‘रामविलास शर्मा एकाग्र’ पर हुआ विमर्श
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय
हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के इलाहाबाद क्षेत्रीय केंद्र
द्वारा ‘बीसवीं सदी का अर्थ : जन्मशती का संदर्भ’ श्रृंखला के तहत प्रगतिशील लेखक
संघ,
उ.प्र. के सहयोग से हिंदी के सुप्रसिद्ध आलोचक ‘रामविलास
शर्मा एकाग्र’ पर आयोजित दो दिवसीय समारोह के दूसरे दिन सत्य
प्रकाश मिश्र सभागार में ‘मार्क्सवादी आलोचना : अंतर्विरोध और विकास’
विषय पर आयोजित तीसरे सत्र की अध्यक्षता प्रदीप सक्सेना ने की। साहित्यकार कुमार पंकज ने
बीज वक्तव्य
दिया। वक्ता के रूप में भारत भारद्वाज, मूलचंद
गौतम, बजरंग बिहारी तिवारी
एवं रघुवंश मणि
मंचस्थ थे। समारोह में विद्वत वक्ताओं ने रामविलास शर्मा की ‘भाषा और समाज’,
‘महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरण’, ‘हिंदी जाति का साहित्य’, ‘भारत में अंग्रेजी राज और मार्क्सवाद,
‘भारतीय इतिहास और ऐतिहासिक भौतिकवाद’, ‘भारतीय संस्कृति और हिंदी प्रदेश’सहित कई रचनाओं पर सलीके से
परत-दर-परत पड़ताल कर गंभीर विमर्श किया।
अध्यक्षीय
वक्तव्य में प्रदीप सक्सेना ने कहा कि आज भारत में जो सबसे बड़ी समस्याएं हैं
और साहित्य में जो बड़ी अस्मिताएं हैं-नारीवाद, दलितवाद, आदिवासी- सभी शासकवर्ग के सामंतवाद के साथ गठजोड़ हैं। स्त्री विमर्श
करते समय हमें यह सोचने की जरूरत है कि झांसी की रानी की बहादुरी की चर्चा होती है
पर उदा देवी की बहादुरी की चर्चा क्यों नहीं होती है। डॉ. रामविलास शर्मा ने इतना
परिमाण में लिखा है और उनमें नई स्थापनाओं से हिंदी जनता का ध्यान आकर्षित किया
है। यह नव्यता परंपरागत मार्क्सवादी आस्थाओं में विच्छेद से आई जहां उन्होंने
भारत के संदर्भ में मार्क्सवाद की पुनर्व्याख्या की। उन्होंने सवाल उठाया कि
रामविलास जी 1913 में स्टालिन के एक लेख को पढ़कर जातीयता पर बहस करते हैं पर आज
के लेखकों में ऐसा क्यों नहीं।
बतौर
वक्ता डॉ.बजरंग बिहारी तिवारी ने कहा कि डॉ. रामविलास शर्मा
जातीय चेतना को ‘केवल भाषागत, प्रदेशगत चेतना’ नहीं मानते। वे
इसमें साम्राज्य विरोध के साथ सामंती रूढि़यों के विरोध और समाज को पुनर्गठित करने
की अवधारणाओं को शामिल करते हैं। उनका मानना है कि वर्ण और जाति व्यवस्था राष्ट्र निर्माण में सबसे बड़ी
बाधा है। उन्होंने ब्राह्मण संस्कृति पर टिप्पणी करते हुए लिखा है कि- ब्राह्मण संस्कृति में मौलिकता का अभाव व आम जनता से कटाव है, इसलिए ब्राह्मण संस्कृति का विनाश जरूरी है। वे स्वीकारते हैं कि
ब्राह्मण संस्कृति संस्कृत के बिना नष्ट नहीं हो सकती है। डॉ.तिवारी ने सवर्णों
द्वारा दलितों पर किए जा रहे अत्याचारों का खुलासा करते हुए बताया कि गोहाना में
60 बाल्मीकि के घर जलाए गए। 2007 में सालवन गांव में 300 दलितों के घर, करनाल में 160 घर जलाए गए। उड़ीसा में अप्रैल महीने में दलितों का पूरा
गांव जला दिया गया। अभी हाल ही में तमिलनाडु में 350 दलितों के घर को जलाया। हमारी
सत्ता इन दलितों को सुरक्षा नहीं दे पा रही है इसीलिए ‘दलिस्तान’ की मांग की जाने लगी है।
आलोचक
रघुवंश मणि बोले, रामविलास शर्मा की आलोचना को ठीक से समझना
है तो उनके आलोचना सिद्धांत के व्यापक परिप्रेक्ष्य में जाना पड़ेगा। साहित्यकार
भारत भारद्वाज ने कहा कि मार्क्सवादी आलोचना की शुरूआत प्रगतिशील लेखक संघ के गठन
के बाद हुई।
कार्यक्रम
के शुरूआत में कुलपति विभूति नारायण राय व मंचस्थ अतिथियों ने नन्दल हितैषी की
ताजा कविता संग्रह ‘छेनियों का दंश’ का
लोकार्पण किया। इलाहाबाद क्षेत्रीय केंद्र के प्रभारी एवं जन्मशती समारोह के संयोजक प्रो. संतोष भदौरिया ने स्वागत वक्तव्य दिया। विश्वविद्यालय के दूरस्थ
शिक्षा के क्षेत्रीय निदेशक डॉ.जय प्रकाश धूमकेतु ने संचालन किया तथा नरेन्द्र
पुण्डरीक ने आभार व्यक्त किया। स्वागत पुष्पगुच्छ प्रदान कर किया गया।
‘हिंदी जाति की अवधारणा : साहित्य और इतिहास’
पर आधारित चौथे सत्र की अध्यक्षता ‘इतिहासबोध’ के संपादक
लाल बहादुर वर्मा ने की। साहित्यकार चौथीराम यादव ने बीज वक्तव्य में कहा कि हिंदी की जातीयता बोध पैदा करने में रामविलास
शर्मा का बड़ा योगदान है। हिंदी प्रदेशों
में आज जिस तरह का रूढि़वाद, अंधविश्वास, जाति-बिरादरी, सम्प्रदायवाद है, क्या वह स्वागत
योग्य है। हिंदी जाति का अपना सांस्कृतिक इतिहास है। डॉ.शर्मा इस सांस्कृतिक इतिहास
को, समृद्ध, गौरवशाली परंपरा
को सामने रखकर हमें प्रेरित करते हैं। वक्ता के रूप में राजेन्द्र राजन, राजकुमार एवं कृष्ण मोहन ने रामविलास शर्मा की हिंदी जाति की अवधारणा पर विशद चर्चा
की। निरंजन सहाय
ने इस सत्र का संचालन किया तथा
प्रो.संतोष भदौरिया ने आभार व्यक्त किया। विद्वत
वक्ताओं के विमर्श से समारोह का समापन हुआ।
इस अवसर पर प्रो. सुरेश शर्मा,
प्रो.ए.ए.फातमी, नरेन्द्र सिंह, अकील
रिजवी, अजित पुष्कल, असरार गांधी, पीयूष पातंजलि, प्रभाकर सिंह,
निरंजन सहाय, प्रकाश त्रिपाठी, मुहम्मद
नईम, जियाऊल हक, सुधांशु मालवीय, नीलम शंकर, अनुपम आनन्द,
श्रीप्रकाश मिश्र, अशोक सिद्धार्थ,
कांतिलाल शर्मा, रविनंदन सिंह, अमित
विश्वास, विनय भूषण आदि प्रमुखता से उपस्थित थे। नामचीन और
अदब की दुनिया से जुड़े लोगों के अलावा सभागार में इलाहाबाद के साहित्य प्रेमियों
और बड़ी संख्या में विद्यार्थियों की मौजूदगी रामविलास जी की अहमियत पर मुहर लगा
रही थी।
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