सोमवार, 30 दिसंबर 2013

‘वर्धा हिंदी शब्द कोश’से वर्धा पुन: नेशनल मैप में –जिलाधिकारी नवीन सोना



मुझे इस बात का हर्ष हो रहा है और संभवत: मेरी जानकारी के अनुसार लगभग 300 भारतीय जिलों में वर्धा पहला जिला है और देश का यह पहला विश्‍वविद्यालय है जिसने कोश निर्माण करते हुए उस जिले की अहमियत को समझा और उसका नाम दिया ‘वर्धा हिंदी शब्‍दकोश’। ये बातें वर्धा जिला के जिलाधिकारी श्री एन. नवीन सोना ने महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा द्वारा निर्मित ‘वर्धा हिंदी शब्‍दकोश’ के लोकार्पण समारोह में कही। विश्‍वविद्यालय के 16वें स्‍थापना दिवस समारोह के उपलक्ष्‍य में 29 दिसंबर को नजीर हाट परिसर के प्रांगण में संपन्‍न लोकार्पण समारोह के अवसर पर आयोजित पुस्‍तक मेले में मंच पर विश्‍वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय, भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक तथा नया ज्ञानोदय के संपादक रवींद्र कालिया, ‘वर्धा हिंदी शब्‍दकोश’ के प्रधान संपादक प्रो. राम प्रकाश सक्‍सेना, प्रसिद्ध कथाकार से. रा. यात्री प्रमुखता से उपस्थित थे।

चेन्‍नई निवासी और अहिंदी भाषी एन. नवीन सोना ने अपने वक्‍तव्‍य से उपस्थित मंचासीन तथा श्रोतागण को यह बोध कराया कि शब्‍दों की सुंदरता के अनुसार अर्थनिर्मित शब्‍दकोश हमारे लिए बहुत ही उपयोगी होते हैं। उन्‍होंने अपनी साहित्यिक अभिरूचि को उल्‍लेखित करते हुए बताया कि फ्रेंच व जापानी भाषा सीखने के क्रम में मैंने शब्‍दों के टोन और ब्‍यूटी को समझा है। वर्धा आने से पूर्व मध्‍य प्रदेश में तीन साल की सेवा में मैंने हिंदी सीखी और अपने मित्रों के द्वारा हिंदी के भेजना व भिजवाना जैसे शब्‍दों के अर्थ आयाम को समझकर मुझे लगा कि शब्‍दों की सम्‍प्रेषणियता का अर्थ संवाद-आधारित होता है। हिंदी के प्रचार-प्रसार के  लिए वर्धा जैसी छोटी जगह पर होकर भी यह अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय नेशनल मैप में आ गया है। स्‍वतंत्रता के इतिहास में गांधी की गतिविधियों से वर्धा नेशनल मैप में आ गया था, ठीक उसी प्रकार हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा की गतिविधियों से पुन: वर्धा नेशनल मैप में छा गया है। यह मुझे यहां जिलाधिकारी रहते हुए अनुभव हुआ है। अध्‍यक्षीय वक्‍तव्‍य में विश्‍वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय ने कहा कि ‘वर्धा हिंदी शब्‍दकोश’ अन्‍य हिंदी शब्‍दकोशों के बिलकुल अलग है और इसके आनेवाले प्रत्‍येक संस्‍करणों में व्‍यवहार में आए हुए नये शब्‍दों को भी समाहित किया जाएगा, जैसे ऑक्‍सफोर्ड डिक्‍शनरी अपने शब्‍दकोश में करती है। कुलपति राय की शब्‍दगरिमा, अर्थगांभिर्य और व्‍यवहार कुलशलता से यह बात साफ झलकती है कि शब्‍दों की अर्थिता के लिए कथाकार कुलपति कितने सचेत हैं। उन्‍होंने बताया कि ‘वर्धा हिंदी शब्‍दकोश’ का छोटा संस्‍करण शीघ्र ही आएगा ताकि शब्‍दप्रेमी शब्‍दकोश के सहयात्री भी बन सकें। कुलपति की यह परिकल्‍पना और भी प्रशंसनीय है कि उन्‍होंने शब्‍दकोश के निरंतर अद्यतन हेतु विश्‍वविद्यालय में शब्‍दकोश सचिवालय की संपल्‍पना की है। महत्‍वपूर्ण बात यह भी है कि ‘वर्धा हिंदी शब्‍दकोश’ का प्रकाशन ने भारतीय ज्ञानपीठ नई दिल्‍ली ने किया है। ज्ञानपीठ के निदेशक रवीन्‍द्र कालिया ने कहा कि समय की व्‍यवहारिकता के अनुसार हिंदी की वर्तनियों में आंशिक परिवर्तन अनिवार्य है जिससे अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर हिंदी सहज हो जाती है। इस परिप्रेक्ष्‍य में यह ‘वर्धा हिंदी शब्‍दकोश’ प्रशंसनीय है, जिसे ज्ञानपीठ प्रकाशित करके गौरव का अनुभव भी करता है। प्रधान संपादक प्रो. राम प्रकाश सक्‍सेना ने कोश की सकारात्‍मक भूमिका बताते हुए अपने सहयोगियों को धन्‍यवाद दिया। लोकार्पण समारोह में से. रा. यात्री ने भी विचार रखे। अतिथियों ने भी ‘वर्धा हिंदी शब्‍दकोश’ की सराहना की। समारोह का संचालन डॉ. रामानुज अस्‍थाना ने किया तथा धन्‍यवाद ज्ञापन राजेश कुमार यादव ने किया। इस दौरान कथाकार ममता कालिया, प्रो. निर्मला जैन, श्रीमती पदमा राय, डॉ. शोभा पालीवाल, प्रो. सूरज पालीवाल, प्रो. सदानंद साही आदि की गरिमामय उपस्थिति रही साथ ही विवि के शिक्षक प्रो. के. के. सिंह, डॉ. अनिल पांडे, डॉ. डी.एन. प्रसाद, डॉ. अनवर अहमद सिद्दीकी, डॉ. वीर पाल सिंह यादव, डॉ. प्रीति सागर, राजेश लेहकपुरे, अख्‍तर आलम, बी. एस. मिरगे सहित छात्र-छात्राएं तथा वर्धावासी नागरिक बड़ी संख्‍या में उपस्थित थे।

1 टिप्पणी:

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