सोमवार, 26 अगस्त 2013

मध्य भारत में आदिवासी अशांति : कारण, चुनौतियां और संभावनाएं विषय पर संगोष्‍ठी का उदघाटन

आदिवासियों के लिए सम्‍मानजनक जीवन की स्थिति पैदा हो-कुलपति विभूति नारायण राय

आदिवासियों के विकास के लिए बहु-आयामी नीति को अपनाकर उनके लिए सम्‍मानजनक जीवन जीने की स्थिति पैदा होनी चाहिए। उनका सम्‍मान बचाकर उन्‍हें समाज की मुख्‍य धारा में शामिल करने के लिए प्रयास होने चाहिए। उक्‍त उदबोधन महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय ने व्‍यक्‍त किये। वे विश्‍वविद्यालय के मानवविज्ञान विभाग द्वारा भारतीय समाज विज्ञान अनुसंधान परिषद तथा इंदिरा गांधी राष्‍ट्रीय मानव संग्रहालय के संयुक्‍त तत्‍वाधान में आयोजित दो दिवसीय (26 व 27 अगस्‍त)  राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी के उदघाटन समारोह की अध्‍यक्षता करते हुए बोल रहे थे। इस अवसर पर मंच पर विश्‍वविद्यालय के पूर्व प्रतिकुलपति तथा सुविख्‍यात मानवविज्ञानी प्रो. नदीम हसनैन, केंद्रीय गृह मंत्रालय में सलाहकार के. विजय कुमार, कुलसचिव डॉ. कैलाश खामरे तथा मानवविज्ञान विभाग के अध्‍यक्ष डॉ. फरहद मलिक उपस्थित थे।
अपने संबोधन में कुलपति राय ने कहा कि हम जिस क्षेत्र में है वह क्षेत्र भारत का मध्‍य क्षेत्र है। लगभग 150 किलोमीटर परिक्षेत्र में भारत की अधिकतर आदिवासी  इसी क्षेत्र में है। यहां जंगल, जल, खनिज संपदा और प्राकृतिक संपदा बृहत प्रमाण में मौजूद है। इसलिए इस क्षेत्र को प्राकृतिक सम्‍पदा की अधिक लूट हो रही है। बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों की नजर भी इस क्षेत्र पर मंडराती रही है। उनके लिए यह क्षेत्र लूट का अड्डा बना हुआ है। वे चाहते हैं कि इस क्षेत्र की सम्‍पदाओं पर अपना अधिकार जमाकर इसे वर्षों तक लूटा जा सके। हमें चाहिए कि विकास के नाम पर जो घटित हो रहा है उसे रोका जाए और विकास के समान तरीके इस्तेमाल कर आदिवासी समुदाय को भी इसकी भागीदारी मिल सके।


संगोष्‍ठी में बीज वक्‍तव्‍य प्रो. नदीम हसनैन ने दिया। अपने विद्वत्‍तापूर्ण वक्‍तव्‍य में उन्‍होंने दो मुद्दों को उठाया। एक सुरक्षा केंद्रित आंतरिक सुरक्षा और दूसरा सामाजिक-राजनीतिक लड़ाई। आदिवासी संघर्ष और असंतोष का जिक्र करते हुए उन्‍होंने कहा कि लगभग 150 जिलों में आदिवासी असंतोष व्‍याप्‍त है और इससे 30 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र प्रभावित हुआ है। इसके पीछे दो सौ वर्षों का इतिहास है। आदिवासियों को उनके जंगल और जमीन से बेदखल कर उनका शोषण किया गया। उनके विकास के लिए नीति तो बदली गयी परंतु व्‍यवहार वहीं रहा। विकास की केवल परत चढ़ाई गयी, इसका अपेक्षित परिणाम नहीं निकला। विकास के नाम पर बने हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्‍ट जैसी परियोजनाए बनी और इससे 3 से 5 करोड़ लोग विस्‍थापित हुए। इनमें से मात्र 20 प्रतिशत लोगों का ही पुनर्वास हो पाया। आदिवासी समुदाय के विस्‍थापन को लेकर उच्‍चतम न्‍यायालय ने जमीन के लिए जमीन का सिद्धांत अपनाया जाए और मुआवजा बाजार मूल्‍यों पर दिया जाए यह जो निर्णय दिया था उसे नजरअंदाज किया जा रहा है। आदिवासियों को पानी, शाला, अस्‍पताल और कृषि चाहिए ताकि वे लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था में अपना जीवनयापन कर सके।
इस अवसर पर सेवानिवृत्‍त आईपीएस अधिकारी तथा गृह मंत्रालय में सलाहकार के. विजय कुमार ने कहा कि आदिवासी विकास को लेकर सेंट्रल एप्रोच होना चाहिए। उनकी समस्‍याओं को सुलझाने के लिए उन्‍होंने फुटबाल मैच का उदाहरण दिया। सरकार और माओवाद के इस खेल में जनता को रेफरी की भूमिका में होना चाहिए ताकि दोनों के बीच जारी संघर्ष का समाधान निकाला जा सके। उन्‍होंने कहा कि संघर्ष को केवल पुलिस एक्‍शन से खत्‍म नहीं किया जा सकता। लोगों को जागरूक करते हुए इस समस्‍या का समाधान खोजने की बात विजय कुमार ने कही। इस अवसर पर मध्‍य भारत के आदिवासी :समस्‍याएं और संभावनाएंशीर्षक के पुस्‍तक तथा संगोष्‍ठी की स्‍मारिका एवं शोध संक्षेपिका का प्रकाशन मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया।

स्‍वागत वक्‍तव्‍य मानवविज्ञान विभाग के अध्‍यक्ष डॉ. फरहद मलिक ने दिया। उन्‍होंने संगोष्‍ठी की रूपरेखा प्रस्‍तुत कर भारतभर के विभिन्‍न विश्‍वविद्यालय तथा संस्‍थाओं से आए प्रतिभागियों का स्‍वागत किया। उदघाटन समारोह का संचालन मानवविज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. वीरेन्‍द्र प्रताप यादव ने किया तथा धन्‍यवाद ज्ञापन कुलसचिव डॉ. कैलाश खामरे ने किया। समारोह में वर्धा जिला पुलिस अधीक्षक अविनाश कुमार, वरिष्‍ठ आईपीएस आर. एस. गुप्‍ता, विजय रमण, विधान नायक, प्रो. व्‍यंकट राव, प्रो. शिव प्रसाद, प्रो. राम गंभीर, प्रो. विजय प्रकाश शर्मा,प्रो. जे. जे. रायबहादूर, डॉ. के. के. शर्मा, डॉ. पी. के. सिंह, आवासीय लेखक ऋतुराज, विनोद कुमार शुक्‍ल, प्रो. अनिल के. राय, प्रो. वासंती रमण, प्रो. शंभू गुप्‍त, प्रो. जोसेफ बारा,प्रो. राम शरण जोशी, कहानीकार संजीव, डॉ. अनिल कुमार पाण्‍डेय, प्रो. सुरेश शर्मा, डॉ. विधु खरे दास, डॉ. सतीश पावडे, डॉ. रामानुज अस्‍थाना, डॉ. निशीथ राय, डॉ. राजेश्‍वर सिंह, डॉ. सुरजीत कुमार सिंह, डॉ. ओम प्रकाश भारती, डॉ. रूपेश कुमार सिंह, रवि शंकर सिंह, बी. एस. मिरगे, राजेश यादव, अशोक मिश्र, अमित विश्‍वास,आशुतोष कुमार सहित देशभर के विभिन्‍न विश्‍वविद्यालय से आए मानवविज्ञानी, सामाजिक कार्यकर्ता, अध्‍यापक, अधिकारी एवं छात्र-छात्राएं बड़ी संख्‍या में उपस्थित थे। 

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