मंगलवार, 11 सितंबर 2012


नाटक देता है जीवन जीने की ऊर्जा –शशिकांत बुरहानपुरकर

हिंदी विवि में युवा नाट्य दिग्दर्शक एवं कलाकारों ने रंगमंच की स्थिति पर किया विमर्श

किसी भी व्‍यक्ति को कला से जीवन जीने की ऊर्जा मिलती है। नाटक भी ऐसी एक विधा है जिसे लिखते, रचते और खेलते समय लगातार जीवन जीने की प्रेरणा और ऊर्जा प्राप्‍त होती रहती है। आज के युवा नाट्य कलाकारों में वह ऊर्जा है जिससे नाट्य का क्षेत्र और समृद्ध होता जा रहा है। उक्‍त विचार डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाडा विश्‍वविद्यालय, औरंगाबाद के नाट्य शास्‍त्र विभाग प्रमुख, नाट्य दिग्दर्शक, लेखक तथा कॉमनवेल्‍थ स्‍कॉलरशिप प्राप्‍त प्रोफेसर शशिकांत बुरहानपुरकर ने व्‍यक्‍त किये।
      वे महात्‍मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के नाट्यकला और फिल्‍म अध्‍ययन विभाग, एसीटेज इंडिया तथा कैंपस थिएटर इलाहाबाद के संयुक्त तत्वावधान में  युवा दर्शकों के लिए रंगमंच : स्थिति और चुनौतियाँ विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन मंगलवार को ‘विश्‍वविद्यालय का रंगमंच : युवा दर्शक के विशेष संदर्भ में’ विषय पर विश्‍वविद्यालय के हबीब तनवीर सभागार में युवा नाट्य कलाकारों को संबोधित कर रहे थे। उन्‍होंने कहा कि विज्ञान का छात्र होते हुए भी मैंने नाटक को अपनाया और मराठी नाटकों पर पुस्‍तक लिखी। मराठी और लोककला का उल्‍लेख करते हुए उन्‍होंने कहा कि महाराष्‍ट्र में तमाशा, भारूड़ तथा खडी गंमत यह नाटकों की लोक पद्धतियां है। नाटक और जीवन के संबंध को बताते हुए उन्‍होंने कहा कि नाटक ही जीवन जीने का मार्ग है। इसे विभिन्‍न राज्‍यों की लोग भाषाओं ने और समृद्ध किया है। उन्‍होंने माना की जमीन से जुड़़े रहने के लिए लोकनाटकों का पता होना आज के युवा कलाकारों को सफल कलाकार बनने की अनिवार्य शर्त होनी चाहिए। उन्‍होंने कहा कि थिएटर गेम्‍स अॅलोपेथिक नहीं बल्कि हो‍मियोपेथिक है जिसका असर लंबे समय तक कलाकार एवं समाज पर बना रहता है। सत्‍यजीत रे और बाल नाटकों का जिक्र करते हुए उन्‍होंने कहा कि उनकी फिल्‍में देखकर ही बाल नाटकों पर काम करने की प्रेरणा मिल सकी। यूरोप तथा अन्‍य देशों में जाकर नाटकों के विविध पहलुओं पर काम कर चुके प्रो. बुरहानपुरकर ने थिएटर इन एज्‍युकेशन पर भी काम किया है। उनका कहना था कि यदि सरकार अपनी शिक्षा नीति में नाटकों पर खास तवज्‍जों देती है तो थिएटर में रोजगार की और अधिक संभावनाएं बन सकती है। उन्‍होंने हिंदी विश्‍वविद्यालय के आयोजन की इस पहल को रोजगार उपलब्‍ध कराने की दिशा में एक सकारात्‍मक कदम कहा।
      युवा रंगमंच : स्‍वरूप और आयम इस विषय पर आधारित सत्र की अध्‍यक्षता नाट्य कला एवं फिल्‍म अध्‍ययन विभाग के प्रभारी अध्‍यक्ष ओमप्रकाश भारती ने की। इस सत्र में विदर्भ का युवा रंगमंच तथा युवा दर्शकों की भूमिका पर युवा दिग्‍दर्शक, सकाल करंडक के समन्‍वयक,  कलाकार रूपेश पवार, नागपुर ने फर्स्‍ट बेल ऑन स्‍टेज संस्‍था के बारे में अपनी बात रखी। उन्‍होंने कहा कि लोगों तक नाटक आसानी से पहुँचाने के लिए घर के आस-पास ही थिएटर होने चाहिए। उन्‍होंने संस्‍था द्वारा बनाये गये कुछ नाटकों की प्रस्‍तुति भी दी। अध्‍यक्षीय उदबोधन में ओमप्रकाश भारती ने कहा कि झाडीपट्टी में नाटक और मनोरंजन के मसाले तथा तत्‍व है जो दर्शकों को अपनी और खिंच लाते हैं। नाट्य कला एवं फिल्‍म अध्‍ययन विभाग के असिस्‍टेंट प्रो. सतीश पावडे ने महाराष्‍ट्र सरकार की सांस्‍कृतिक नीति में महाराष्‍ट्र सरकार ने हाल ही में सांस्‍कृतिक नीति के तहत सभी विश्‍वविद्यालयों में नाट्य विभागों की स्‍थापना पर बल दिया है। इसके चलते इस क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं बढ़ सकेगी। इससे पूर्व प्रथम सत्र में बाल रंगमंच : विविध आयाम विषय पर आधारित तथा आशीष घोष की अध्‍यक्षता में संपन्‍न हुए सत्र में डॉ. सतीश पावडे ने रंगमंच और विशेष युवा दर्शक, डॉ. विधु खरे ने बाल रंगमंच में नाटयालेख की भूमिका तथा उसकी प्रयोगात्‍मक संभावनाएं तथा राजू सोनवने ने मराठवाडा का युवा रंगमंच और युवा दर्शक विषय पर विमर्श किया। इस अवसर पर विभिन्‍न विश्‍वविद्यालय, नाट्य संस्‍थाओं के प्रतिनिधि तथा विश्‍वविद्यालय के शोधार्थी एवं छात्र-छात्राएं बड़ी संख्‍या में उपस्थित थे।

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