मंगलवार, 21 अगस्त 2012


कितना बदला साहित्‍य का मेयार : संदर्भ प्रेमचन्‍द पर गोष्‍ठी’

अन्‍याय और शोषण की मुखालफ़त के रचनाकार थे प्रेमचन्‍द : दूधनाथ सिंह


प्रेमचन्‍द का संपूर्ण साहित्‍य अन्‍याय और शोषण के खिलाफ न्‍याय और मानव मुक्ति की मांग करता है। प्रेमचन्‍द की बहुचर्चित कहानी ^पंच परमेश्‍वर* में सामाजिक न्‍याय की गुहार है। अपने लेखकीय जीवन के अन्तिम दस्‍तावेज़ ^महाजनी सभ्‍यता* में अन्‍तत: वह इस निष्‍कर्ष पर पहुंचे कि धन ही सब कुछ है और मानवीय सम्‍बन्‍धों की परवाह नहीं की जा रही है हालांकि यह बात उन्‍होंने अत्‍यन्‍त तकलीफ़ से कही।
उक्‍त विचार ‘कितना बदला साहित्‍य का मेयार : संदर्भ प्रेमचन्‍द’ विषय पर महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के इलाहाबाद स्थित क्षेत्रीय केंद्र द्वारा प्रेमचन्‍द जयंती के अवसर पर आयोजित गोष्‍ठी की अध्‍यक्षता कर रहे वरिष्‍ठ कथाकार दूधनाथ सिंह ने व्‍यक्‍त किए।
केंद्र के सत्‍यप्रकाश मिश्र सभागार में शहर के तमाम बुद्धिजीवियों एवं साहित्‍य प्रेमियों के बीच गोष्‍ठी की शुरूआत युवा आलोचक डॉ. कृष्‍ण मोहन की प्रस्‍तावना से हुई। इस दौरान उन्‍होंने कहा कि कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्‍द के लेखन से यह प्रमाणित होता है कि प्रेमचंद ने उच्‍च वर्ग का सौन्‍दर्य देखने की बजाय हमेशा निम्‍न वर्ग की चिन्‍ता की लेकिन अब विशाल मध्‍यवर्ग पर भी गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। बतौर विशिष्‍ट अतिथि वर्धा विश्‍वविद्यालय के राइटर-इन-रेजीडेंस वरिष्‍ठ कथाकार संजीव ने कहा कि प्रेमचन्‍द ने अपनी रचनाओं में जो भी समस्‍याएं उठाई वे आज भी जस की तस हैं। उन्‍होंने प्रेमचन्‍द को याद करते हुए विदर्भ में किसानों की आत्‍महत्‍याओं को भी याद किया। पुस्‍तक वार्ता के संपादक भारत भारद्वाज ने कहा कि साहित्‍य का काम मनोरंजन करना नहीं है, बल्कि रास्‍ता दिखाना है और यह कार्य प्रेमचन्‍द का वृहद साहित्‍य आज भी कर रहा है। जामिया मिल्लिया इस्‍लामिया के प्रो.दुर्गा प्रसाद गुप्‍त ने कहा कि प्रेमचन्‍द की भावनाएं उनके साहित्‍य में अभिव्‍यक्‍त हुई हैं, उन्‍होंने हमेशा मध्‍यम एवं निम्‍न वर्ग की वकालत की। कवि व आलोचक श्‍याम कश्‍यप ने प्रेमचन्‍द के पुनर्पाठ की आवश्‍यकता पर जोर दिया और कहा कि सामन्‍ती मूल्‍यों की जकड़न को प्रेमचन्‍द के साहित्‍य के माध्‍यम से ही समझा जा सकता है। उर्दू आलोचक प्रो.ए.ए. फातमी ने प्रेमचन्‍द द्वारा रचित उर्दू साहित्‍य के हवाले से प्रेमचंद के साहित्‍य पर प्रकाश डाला। युवा कथा लेखिका मनीषा कुलश्रेष्‍ठ एवं नरेन्‍द्र पुण्‍डरीक ने भी गोष्‍ठी में विचार व्‍यक्‍त किए। 
कार्यक्रम संचालन प्रो.ए.ए. फातमी ने किया तथा आभार गोष्‍ठी के संयोजक एवं केंद्र के प्रभारी प्रो.संतोष भदौरिया ने व्‍यक्‍त किया। अतिथियों का स्‍वागत विश्‍वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ.जयप्रकाश धूमकेतु ने किया।
गोष्‍ठी में प्रमुख रूप से कथाकार शेखर जोशी, वी.रा.जगन्‍नाथन, नीलम शंकर, के.के. पाण्‍डेय, मीना राय, नन्‍दल हितैषी, हिमांशु रंजन, संतोष चतुर्वेदी, जमीर अहसन, फखरूल करीम, पूनम तिवारी, पीयूष पातंजलि, अशोक सिद्धार्थ, प्रकाश त्रिपाठी, रेनू सिंह, यश मालवीय, रविनंदन सिंह, नरेन्‍द्र पुण्‍डरीक, श्रीप्रकाश मिश्र, अनिल भौमिक, जे.पी. मिश्र, रमेश ग्रोवर, कान्ति शर्मा, जयकृष्‍ण राय तुषार एवं शशिभूषण सिंह सहित बड़ी संख्‍या में साहित्‍य प्रेमी उपस्थित थे।

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