हिंदी विश्वविद्यालय में हिंदी का महाकुंभ
1 से 5 फरवरी के दौरान ’हिंदी का दूसरा समय’ का भव्य आयोजन
वर्धा शहर में
मौसम के साथ फिजा भी बदल रही है। कारण है हिंदी के दूसरे महाकुंभ का करीब आना। महात्मा
गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में दि. 1 से 5 फरवरी के दौरान ‘हिंदी
का दूसरा समय’ कार्यक्रम का भव्य आयोजन किया जा रहा है, जिसमें 150 से अधिक
साहित्यकार,समाजशास्त्री, पत्रकार, नाटककार शिरकत करेंगे। समारोह का
उदघाटन 1 फरवरी को प्रात: 10 बजे अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ के प्रांगण में बने
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी सभागार में प्रो. नामवर सिंह करेंगे। समारोह की अध्यक्षता
कुलपति विभूति नारायण राय करेंगे। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो.
निर्मला जैन उपस्थित रहेंगी। उदघाटन सत्र का संचालन संयोजक असिस्टेंट प्रोफेसर
राकेश मिश्र करेंगे। पांच दिवसीय इस आयोजन में केदारनाथ सिंह, काशीनाथ सिंह, पूर्व
कुलपति प्रो. जी. गोपीनाथन, रमणिका गुप्ता, राजीव भार्गव, प्रदीप भार्गव, मोहन
आगाशे, वामन केंद्रे, पुण्य प्रसून वाजपेयी, नामदेव ढसाल, जे. वी. पवार, पुरूषोत्तम
अग्रवाल, बद्रीनारायण, अखिलेश, संजीव, जयनंदन, आनंद हर्शुल, शिवमूर्ति, कुणाल
सिंह, चंदन पाण्डेय, यशपाल शर्मा, अजित अंजुम, हरि प्रकाश उपाध्याय, जय प्रकाश
कर्दम, हेमलता माहेश्वर, प्रकाश दुबे, शशि शेखर, संदीप पाण्डेय, बी.डी. शर्मा,
प्रेमपाल शर्मा, रघु ठाकुर, प्रेम सिंह, चन्द्रप्रकाश द्विवेदी, कैलाश वनवासी,
मनोज रूपड़ा, महुआ माजी, सृंजय, भारत भारद्वाजश् एस.एन.विनोद तथा विकास मिश्र तथा
अन्य नामचीन हस्तियां उपस्थित रहेंगी।
विदित हो कि चार वर्ष पूर्व महात्मा गांधी
अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय ने पांच दिवसीय ‘हिंदी समय’ का आयोजन किया
था। ‘हिंदी का दूसरा समय’ के आयोजन के बारे में कुलपति विभूति नारायण राय ने कहा
है कि हिंदी समय के आयोजन के बाद के चार वर्षों में सभी क्षेत्रों में तेजी से
बदलाव हुए हैं और सूचना-संचार की विराटता के इस युग में हिंदी का दखल बहुत तेजी से
बढ़ता जा रहा है। दुनिया के तमाम देश भारत जैसे बड़े बाज़ार के निमित्त हिंदी को
अपने भविष्य का रास्ता मान रहे हैं। स्वयं हमारे विश्वविद्यालय में विदेशी
छात्रों की संख्या में दिनोंदिन होने वाली वृद्धि विश्व में हिंदी की बढ़ती
जरूरत और इसकी अपरिहार्यता का प्रतीक है। इसकी बढ़ती पहुँच के साथ इसके विरूद्ध
षडयंत्रों की भी शुरूआत हो चुकी है। विकिपीडिया के अनुसार कुछ वर्ष पहले विश्वभर
में संख्या के लिहाज से सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में जहाँ हिंदुस्तानी
का स्थान दूसरा था, अब हिंदी को चौथे पायदान पर लाया गया है और मजेदार बात तो यह
है कि शीर्ष की सौ भाषाओं में मैथिली, भोजपुरी, अवधी, हरियाणवी, मगही जैसी हिंदी
की बोलियों की गणना की गयी है। यह एक निर्विवाद तथ्य है कि इन्हीं बोलियों के
सम्मिलित रूप को हिंदी कहा जाता है। इनसे प्राप्त जीवन शक्ति से हिंदी फूलती है।
ठेठ हिंदी का ठाठ इन्हीं बोलियों के सौंदर्य से निर्मित होता है।
हमारी इस बढ़ती स्वीकार्यता का एक दूसरा
पहलू भी है। यदि हम गौर से देखें तो हमारा यह समय एक विराट विचारशून्यता का भी
है। हिंदी साहित्य में किसी नये सिद्धांत की बात तो दूर पिछले कई दशक से हम एक
सार्थक बहस चलाने में भी समर्थ नहीं हुए हैं। हमारी भाषा की अन्य अभिव्यक्तियाँ
मसलन दलित विमर्श, स्त्री-विमर्श आदि भी अन्य भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में किये
जा रहे कार्यों का एक अनुवादित संस्करण ही है। हिंदी सिनेमा जरूर किन्हीं हद तक
अपने नये मुहावरे में बात करने की कोशिश कर रहा है परंतु वहाँ भी बाज़ार और सनसनी
का एक ऐसा वातावरण पसरा है कि इस समय में श्याम बेनेगल, ऋत्विक घटक, मणि कौल जैसे
फिल्मकारों को ढूँढ़ना निरर्थकता ही मानी जाएगी।
कमोवेश ऐसी ही स्थिति हिंदी रंगमंच और इस
भूभाग की कलाओं की भी है। पिछले कई दशकों से कोई महत्वपूर्ण नाटक हिंदी में लिखा
या मंचित हुआ हो, याद नहीं आता। अन्य ललित कलाओं में भी कोई महत्वपूर्ण आंदोलन
इन प्रदेशों में दिखाई नहीं देता।
यह वक्त थोड़ा ठहर कर सोचने का है। ऐसा
नहीं कि हमारी ऊर्जा चुक गई है अथवा हम ऐसी जड़ता से निकलने की कोई कोशिश नहीं कर
रहे हैं। लेकिन उन कोशिशों को, जो इस विकल्पहीन होते समय में एक सार्थक विकल्प
रचने की कोशिश कर रहे हैं, एक साथ समग्रता में समझने की जरूरत है, नहीं तो उत्तर–आधुनिक
सोच हमें आश्वस्त करने में सफल हो जायेगी कि प्रत्येक विधा, प्रत्येक कला,
प्रत्येक अभिव्यक्ति अपने आप में स्वायत्त है और उसका समाज से भी कोई सीधा
संबंध नहीं है।
आयोजन के बारे में उन्होंने बताया कि हम यह
मानते है कि आप हमारे सरोकरों और चिंताओं से सहमत होंगे और पाँच दिनों तक 01 फरवरी
से 05 फरवरी, 2013 तक चलने वाले इस कार्यक्रम हिंदी का दूसरा समय में उत्साह और
तैयारी के साथ शिरकत करेंगे ताकि हिंदी की पहचान सिर्फ सबसे ज्यादा बोली जाने
वाली भाषा या सबसे बड़े बाज़ार की ही नहो, बल्कि वह समर्थ बने तो अपने सरोकारों के
कारण, अपनी अभिव्यक्ति की अपार संभावनाओं के कारण।
संगोष्ठी के संयोजक राकेश मिश्र ने कहा कि
हिंदी को विश्वभाषा बनाने की दिशा में विश्वविद्यालय का यह आयोजन सार्थक पहल के
रूप में साबित होगा। उन्होंने कहा कि हिंदी को लेकर पूरे विश्व में चल रही बहस
को यह आयोजन दिशादर्शक सिद्ध होगा। उन्होंने विश्वास जताया कि किसी विश्वविद्यालय
स्तर पर इतने बड़े पैमाने पर किया गया यह आयोजन साहित्य और समाज में अपनी एक अलग
पहचान बनाएगा। इस आयोजन को सफल बनाने के लिए विभिन्न समितियों का गठन किया गया
है।
हिंदी का दूसरा समय का मुख्य समारोह अनुवाद
एवं निर्वचन विद्यापीठ के प्रांगण में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी सभागार में सम्पन्न
होगा वहीं समानांतर सत्र सआदत हसन मंटो कक्ष(स्वामी
सहजानंद सरस्वती संग्रहालय), महादेवी वर्मा कक्ष, रामचंद्र शुक्ल कक्ष (समता
भवन), डी.डी. कौसांबी कक्ष( जनसंचार विभाग), स्वामी अछूतानंद सभागार (महापंडित
राहुल सांकृत्यायन केंद्रीय पुस्तकालय) में सम्पन्न होंगे। इन सत्रों में
हिंदी रचनाशीलता की पहुंच और उसका सामर्थ्य, नव राजनैतिक विमर्श में हिंदी की
उपस्थिति, संचार-सूचना की विराटता की वास्तविकता और हिंदी, सृजनात्मक अभिव्यक्ति के दृश्यमान आधार और
हिंदी, हिंदी जातीयता का सवाल और ज्ञान का उत्पादन, हिंदी प्रदेश की राजनीति और
प्रगतिशीलता आदि मुख्य विषयों पर विमर्श होगा। कार्यक्रम का समापन 5 फरवरी को
दोपहर 3.00 बजे हजारी प्रसाद द्विवेदी सभागार में होगा। इसमें वक्ता के रूप में
डॉ. बी. डी. शर्मा, रघु ठाकुर, राजेंद्र राजन, प्रो. प्रेम सिंह और प्रेमकुमार मणि
उपस्थित रहेंगे।
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