शोधार्थियों में शोध वृत्ति जागृत करना अध्यापकों
का पहला काम : डॉ. कृपाशंकर चौबे
जाने-माने पत्रकार, स्तंभकार
और पत्रकारिता के प्राध्यापक डॉ. कृपाशंकर चौबे का कहना है कि एम.फिल. और
पीएच.डी. के शोधार्थियों में सबसे पहले शोध वृत्ति जागृत करने का आरंभिक कर्तव्य संबंधित
शोध निर्देशकों को निभाना चाहिए। डॉ. चौबे महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी
विश्वविद्यालय में भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के सहयोग से समाज
विज्ञान के शिक्षकों के लिए चल रहे क्षमता निर्माण कार्यक्रम को संबोधित कर रहे
थे। उन्होंने कहा कि यह शोध निर्देशकों का काम है कि वे शोधार्थियों को शोध की
महत्ता से परिचित कराएं और इसपर निगाह रखे कि शोधार्थी में शोध वृत्ति दब न जाए। डॉ.
चौबे ने कहा कि शोधार्थी में शोध की निरंतरता है कि नहीं इस पर भी निदेशक को सतत
निगाह रखनी चाहिए। उन्होंने कहा कि शोध प्रबंध को पुस्तक रूप में प्रकाशित करते
समय उद्धृत किए जाने वाले सभी तथ्यों का सत्यापन अवश्य कर लेना चाहिए। संदर्भ
ग्रंथों तथा टिप्पणियों की पुनर्जांच भी कर लेनी चाहिए। शोध प्रबंध को पुस्तक
रूप में तभी लाना चाहिए जब वह संबंधित क्षेत्र में मौजूदा ज्ञान को बढ़ाने में
सहायक हो। यह भी सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि शोध की दिशाएं अछूती तो नहीं रह गयी
हैं। शोधार्थी के मत-अभिमत का पता भी अवश्य ही उजागर होना चाहिए। इसके अलावा पूरे
प्रबंध में वर्तनी की एकरूपता होनी चाहिए। व्याख्यान के बाद डॉ. चौबे ने अध्यापकों
के प्रश्नों का जवाब भी दिया। आरंभ में स्वागत भाषण दूरस्थ शिक्षा के सहायक
प्रोफेसर अमित रा य ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. भदंत आनंद कौसल्यायन बौद्ध अध्ययन
केंद्र के प्रभारी डॉ. सुरजीत कुमार सिंह ने किया। इस अवसर पर संगोष्ठी के संयोजक
डॉ. रवीन्द्र बोरकर, प्रो. जयप्रकाश धूमकेतु, राकेश मिश्र, डॉ. सुनील सुमन, शरद
जायसवाल, डॉ. अनवर अहमद सिद्दीकी, डॉ. वीरपाल यादव, डॉ. आर. पी. यादव, चित्रा
माली, डॉ. विधु खरे दास, डॉ. राजीव रंजन राय, शैलेश कदम मरजी, अमरेन्द्र कुमार
शर्मा, डॉ. धनंजय सोनटक्के, राजेश यादव, शिवप्रिय, बी. एस. मिरगे, अमित विश्वास, मुन्नालाल गुप्ता समेत अन्य प्रतिभागी
उपस्थित थे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें