पड़ोसी राष्ट्रों में भी हो अनेकवादी व्यवस्था - पूर्व विदेश सचिव प्रो. मुचकुंद दुबे
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय
हिंदी विश्वविद्यालय के 16वें स्थापना दिवस के मौके पर समारोह के मुख्य अतिथि
पूर्व विदेश सचिव प्रो. मुचकुंद दुबे ने कहा कि भारत अनेकवादी व्यवस्था का देश
है। पड़ोसी राष्ट्रों ने भी इस व्यवस्था को आत्मसात करना चाहिए। विश्व रंगमंच
पर हमारी प्रतिष्ठा और प्रसिद्धि पड़ोसी राष्ट्र से अच्छे संबंध निभाने पर
निर्भर करती है। पड़ोसियों के साथ प्रतिकुल संबंध विश्व राजनीति में वांछित
भूमिका अदा करने में सबसे बड़ी बाधा हो सकती है।
समारोह की अध्यक्षता कुलपति विभूति नारायण राय ने की। इस अवसर पर विशेष
अतिथि के रूप में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लखनऊ पीठ के न्यायमूर्ति एस. एन.
शुक्ला, विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. कैलाश खामरे मंचासिन थे।
प्रो. दुबे ने ‘हम और हमारे पड़ोसी राष्ट्र’ विषय पर भारत की विदेश नीति,
आर्थिक दृष्टि, पड़ोसी राष्टों से द्विपक्षीय संबंध, पड़ोसी राष्ट्रों से पारस्पारिक
तथा सांस्कृतिक संबंध आदि संदर्भ में सारगर्भित और विस्तारपूर्वक व्याख्यान
में अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि पड़ोसियों के साथ हमारा प्रत्यक्ष असर
हमारी सुरक्षा पर पड़ता है। इसमें सामरिक और गैर-सामरिक दोनों प्रकार की सुरक्षा
शामिल है। चीन और पाकिस्तान से हमारी सुरक्षा को प्रत्यक्ष सामरिक खतरा है, जबकी
अन्य सभी पड़ोसी राष्ट्रों से हम गैर-सामरिक खतरें के साये में है। उन्होंने
माना कि पड़ोसी राष्ट्र आर्थिक मामलों में हमारे स्वाभाविक सहयोगी है। इसका कारण
है, भौगोलिक समीपता, सामान्य भाषाएं, धर्म एवं खान-पान की प्रणाली और उपनिवेशकाल
से चली आ रही सामान्य संस्थागत एवं भौतिक संरचना। पड़ोसी राष्ट्रों से पारस्पारिक
संबंधों का जिक्र करते हुए प्रो. दुबे ने कहा कि भारत जैसे अनेकतावादी समाज के लिए
पड़ोसी राष्ट्रों के साथ अच्छा संबंध निभाना और भी आवश्यक हो जाता है। पड़ोसी
राष्ट्रों में होनेवाली घटनाओं का अपने अनेकवादी समाज को एकबद्ध रखने की हमारी
क्षमता पर बहुत असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि अच्छे पड़ोसी के नाते हमें पड़ोसी
राष्ट्रों के साथ निरंतर संवाद बनाएं रखना चाहिए। संवाद में विराम नहीं होना
चाहिए। समस्याओं को कोल्ड स्टोरेज में न रखकर उसका तत्काल समाधान करना चाहिए। गुजराल
डॉक्ट्रिन का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि दिर्घकालीन लाभ के लिए हमें अल्पकालीन
नुकसान को त्यागना चाहिए। पड़ोसी राष्ट्रों में समृद्धि और स्थिरता बहाल करने के
लिए भारत को सजग एवं योजनाबद्ध रूप से काम करना चाहिए और इसके लिए आवश्यक पूंजी
निवेश करना चाहिए। एक सुझाव देते हुए उन्होंने कहा कि सार्क देशों का एक बृहत
विकास कोष बनना चाहिए। इसके लिए कम से कम पांच बिलियन डॉलर का पूंजी निवेश करना
चाहिए। जिससे न्यूनतम विकसित राष्ट्रों, जैसे बंगलादेश, नेपाल और भूटान की मानव
संपदा एवं भौतिक संरचना के विकास के लिए पूंजी निवेश किया जा सके। अगर सार्क के
अंतर्गत ऐसे कोष का निर्माण संभव न हो तो द्विपक्षीय स्तर पर भारत ऐसे कोष की स्थापना
कर सकता है। नेपाल और बंगलादेश के लिए ऐसी धनराशि उपलब्ध कराना भारत के लिए फायदे
का सौदा हो सकता है।
समारोह के विशेष अतिथि न्यायमूर्ति एस. एन. शुक्ला ने कहा कि पड़ोसी
राष्ट्रों के साथ अच्छे संबंध के लिए
भाषा एक प्रभावी माध्यम है और इसके लिए हिंदी ही एक असरदार भाषा हो सकती है। उन्होंने
माना कि पड़ोसी राष्ट्रों को हिंदी अपनाने का आग्रह करना चाहिए ताकि भाषा के माध्यम
से संबंधों में प्रगाड़ता आ सकें।
अध्यक्षीय उदबोधन में कुलपति विभूति नारायण राय ने कहा कि पिछले
आठ-दस वर्षों में पड़ोसी राष्ट्रों के बीच हमारी समझदारी विकसित हुई है। उन्होंने
बंगलादेश और पाकिस्तान आदि देशों के अधिकारियों के साथ आएं अनुभवों को साझा करते
हुए कहा कि हमें पड़ोसियों के साथ वार्तालाप करते समय संवेदना बरतनी पड़ती है। प्रो.
मुचकुंद दुबे के विधान को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि पड़ोसी राष्ट्रों
से अच्छे संबंधों के लिए पारस्पारिकता चलती रहनी चाहिए। विश्वविद्यालय के
सोलहवें स्थापना दिवस के विशेष महत्व का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि पिछले
पांच वर्षों में विश्वविद्यालय में छात्रों और कर्मियों की संख्या पांच गुणा बढ़
गई हैं तथा विश्वविद्यालय शैक्षणिक और संरचनात्मक गतिविधियों में अग्रसर हो रहा
है। कुलपति राय ने विश्वविद्यालय परिवार के सभी सदस्यों को इसके लिए धन्यवाद
दिया।
प्रारंभ में विश्वविद्यालय के छात्रों ने कुलगीत प्रस्तुत किया।
समारोह का प्रारंभ अतिथियों द्वारा दीप-प्रज्ज्वलन से हुआ। संचालन डॉ. प्रीति सागर
ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन कुलसचिव डॉ. कैलाश खामरे ने प्रस्तुत किया। समारोह
का समापन गांधीजी के प्रिय भजन वैष्णव जन की प्रस्तुति से हुआ। समारोह में प्रो.
अनंतराम त्रिपाठी, से. रा. यात्री, ममता कालिया, रवींद्र कालिया, प्रो. निर्मला
जैन, प्रो. विजय मोहन सिंह, पद्मा राय, डॉ. शोभा पालीवाल, विश्वविद्यालय के वित्ताधिकारी
संजय गवई, वरिष्ठ प्रोफेसर मनोज कुमार, प्रो सूरज पालीवाल, प्रो. सुरेश शर्मा,
प्रो. अनिल कुमार राय, प्रो. हनुमानप्रसाद शुक्ल, प्रो. देवराज, वर्धा के गणमान्य
नागरिक डॉ. ओपी गुप्ता, अनिल नरेडी, मुरलीधर बेलखोडे, प्रा. राजेंद्र मुंढे,
प्रा. धनजंय सोनटक्के, सुशीला टाकभोरे सहित विश्वविद्यालय के अधिकारी, अध्यापक,
कर्मचारी तथा छात्र-छात्राएं बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
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