने शोध की विधियों और
अच्छे अनुसंधान की विशेषताएं तथा गुणात्मक अनुसंधान की बारीकियों के बारे में
छात्र-छात्राओं को जानकारी दी।
उदघाटन समारोह का संचालन अहिंसा एवं
शांति अध्ययन विभाग के अध्यक्ष प्रो. नृपेन्द्र प्रसाद मोदी ने किया। इस अवसर
पर विश्वविद्यालय के अध्यापक, देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से आए
प्रतिभागी, शोधार्थी एवं विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
विश्वविद्यालय
के अहिंसा एवं शांति अध्ययन विभाग के तत्वाधान में आयोजित इस त्रिदिवसीय राष्ट्रीय
संगोष्ठी में अगले दो दिन तक शोध के विविध आयामों पर विस्तार से विमर्श किया
जाएगा। संगोष्ठी में बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय से प्रो. एस. एम. चौधरी, जेएनयू
से प्रो. सुबोध मालाकार, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से प्रो. हरिकेश सिंह व डॉ.
ज्ञान प्रकाश सिंह, भागलपुर विश्वविद्यालय से प्रो. प्रमोद कुमार सिन्हा आदि
विषय विशेषज्ञ शोध प्रविधि पर मार्गदर्शन करेंगे।
संगोष्ठी में 30 अगस्त को शोध में
संदर्भ की आवश्यकता, प्रासंगिकता और प्रमाणिकता के प्रश्न तथा तथ्यों की बहुलता
और उचित दृष्टिकोण का सवाल आदि विषयों पर चर्चा होगी। दुसरे सत्र में शोध-प्रविधि
में कम्प्यूटर तथा इंटरनेट की उपयोगिता के संदर्भ और शोध-प्रारूप व शोध-प्रविधि
का गुणात्मक संबंध विषयों पर विशेषज्ञ विमर्श करेंगे। संगोष्ठी का समापन
शुक्रवार 31 अगस्त को दोपहर 2.30 बजे
होगा। समापन के पूर्व प्रतिभागी और विशेषज्ञों के बीच चर्चा सत्र होगा तथा संगोष्ठी
प्रतिवेदन इसी सत्र में प्रस्तुत किया जायेगा।
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