पारंपरिक शिक्षा के साथ चले दूर शिक्षा -प्रो. सत्यकाम
हिंदी विश्वविद्यालय में दूर शिक्षा पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में वक्ताओं ने रखे विचार
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय तथा
भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में
दूर शिक्षा निदेशालय द्वारा आयोजित संगोष्ठी के दूसरे दिन रविवार को ‘वैकल्पिक,
पूरक शिक्षा बनाम पारंपरिक शिक्षा’ सत्र में अध्यक्षीय टिप्पणी करते हुए प्रख्यात
आलोचक एवं इग्नू के मानविकी संकाय के प्रो. सत्यकाम ने कहा कि दूरस्थ शिक्षा और
पारंपरिक शिक्षा साथ-साथ चलें न कि एक दूसरे के प्रति प्रतिस्पर्धा की भावना रखें।
आज परंपरागत विश्वविद्यालयों को मिल रहे सहयोग की तुलना में हमें सरकार उतनी
सहायता नहीं देती। उन्होंने कहा कि दूर शिक्षा के पाठ्यक्रम की किताबों को पढ़कर
बहुत से शिक्षक अपने परंपरागत शिक्षा केंद्रों में पढ़ाते है और प्रतियोगी
परीक्षाओं की तैयारी में इन पाठ्यक्रमों की मदद भी लेते हैं। उन्होंने चिंता
जताते हुए कहा कि आज निजी केंद्रों के माध्यम से दूर शिक्षा संचालित की जा रही है
जो कि विश्वसनीयता का संकट पैदा कर रही है। अपने वक्तव्य का समापन करते हुए
प्रो. सत्यकाम ने कहा कि आज यहां सभी वक्ताओं ने संक्षेप में विषय को लेकर काफी
उपयोगी बातें कही, जिनका इस्तेमाल हम भविष्य में कर सकते हैं। प्रो. कमलेश मिश्र
ने कहा कि आज दूर शिक्षा को लेकर जो आंकडे दिए जा रहे हैं वे शहरी इलाकों के आसपास
के है न कि ग्रामीण क्षेत्रों के हैं। नीलेश भगत ने कहा कि दूर शिक्षा में मोबाइल
सेवा का उपयोग किया जाना चाहिए। डॉ. आर. टी. बेन्द्रे, संजय खंडेलवाल, मनोज कुमार
आदि ने अपने विचार व्यक्त किये। प्रात: आयोजित सत्र में वी. के. श्रीवास्तव,
पुरंदर दास, शंभू शरण गुप्त, अर्चना शर्मा ने अपने पर्चे पढ़े जिस पर राजर्षि
पुरुषोत्तम दास टंडन मुक्त विश्वविद्यालय, इलाहाबाद के पूर्व कुलपति प्रो.
नागेश्वर राव ने अध्यक्षीय टिप्पणी की। सत्र का संचालन दूर शिक्षा के सहायक
प्रोफेसर शंभू जोशी ने किया। इस मौके पर दूर शिक्षा विभाग के प्रो. रामशरण जोशी,
डॉ. जयप्रकाश राय, अमित राय, अमरेन्द्र शर्मा, शैलेश कदम मरजी, संदीप सपकाले,
सुशील पखिड़े, विनोद वैद्य आदि सहित छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।
प्रो. के. एल. खेड़ा ने दी योजनाओं की जानकारी
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी
विश्वविद्यालय तथा भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के संयुक्त
तत्वावधान में दूर शिक्षा निदेशालय द्वारा आयोजित संगोष्ठी के दूसरे दिन रविवार
को भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के निदेशक प्रो. के. एल. खेड़ा ने अनुसंधान
के लिए शोधकर्ताओं को धन मुहैया कराने से संबंधित तमाम योजना और कार्यक्रमों के
बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान की। उन्होंने कहा कि शोध के लिए बड़े शहरों
के प्रस्तावों की तुलना में छोटे शहरों से आने वाले प्रस्ताव परिषद द्वारा तय किये
गये मानक के अनुरूप नहीं होते है। ऐसे में इन प्रस्तावों को अस्वीकृत कर दिया
जाता है। उन्होंने कहा कि शोध प्रारूप बनाते समय तीन बिदूओं पर विशेष ध्यान देना
चाहिए, वह तीन बिंदू है- शोध प्रारूप में आप क्या करना चाहते हैं, क्यों करना
चाहते हैं और कैसे करना चाहते है। इन बिंदूओं पर आधारित शोध प्रारूप बनाया जाए तो
इसे परिषद द्वारा स्वीकार कर उस शोधार्थी को धन मुहैया कराने में मदद मिल सकती
है। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति तथा दूर शिक्षा निदेशालय के निदेशक
प्रो. ए. अरविंदाक्षन ने कहा कि शिक्षकों के विकास के लिए एक प्रस्ताव भारतीय
सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद को भेजा जाएगा जिसके स्वीकृत होने पर शोध प्रविधि
पर एक कार्यशाला का आयोजन किया जाएगा और इस कार्यशाला के माध्यम से शिक्षक तथा
शोधार्थी लाभान्वित हो सकेंगे। इस दौरान नांदेड के आर. टी. बेन्द्रे, रानी
दूर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर के अकादमिक स्टाफ कॉलेज के निदेशक प्रो. कमलेश
मिश्र, प्रो. रामशरण जोशी, डॉ. जयप्रकाश राय, अमित राय, अमरेन्द्र शर्मा, डॉ.
प्रीति सागर, शैलेश कदम मरजी, संदीप सपकाले, चित्रा माली, डॉ. अख्तर आलम, राजेश
लेहकपुरे, डॉ. वीर पाल सिंह यादव, राकेश यादव, राजेन्द्र कटरे, हर्षा, प्रदीप
त्रिपाठी, अनिल विश्वा, शम्भू शरण गुप्त, रफिक अली, यदुवंश यादव, मो. अमीर
पाशा, राम शंकर पाल, विकास चंद्र, बलवीर सिंह, अमृत कुमार, रूद्रेश नारायण, अनुपमा
कुमारी, संजय खंडेलवाल रांची, अजय कुमार सरोज, कुमारी अंकिता मिश्रा आदि सहित
छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।
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