हिंदी विश्वविद्यालय में मराठी दिवस समारोह सम्पन्न
सामान्य लोगों की मुक्ति का उदगार है भाषा- डॉ. किशोर सानप
कोई भी भाषा लिखने के लिए पैदा नहीं हुईं, वह एक
दूसरे से संपर्क करने और जोड़ने के लिए पैदा हुई हैं। भाषा के संपर्क में आने से
हम एक दूसरे की संवदेना और भावनाओं को समझ पाते है। भाषा सर्वसामान्य लोगों की
मुक्ति का सशक्त उदगार है। उक्त विचार मराठी के जाने-माने लेखक, आलोचक एवं उपन्यासकार
डॉ. किशोर सानप ने व्यक्त किये। वे महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय
में गुरूवार, 28 फरवरी को मराठी दिवस समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। उन्होंने
‘मराठी: वि. वा. शिरवाडकर का योगदान’
विषय पर अपना व्याख्यान दिया। स्वामी सहजानंद सरस्वती संग्रहालय में आयोजित
समारोह की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के भाषा विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो.
हनुमानप्रसाद शुक्ल ने की। समारोह में प्रमुख अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय के कुलसचिव
डॉ. कैलाश खामरे तथा यशवंत महाविद्यालय, सेलु के प्रो. राजेन्द्र मुंढे मंचासीन थे।
डॉ. सानप ने मराठी भाषा के उदयकाल का उल्लेख
करते हुए अपने सारगर्भित वक्तव्य में कहा कि मराठी का उदय 2500 साल पूर्व का
माना जाता है। संत ज्ञानेश्वर ने पसायदान के माध्यम से इस भाषा को ‘अमृत जैसी
मीठी’ माना था। चक्रधर स्वामी में 11वी शताब्दी में मराठी भाषा को एक नई उंचाई
दी। कालीदास से लेकर एकनाथ, नामदेव और तुकाराम जैसे संतों ने तो मराठी का उपयोग कर
इस भाषा को और समृद्ध किया। कुछ लोगों द्वारा भाषा को लेकर चिंता व्यक्त की जाती
है, इस पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि अस्तित्व में मौजूद नहीं है ऐसे
प्रश्नों को उपस्थित करना और समाज में उपस्थित प्रश्नों के उपर ध्यान न देना
कुछ लोगों का काम होता हैं। उन्होंने माना कि भाषा से संबंधित सभी सवालों का हल
समाज के पास ही है। उन्होंने मातृभाषा में शिक्षा प्रदान कर समाज को शिक्षित करने
की आवश्यकता पर बल दिया।
‘मराठी दिवस का महत्व’ विषय पर लेखक,
पत्रकार राजेन्द्र मुंढे ने कहा कि ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानीत विष्णू वामन
शिरवाड़कर का जन्म दिवस मराठी दिवस के रूप में मनाया जाता है। वि.वा. शिरवाड़कर
का जन्म 27 फरवरी 1912 को हुआ था। उन्होंने शिरवाड़कर द्वारा लिखित तथा कवि
गुलजार द्वारा हिंदी में अनूदित कविता रीढ़ प्रस्तुत की।
कुलसचिव डॉ. कैलाश खामरे ने विश्वविद्यालय
में हाल में मराठी डिप्लोमा पाठ्यक्रम चल रहा है, इसे आगे बढ़ाते हुए विश्वविद्यालय
ने निर्णय लिया है कि 12वीं योजना में मराठी में एम.ए., एम.फिल. और पी.एचडी.
पाठ्यक्रम आरंभ किये जाएं। अध्यक्षीय उदबोधन में प्रो. हनुमानप्रसाद शुक्ल ने कहा
कि भाषा किसी भी जीवित समाज का उदाहरण होती है। भाषा एक बहता नीर है और मराठी भाषा
भारतीय भाषाओं की एक सशक्त विरासत है। मराठी-हिंदी एक दूसरे को लेकर चलनेवाली
भाषाएं हैं। उन्होंने कहा कि मराठी भाषा के इतिहास की पड़ताल करते समय उसके भूगोल
की भी पहचान करना जरूरी है। वि. वा. शिरवाड़कर के साहित्य का उल्लेख करते हुए
उन्होंने कहा कि ‘विशाखा’ जैसी कृतियों के माध्यम से उन्होंने राष्ट्रीय
आंदोलन में एक नई चेतना भर दी थी। वे समय के साथ लिखने वाले प्रतिभाशाली कवि और
लेखक थे। प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत दूरशिक्षा निदेशालय में सहायक प्रोफेसर
संदीप सपकाले, शैलेष कदम मरजी, अनुवाद एवं निर्वयन विद्यापीठ के सहायक प्रोफेसर
डॉ. अनवर अहमद सिद्दीकी तथा मराठी डिप्लोमा की अध्यापिका सुषमा लोखंडे ने किया। समारोह
का संचालन जनसंपर्क अधिकारी बी. एस. मिरगे ने किया तथा आभार डॉ. अनवर अहमद
सिद्दीकी ने माना। इस अवसर पर मीडियाविद प्रो. रामशरण जोशी, अनुवाद एवं निर्वचन
विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. देवराज, बहुवचन के संपादक अशोक मिश्र, दूरशिक्षा के
क्षेत्रीय निदेशक डॉ. जयप्रकाश धूमकेतु, सहायक
प्रोफेसर डॉ. डी. एन. प्रसाद, डॉ. अशोकनाथ त्रिपाठी, डॉ. हरीष हुनगुंद, डॉ. सुनील
कुमार सुमन, राजेश लेहकपुरे, संदीप वर्मा, हिंदी अधिकारी राजेश यादव, सहायक संपादक
राकेश श्रीमाल, व्याकरण अनुषंगी श्रीरमण मिश्र, पत्रकार राजेश मड़ावी सहित अध्यापक,
अधिकारी, कर्मी एवं छात्र-छात्राएं बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
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