शनिवार, 14 सितंबर 2013

भारतीय भाषा दिवस के रूप में मना हिंदी दिवस

देश को जोड़ती है हिंदीः केदारनाथ सिंह

हिंदी के विशिष्ट कवि केदारनाथ सिंह ने कहा है कि भारत के लिए हिंदी एक पुल है। वह सेतु भाषा है। डा. सिंह आज महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित भारतीय भाषा दिवस समारोह को संबोधित कर रहे थे। हिंदी विश्वविद्यालय के कोलकाता केंद्र ने हिंदी दिवस को भारतीय भाषा दिवस के रूप में मनाया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डा. सिंह ने कहा कि सुनील गंगोपाध्याय की किताब 'मनेर मानुष' पहले हिंदी में आई, उसके बाद सुशील कांति के हिंदी अनुवाद के जरिए पंजाबी, मराठी व अन्य भारतीय भाषाओं में।
डा. सिंह ने कहा कि हिंदी भारत को जोड़ती है। आज भारतीय भाषा का हर साहित्यकार चाहता है कि उसकी कृतियों का हिंदी में अनुवाद हो और यह अच्छी बात है कि दूसरी भाषाओं के श्रेष्ठ साहित्य का हिंदी में लगातार अनुवाद हो रहा है। आज हिंदी की अखिल भारतीय भूमिका है। इसी भूमिका के कारण उसे भारत की एकता-समरसता बनाए रखने की जिम्मेदारी का निर्वाह करना होगा।  डा. सिंह ने कहा कि हिंदी की अनेक सहवर्ती भाषाएं हैं। जिन भाषा में तुलसी, सूर, विद्यापति और मीरा ने रचनाएं दी हैं, उन्हें बोली नहीं कहना चाहिए। उन्हें सहवर्ती भाषाएं कहना चाहिए।
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए 'जन अभिमत' के संपादक परमानंद सिंह ने कहा कि हिंदी को श्रमजीवी श्रेणी ने बचाकर रखा है। प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य डा. वेदरमण ने कहा कि हिंदी को भारतीय भाषा के रूप में मनाने का आह्वान सबसे पहले केदारनाथ सिंह ने 1998 में किया था जिसे महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय क्रियान्वित कर रहा है।

हिंदी के जाने-माने कवि-गायक मृत्युंजय कुमार सिंह ने कहा कि हिंदी को लोकप्रिय बनाने में हिंदी सिनेमा की बड़ी भूमिका है। कार्यक्रम की शुरुआत फातिमा कनीज द्वारा राजेश अरोड़ा लिखित हिंदी दिवस शीर्षक  कविता की आवृत्ति से हुई। उसके बाद डा. सत्यप्रकाश तिवारी, डा. वेदरमण पांडेय, उपेंद्र शाह, अम्बरीन अरशद, सोनी कुमारी सिंह, जया तिवारी, नीरु कुमारी सिंह, अभिषेक कुमार शर्मा और अमित कुमार राय ने हिंदी, बांग्ला, संताली, नेपाली, मणिपुरी, बांग्ला, असमिया की चुनिंदा कविताओं का पाठ किया। कार्यक्रम का संचालन हिंदी विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर तथा कोलकाता केंद्र के प्रभारी डा. कृपाशंकर चौबे ने किया। संगोष्ठी का सबसे बड़ा आकर्षण मृत्युंजय कुमार सिंह का भोजपुरी-नेपाली-हिंदी में काव्य संगीत पेश करना रहा। मृत्युंजय कुमार सिंह के गायन ने कार्यक्रम में उपस्थित लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

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