सोमवार, 23 सितंबर 2013

काशीनाथ सिंह ने अपने अप्रकाशित उपन्यास उपसंहार के अंतिम अंश का किया पाठ

उपसंहारः मानव योनि में कृष्ण के पुनर्जन्म का आख्यान

||उपन्यास अंश का पाठ करते काशीनाथ सिंह
पिछले पांच-छह दशकों में हिंदी के किसी गंभीर कथाकार ने पौराणिक आख्यान को अपना विषय नहीं बनाया। कृष्ण पर जिसने लिखा, उन्हें भगवान कृष्ण के रूप में देखा और भक्त भाव से देखा। सुप्रसिद्ध कथाकार काशीनाथ सिंह ने अभी-अभी कृष्ण पर एक उपन्यास खत्म किया है। काशीनाथ सिंह ने अपने इस अप्रकाशित उपन्यास 'उपसंहार' के आखिरी अंश का आज महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कोलकाता केंद्र में पाठ किया। यह उपन्यास द्वारकाधीश कृष्ण पर लिखा गया है यानी वह कृष्ण जो महाभारत के बाद द्वारका लौटते हैं, अपने गणराज्य का विकास करते हैं और यादव कुल का विनाश करते हैं और स्वयं एक सामान्य मनुष्य की मौत मरते हैं। डा. सिंह ने रचना पाठ के पहले अपने वक्तव्य में कहा कि कृष्ण संभवतः पहले व्यक्ति हैं जो उस युग में राजतंत्र के खिलाफ थे और जननायक थे। वे एक सामान्य आदमी की तरह नंदगांव की धूल-धक्कड़ में पले-बढ़े, ग्वालों के साथ खेले, रासलीलाएं कीं और कंस का वध किया। मथुरा में कंस वध से लेकर महाभारत तक वे ईश्वर की भूमिका में थे।
डा. सिंह ने कहा-'मेरी दृष्टि में वस्तुतः कृष्ण रणनीतिज्ञ या रणनीतिकार थे क्योंकि उस युग में असुरों, राक्षसों और अन्य राजाओं से लड़ने का सबसे ज्यादा अनुभव उन्हें ही था। उनसे सबसे बड़ी गलती यह हुई कि एक पक्ष में वे स्वयं हुए और दूसरे पक्ष में उनकी सेना थी। उसके पहले ऐसा उदाहरण नहीं मिलता कि सेनापति एक पक्ष में हो और उसकी सेना विपक्ष में हो। इस ऐतिहासिक गलती के कारण ही द्वारका का विनाश हुआ। यादव कुल का नाश हुआ। डा. सिंह ने कहा कि कुरुक्षेत्र महासंहार था तो महाभारत के 36 साल बाद द्वारका का हुआ ध्वंस उपसंहार था।  डा. वसुंधरा मिश्र, डा. प्रमथनाथ मिश्र, केके श्रीवास्तव, महेंद्र कुशवाहा, अभिजीत सिंह, उपेंद्र शाह और फातिमा कनीज ने उपन्यास के सुने हुए अंश पर संक्षेप में टिप्पणियां कीं। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए हिंदी के सुपरिचित युवा आलोचक, हिंदी-ओड़िया सेतु तथा पश्चिम बंग राज्य विश्वविद्यालय, बारासात के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. अरुण होता ने कहा कि यह उपन्यास ईश्वर कृष्ण पर नहीं, व्यक्ति कृष्ण पर है। उस कृष्ण पर है जो वृद्ध हो गए हैं और अपने भाई के हाथों मारे जाते हैं। यह उपन्यास धर्मांधता के विरुद्ध एक नया विमर्श आरंभ करेगा। उन्होंने कहा कि वृद्ध कृष्ण को अपने जीवन के आखिरी क्षण में राधा की याद आती है, इसके गहरे निहितार्थ हैं। कार्यक्रम का संचालन विश्वविद्यालय के वेब पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा की छात्रा सोनी कुमारी सिंह ने किया।  स्वागत भाषण हिंदी विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर तथा कोलकाता केंद्र के प्रभारी डा. कृपाशंकर चौबे ने और धन्यवाद ज्ञापन सहायक क्षेत्रीय निदेशक प्रकाश त्रिपाठी ने किया। कार्यक्रम की व्यवस्था करुणा गुप्ता, अम्बरीन अरशद, आफरीन जमान, जया तिवारी, अभिषेक कुमार शर्मा, अमित कुमार राय ने संभाली।

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