हिंदी विवि में प्राकृतिक रंगों से हर्बल होली
महात्मा
गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय इस वर्ष प्राकृतिक रंगों से हर्बल होली
खेलेगा। प्रकृति प्रेमी विश्वविद्यालय के पर्यावरण क्लब की ओर से इस बात के लिए
अनुरोध किया गया है।
कुलपति विभूति नारायण राय से पूछने पर उन्होंने
बताया कि होली के पावन अवसर पर हमलोग अक्सर रासायनिक तत्वों से युक्त रंगों का
इस्तेमाल करते हैं। ये रंग हमारे लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं। इनसे स्किन एलर्जी
होना आम बात है और साथ ही आंख व सिर के बाल भी बुरी तरह से प्रभावित होते हैं। शोधों
से पता चलता है कि कई रंग ऐसे खतरनाक रसायनों से बनाए जाते हैं जिनसे कैंसर तक
होने का खतरा बना रहता है। हमारा विश्वविद्यालय प्रकृति के प्रति अतिसंवेदनशील
है। हमारा यह प्रयास रहेगा कि पलाश के फूलों से बनाए रंगों से इस वर्ष होली का
आनंद उठायें जिससे पानी का कम से कम उपयोग हो।
पर्यावरण
क्लब के प्रभारी अनिर्बाण घोष ने बताया कि विश्वविद्यालय परिसर के आसपास कोई
तालाब नहीं है। पक्षी प्यासे रह जाते हैं। कुलपति जी के मार्गदर्शन में परिसर में
जगह-जगह पानी के बर्तन रखे जाएंगे ताकि पक्षी को पानी मिल सके। गौरतलब है कि 212
एकड़ में फैले परिसर में 99 एकड़ भूमि को ‘ग्रीन जोन बेल्ट’ घोषित किया गया है। इस भूमि में कई हजार पेड़-पौधे लगाए गए
हैं। कभी उजाड़ सी दिखने वाली पहाड़ी में हरियाली आकर्षित करती है।
गांधी व कबीर पार्कों को दर्शनीय स्थल के रूप में जाना जाने लगा है। परिसर में सीवरेज
ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जा रहे हैं जिनमें सीवर का पानी शुद्ध होकर पौधों की सिचाई
में काम आएगा। निश्चित रूप से यह परिसर अब हरा भरा दिखने लगा है।
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