बुधवार, 12 जून 2013

विकल्प की खोज है सोशल मीडियाः अरुण कमल

हिंदी के विख्यात कवि अरुण कमल ने कहा है कि सोशल मीडिया विकल्प की खोज है। इससे उन लोगों को भी अपनी बात कहने का अवसर मिलता है जिनके पास संप्रेषण के दूसरे साधन नहीं हैं। क्रांतिकारी गायक पोल राब्सन को जब हाल नहीं मिला और उनके गाने पर अमेरिका व इंग्लैंड में पाबंदी लगाई गई तो  टेलीफोन कंसर्ट के जरिए उनके कार्यक्रम होते थे। उनके विश्वप्रसिद्ध गीत वी शैल ओवरकम को लाखों लोगों ने टेलीफोन पर ही सुना था। अरुण कमल महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कोलकाता केंद्र में सोशल मीडिया और साहित्य पर आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आज गूगल, माइक्रोसाफ्ट, याहू, फेसबुक पर इजारेदारों का कब्जा है। इनके जरिए अमेरिकी सरकार लोगों पर खुफियागिरी कर रही है और वह यदि चाहे तो एक सेकेंड में लोगों के सारे संपर्क समाप्त कर सकती है। विकीलिक्स के संपादक अंसाजे को वेस्टर्न यूनियन ने पैसा भेजना बंद कर दिया है।

अरुण कमल ने कहा कि एक तरफ ये सारे साधन व्यक्ति की आजादी को बढ़ाते हैं, दूसरी तरफ सत्ता व सरकार इस आजादी को जब चाहे छिन सकती है। बंगाल, दिल्ली और महाराष्ट्र में ऐसी घटनाएं घट चुकी हैं। इस अवसर पर ताजा टीवी के संपादक विपिन नेवर ने कहा कि आज दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका में सोशल मीडिया का प्रभाव काफी बढ़ चुका है और उसके प्रभाव में वहां की प्रिंट मीडिया ढह रही है। संगोष्ठी को भारतीय प्रेस परिषद के सदस्य विश्वंभर नेवर, डा. वसुंधरा मिश्र, कुशेश्वर, राजेंद्र राय, मंगलेश्वर राय और सुशील कांति ने भी संबोधित किया। आरंभ में विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर तथा कोलकाता केंद्र के प्रभारी डा. कृपाशंकर चौबे ने बीज वक्तव्य दिया। संगोष्ठी के उपरांत दूसरे सत्र में संवाद कार्यक्रम हुआ जिसमें कालीप्रसाद जायसवाल, रावेल पुष्प, सेराज खान बातिश, माधवी सिंह, जितेंद्र सिंह, जितेंद्र धीर, डा. सत्यप्रकाश तिवारी, अभिजीत सिंह, संतोष मिश्र, परमानंद सिंह, उत्तम बनर्जी, स्नेहांशु अधिकारी, प्रभाकर चतुर्वेदी ने भाग लिया।

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