खत्म हो रही है जीवन से लयः केदारनाथ सिंह
हिंदी के विशिष्ट कवि केदारनाथ सिंह ने कहा है कि
जीवन
से लय खत्म हो रही है। कविता में भी संगीतात्मकता कम होती जा रही है। डा. सिंह
महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कोलकाता केंद्र द्वारा आयोजित
बांग्ला कविता संवाद कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि बहुत कम कवि
हैं जिनकी कविताओं में लय है। बांग्ला में यह विशेषता जीवनानंद दास, सुभाष
मुखोपाध्याय, सुनील गंगोपाध्याय, नीरेंद्रनाथ चक्रवर्ती, शंख घोष, शक्ति
चट्टोपाध्याय, नवनीता देवसेन, नवारुण भट्टाचार्य, जय गोस्वामी और अभीक मजुमदार की
कविताओं में हम देख सकते हैं।उन्होंने कहा कि इन कवियों की चुनिंदा रचनाओं का
हिंदी में अनुवाद हुआ है। डा. सिंह ने कहा कि अनुवाद रचना का पुनर्जन्म होता है।
उन्होंने कहा कि कविता वह है जिसे सुनकर मन में सन्नाटा हो जाए। इसे भी ध्यान रखा
जाना चाहिए कि कविता का असर धीरे-धीरे होता है। छोटी नदी के प्रवाह की तरह।
नेपाली के प्रसिद्ध कवि तथा भारत में
नेपाल के महावाणिज्य दूत चंद्र कुमार घिमेरे ने कहा कि समकालीन बांग्ला कविताओं में जीवन का संगीत है।
कविता में सौंदर्य व भाव बोध का संतुलन होना चाहिए और यह विशेषता आज की बांग्ला
कविता में हम पाते हैं। घिमिरे ने कहा कि आज की बांग्ला कविता में बडे ही सहज ढंग
से भावों की अभिव्यक्ति हुई है, जिसमें देश, समाज, जीवन के
उतार-चढ़ाव का यथोचित समावेश है। कविता में जीवन के किरदारों को जीवंत बनाना
अत्यंत कठिन होता है, आज के बांग्ला कवियों ने बड़ी आसानी से इसे दिखाया
है। घिमिरे ने अभीक मजुमदार की तीन कविताओं तृतीय विश्वेर गल्पो, इच्छापत्र
और परिवर्तन को उदाहरण के रूप में रखा। कवि-गायक मृत्युंजय कुमार सिंह ने कहा कि प्रकृति
प्रेमी हुए बिना कवि नहीं बना जा सकता और आज के बांग्ला कवियों के प्रकृति प्रेमी
होने का सहज ही पता चलता है।
बांग्ला के प्रसिद्ध कवि नवारुण
भट्टाचार्य ने कहा कि बांग्ला कविता की समृद्ध परंपरा है और भारतीय भाषाओं में
उसके स्रोत हम खोज सकते हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी भाषा की कविता को भाषा बंधन
से मुक्त होना चाहिए।बांग्ला के युवा कवि कवि अभीक मजुमदार ने कहा कि कविता जीवन
और प्रकृति से कटकर हो ही नहीं सकती।उन्होंने कहा कि 1971 के नक्सल प्रभावित दौर
और प्रशासन की निष्ठुरता ने बांग्ला के अनेक कवियों को रूपांतरित किया।कार्यक्रम का संचालन बांग्ला के युवा कवि
प्रसून भौमिक ने किया। स्वागत भाषण डा. कृपाशंकर चौबे ने तथा धन्यवाद ज्ञापन राजेंद्र
राय ने किया।
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