सोमवार, 10 मार्च 2014



अंतरराष्‍ट्रीय महिला दिवस पर हिंदी विवि में दो दिवसीय फिल्‍म महोत्‍सव सम्‍पन्‍न

महात्‍मा गांधी अन्‍तर्राष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के स्‍त्री अध्‍ययन विभाग द्वारा अन्‍तर्राष्‍ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर दो दिवसीय फिल्‍म समारोह के उदघाटन समारोह की अध्‍यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. गिरीश्‍वर मिश्र ने कहा कि ज्ञान का रिश्‍ता सीधे समाज से जोड़ने की आवश्‍यकता है। उन्‍होंने कहा कि हमें केवल स्‍त्री - पुरूष समानता ही नहीं बल्कि उसके आगे भी सोचना चाहिए। समारोह का उदघाटन 08 मार्च को हबीब तनवीर सभागार में हुआ। इस अवसर पर स्‍त्री अध्‍ययन विभाग के अध्‍यक्ष प्रो. शंभू गुप्‍त, प्रो. वासंती रामन, दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय के प्रो. प्रवीण कुमार, अमरावती विश्‍वविद्यालय की डॉ. निशा शेंडे, विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ. सुप्रिया पाठक मंचासीन थे। फिल्‍म महोत्‍सव का विषय था 'महिलाओं के विरुद्ध हिंसा और सिनेमाई रुख़'। कार्यक्रम की शुरूआत दुनिया की उन महिलाओं के लिए कैंडिल जलाकर किया गया, जो कभी न कभी किसी तरह की हिंसा का शिकार हुईं, जिन्‍होंने संघर्ष किया जो मारी गईं, जो संघर्ष कर रही हैं। 

     प्रारंभ में स्‍त्री अध्‍ययन तथा अन्‍य विभागों की छात्राओं और छात्रों ने ''तू जिंदा है तो, जिंदगी की जीत पर यकीन कर, अगर कहीं है स्‍वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर'' जिंदगी, जीत और संघर्ष का आहवान करते इस गीत को प्रस्‍तुत किया।      स्‍त्री अध्‍ययन विभाग द्वारा शुरू किए गए ब्‍लॉग का अनावरण प्रो. गिरीश्‍वर मिश्र ने किया। इस ब्‍लॉग का उद्देश्‍य विभाग की गतिविधियों को न केवल दुनिया के समक्ष रखना है बल्कि स्‍त्री-अध्‍ययन जैसे अकादमिक विषय के महत्‍व, उसकी ज़रूरत के साथ, स्‍त्री अध्‍ययन के विभिन्‍न आयामों को रचनात्‍मकता के साथ ब्‍लॉग जैसे आधुनिक माध्‍यम द्वारा दुनिया से जुड़ना भी है। कुलपति प्रो. गिरीश्‍वर मिश्र ने स्‍त्री अध्‍ययन विभाग को एक जिवंत विभाग बनाते हुए 8 मार्च के विभिन्‍न आयामों पर अपने विचार रखे। उन्‍होंने कहा कि स्त्रियां पुरूषों से समानता ही क्‍यों? उससे आगे की बात क्‍यों न करें? उन्‍होंने बच्चियों के कुपोषण और भेदभाव पर सवाल उठाते हुए कहा कि लोग आज भी बेटे और बेटियों के खानपान में भेदभाव करते हैं। फिल्‍म महोत्‍सव की प्रासंगिकता और महत्‍व के बारे में उन्‍होंने कहा कि जीवन को उजागर करने में सिनेमा का बड़ा योगदान है।
     मुख्‍य अतिथि वक्‍ता प्रवीण कुमार, सहायक प्रोफेसर, दिल्‍ली ने कुछ फिल्‍मों का विशेष रूप से उल्‍लेख किया। हिंदी फिल्‍में- 'मदर इंडिया','मिर्च मसाला','वाटर'जैसी फिल्‍मों में स्‍त्री पात्रों और उनके संघर्षों के बारे में भी बताया। अमरावती वि.वि. की डॉ. निशा शेंडे ने महिलाओं के साथ होनेवाली हिंसा के विभिन्‍न स्‍वरूपों पर चर्चा करते हुए कहा कि महिला आंदोलन की सबसे ज्‍़यादा ज़रूरत जहां है वहां है ही नहीं। उन्‍होंने महिला दिवस के आंदोलन को श्रमिक वर्ग तक पहुंचाने की आवश्‍यकता पर बल दिया। स्‍वागत भाषण प्रो. शंभु गुप्‍त ने उपस्थितों का स्‍वागत करते हुए 8 मार्च की प्रासंगिकता, स्‍त्री के प्रति सिनेमाई रूख़ को स्‍त्री अध्‍ययन जैसे विषय की चर्चा की। नाट्यकला एवं फिल्‍म अध्‍ययन के विभागाध्‍यक्ष प्रो. सुरेश शर्मा ने स्‍त्री के प्रति हिंसा और सिनेमाई रूख़ पर मूक से लेकर सवाक़ फिल्‍मों का जिक्र किया। उन्‍होंने '‍हरिश्‍चंद्र', 'जिंदगी','देवदास','औरत','अछूत कन्‍या','मदर इंडिया','बंदिनी','अंकूर','मिर्च मसाला','गुलाब गैंग' इत्‍यादि फिल्‍मों की चर्चा की। प्रास्‍ताविक में स्‍त्री अध्‍ययन विभाग की प्रोफेसर वसंती रामन ने कहा कि पूरे विश्‍व में महिलाओं का संघर्ष किसी एक आयाम को लेकर नहीं रहा है, बल्कि समग्रता में रहा है। उन्‍होंने 19 वीं और बीसवीं शताब्‍दी में दुनिया में विशेषकर पश्चिमी देशों में गैरबराबरी, शोषण के खिलाफ महिलाओं के आंदोलनों का जिक्र करते हुए कहा कि उन महिलाओं ने ब्रेड एण्‍ड रोजेज का नारा दिया। बेड एण्‍ड रोजेज' यानि हमारा संघर्ष सिर्फ रोटी के लिए नहीं है, हमारी लड़ाई ईज्‍ज़त, सम्‍मान की लड़ाई भी है, समानता की लड़ाई भी है। फिल्‍म महोत्सव में उदघाटन फिल्‍म के रूप में पाकिस्‍तानी फिल्‍म सेविंग फेसेज दिखायी गयी। समारोह में अध्‍यापक, कर्मी तथा छात्र प्रमुखता से उपस्थित थे।

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