तार्किक बात कहना आज हिम्मत का काम
है और उसकी जरूरत भी। तार्किक बातें ही समाज को गहरे तक प्रभावित करती हैं और समाज
में परिवर्तनकामी चेतना भी फैलाती हैं। आज़ादी के आंदोलन के दौरान विरोधी विचारों का
भी सम्मान था, उस समय कटुता नहीं थी। आज अतार्किकता और फिरकापरस्ती का बोल-बाला है।
इलाहाबाद से निकलने वाली ‘अभ्युदय’ और ‘भविष्य’ दोनों पत्रिकाएं हमें आज
की चुनौतियों से टकराने की ताकत देते हैं। हमें याद रखना चाहिए कि क्रांतिकारियों
की भूख हड़ताल शहादत का रास्ता थी। हमें सचेत रहकर अतार्किकता और फिरकापरस्ती से
मुकाबला करना होगा।
उक्त बातें जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय
के पूर्व अध्यक्ष, आंदोलन की क्रांतिकारी धारा के अध्येता एवं गोष्ठी
के मुख्य वक्ता प्रो.चमन लाल ने महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के क्षेत्रीय केंद्र, इलाहाबाद द्वारा ‘‘कलम आज उनकी जय बोल : ‘अभ्युदय’ और ‘भविष्य’’
विषय पर आयोजित गोष्ठी में कहीं।
बतौर वक्ता डॉ.सुधांशु मालवीय
ने कहा कि सन् 1857 से लेकर आजादी प्राप्ति होने तक इलाहाबाद की महत्वपूर्ण
भूमिका रही है। 1877 ई. में हिंदी नवजागरण के सहयोद्धा बालकृष्ण भट्ट ने ‘हिंदी
प्रदीप’ की शुरूआत इलाहाबाद से की। ‘स्वराज’ उर्दू में तीन साल में 12
संपादकों को सजा हुई। ये सभी तथ्य हमारी स्मृतियों में होने चाहिए जिससे आगे का
रास्ता रोशन हो सके।
वरिष्ठ पत्रकार हिमांशु रंजन
बोले, भगत सिंह के वैचारिक पक्ष को आम पाठकों के सामने मजबूती से रखना ज्यादा
महत्वपूर्ण है। जब नवसाम्राज्यवाद का हमला बहुत भीषण है, पक्षधरता
खत्म हो रही है, प्रतिकार का स्वर लगभग गायब है ऐसे वक्त
हमारी क्रांतिकारी विरासत मीडिया के लिए आवश्यक है। आजादी के दौर में पत्रकारिता
एक औजार थी। आज मीडिया समाज का अराजनीतिकरण कर रहा है।
सामाजिक कार्यकर्ता सीमा आजाद ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए
कहा कि भगत सिंह को मैंने नए सिरे से जाना। मनुष्य के टूटने के क्रम में ये
क्रांतिकारी याद आते हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए इलाहाबाद शहर के वरिष्ठ
नागरिक एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जियाउल हक़ ने कहा कि, आज का जो मंजर हमारे
सामने है, उसके मद्देनज़र हमें अपनी तैयारी करनी चाहिए। चन्द्रशेखर
आज़ाद की शहादत के समय मैं पांचवीं कक्षा में था। हमारे वीर क्रांतिकारियों ने
मुकम्मल आजादी के लिए आवाज उठाई थी। कम्यूनल कार्ड खेलकर समाज को फिर बांटने की
कोशिश की जा रही है। हमें अपनी साझी विरासत को लेकर आज बढ़ना चाहिए।
क्षेत्रीय केंद्र, इलाहाबाद के प्रभारी एवं गोष्ठी
के संयोजक प्रो.संतोष भदौरिया ने गोष्ठी के आयोजन के उद्देश्य को स्पष्ट
करते हुए कहा कि भूमंडलीकरण और चरम उपभोक्तावाद के दौर में जब हमारी स्मृतियां धूमिल
हो रही हैं और नव उपनिवेशवाद के भँवर में आकर हम आर्थिक और सांस्कृतिक पराधीनता की
ओर बढ़ रहे हैं, तब हमारे लिए राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन का
पुन: स्मरण आवश्यक है क्योंकि वहां से प्रेरित होकर हम भारत का नवनिर्माण करने की
दिशा में अग्रसर हो सकते हैं। अतिथियों का स्वागत वरिष्ठ कवि नन्दल हितैषी ने
किया।
चन्द्रशेखर आजाद की स्मृति में आयोजित इस
गोष्ठी में प्रमुख रूप से अजित पुष्कल, अली जावेद, संजय श्रीवास्तव,
अनीता गोपेश, नीलम शंकर, सुरेन्द्र राही, नन्दल हितैषी, अविनाश मिश्र, संध्या नवोदिता, झरना मालवीय, सुनीता, मीना राय,
राजन, सत्येन्द्र सिंह, शिवम, विश्वविजय सहित तमाम युवा साथी मौजूद रहे।
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