भूमंडलीकरण की चुनौतियों से निपटने में सक्षम है हिंदी
महात्मा गांधी
अंतररराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में विश्व हिंदी दिवस (10 जनवरी) के अवसर पर । “ भूमंडलीकरण और हिंदी ” विषय
पर आयोजित परिचर्चा में बोलते हुए साहित्य
विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. सूरज पालीवाल ने कहा कि भूमंडलीकरण की जो सैद्धांतिकी है वो
एकरुपता के पक्ष में जाती है।वो मानती है कि अगर एक भाषा होगी तो भूमंडलीकरण के
विस्तार में मददगार साबित होगी। भारत एक बहुभाषा-बोली वाला देश है और साथ ही ये एक
बहुत बड़ा बाज़ार है। इसलिए हिंदी भाषा को भूंडलीकरण
के सामान्य परिवेश में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका को ध्यान में रखकर विकास के पथ पर
इस प्रकार बढ़ाना है जिससे कि उसकी संस्कृति भी सुरक्षित रहे तथा वैश्वीकरण एवं
बाजारवाद के दौर में हर प्रकार की चुनौतियों का सामना करने के लिए सक्षम हो। वे स्वामी
सहजानंद सरस्वती संग्रहालय के सभागृह में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। कार्यक्रम
की अध्यक्षता वित्ताधिकारी संजय गवई ने की।
प्रो. अनिल के राय अंकित ने अपने उदबोधन में
कहा कि हिंदी का विस्तार शांति एवं अहिंसा की विचारधारा का विस्तार
है। हिंदी आम जन के साथ-साथ उपभोक्ता की भी भाषा है। परिणामस्वरूप धीरे-धीरे हिंदी
वैश्विक अथवा ‘ग्लोबल’ बनती जा रही है।हिंदी
विश्व की तीसरी सबसे बड़ी भाषा कही जाती है।भारत के बाहर लगभग एक करोड़ बीस लाख
भारतीय मूल के लोग विश्व के 132 देशों में बिखरे हुए हैं जिनमें आधे से अधिक हिंदी
से परिचित ही नहीं उसे व्यवहार में भी लाते हैं। गत पचास वर्षों में हिंदी की शब्द
संपदा का जितना विस्तार हुआ है उतना विश्व की शायद ही किसी भाषा में हुआ हो। हिंदी
वर्षों से न केवल भारतीय संस्कृति के प्रसार का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम रही है, बल्कि
हिंदी ने संस्कृतियों के आदान-प्रदान में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हिंदी के
विकास में मीडिया का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि प्रिंट मीडिया के साथ-साथ
सिनेमा ने हिंदी को विश्व पटल पर स्थापित करने में सहयोग किया है। इस अवसरपर प्रमुख अतिथि के रूप में उपस्थित
श्री राजकिशोर ने कहा कि भूमंडलीकरण सीधा बाज़ारवाद से जुड़ा हुआ है।
बाज़ार का सीधा संबंध भाषा से है।आज किसी भी देशी-विदेशी कंपनी को अपना कोई उत्पाद
बाज़ार में उतारना है, तो उसकी
पहली नजर हिंदी क्षेत्र पर पड़ती है।इसलिए बाजारवाद के इस खतरे को व्यापक परिप्रेक्ष्य
में समझने की जरूरत है।
अपने अध्यक्षीय
उदबोधन में वित्ताधिकारी संजय गवई ने भारतीय संविधान में निहित प्रावधानों का उल्लेख
करते हुए कहा कि हमें इन प्रावधानों पर अमल करते हुए हिंदी को आगे ले जाना चाहिए।
उन्होंने हिंदी विश्वविद्यालय और हिंदी का संदर्भ देते हुए कहा कि विश्वविद्यालय
की स्थापना जिस
एक्ट के तहत हुई है उसके सेक्शन 4 में जो उद्देश्य बताये
गए है उसके अनुसार हमारा विश्वविद्यालय हिंदी के प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका
निभा रहा है। समाजविज्ञान
शब्दकोश और हिंदी समय जैसी महत्वाकांक्षी परियोजनाएं इसी दिशा में
उठाया गया एक अग्रगामी कदम है। कार्यक्रम का संचालन हिंदी अधिकारी राजेश यादव ने किया। इस अवसर पर साहित्यकार से. रा.
यात्री, प्रो. एस. कुमार, बहुवचन के संपादक अशोक मिश्र सहित अध्यापक, अधिकारी तथा
विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
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