मंगलवार, 19 मार्च 2013


गुणवत्‍तापूर्ण हो दूर शिक्षा : प्रो.अरविंदाक्षन

हिंदी विवि में दूर शिक्षा की सामाजिक प्रासंगिकता पर आधारित त्रिदिवसीय राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी का हुआ समापन

दूर शिक्षा का मतलब सिर्फ डिग्रियां देना नहीं है अपितु यहां के विद्यार्थी सामाजिक-आर्थिक व सांस्‍कृतिक विकास में अपना अभिन्‍न योगदान दे सकें। वर्ल्‍ड बैंक, आईएमएफ के इशारे पर चलने वाली शिक्षा व्‍यवस्‍था से हमारा सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता है। परंपरागत शिक्षा की भांति ही हमें दूर शिक्षा के प्रति लोगों में विश्‍वास जगाना होगा। दूर शिक्षा को रोजगारपरक पाठ्यक्रमों के साथ ही बेहतर नागरिक कैसे बने, इस पर भी हमें ध्‍यान देने की जरूरत है। हमारा यह प्रयास हो कि दूर शिक्षा गुणवत्‍तापूर्ण हो।                                                           उक्‍त उदबोधन महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा के प्रतिकुलपति व दू‍र शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो.ए.अरविंदाक्षन ने व्‍यक्‍त किए। वे विश्‍वविद्यालय व भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद, नई दिल्‍ली के संयुक्‍त तत्‍वावधान में दूर शिक्षा की सामाजिक प्रासंगिकता विषय पर आयोजित त्रिदिवसीय राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी के समापन सत्र में अध्‍यक्षीय वक्‍तव्‍य देते हुए बोल रहे थे।
      हबीब तनवीर सभागार में आयोजित भव्‍य समापन समारोह में भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद, नई दिल्‍ली के निदेशक प्रो.के.एल.खेड़ा ने संगोष्‍ठी में उपजे विमर्शों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यहां तीन दिनों में जो शोध पत्र पढ़े गए उसे पुस्‍तकाकार रूप देने में हम यथायोग्‍य मदद करेंगे ताकि यह दूर शिक्षा के लिए मील का पत्‍थर साबित हो। उन्‍होंने कहा कि दूर शिक्षा में बढ़ रहे वाणिज्‍यीकरण को हमें रोकना होगा। शिक्षा द्वारे-द्वारे की भावना को साझा करते हुए उन्‍होंने कहा कि सुदूरवर्ती क्षेत्रों तक शिक्षा पहुंचाने के लिए हमें स्‍थानीय भाषा में पाठ्य सामग्री उपलब्‍ध कराना होगा।
      स्‍त्री अध्‍ययन विभाग की प्रो.वासंती रामन ने कहा कि आज की शिक्षा व्‍यवस्‍था को देखकर लगता है कि हमारी कल्‍याणकारी राज्‍य की अवधारणा खतम होती जा रही है। उन्‍होंने सवाल उठाया कि क्‍या गुणवत्‍तापूर्ण शिक्षा सिर्फ अमीरों के लिए है। दूर शिक्षा में तकनीक आधारित शिक्षा की बात की जा रही है। तकनीक आधारित व्‍यवस्‍था हमें सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक व सांस्‍कृतिक संदर्भों से हटाकर रोबोट में तब्‍दील कर रहे हैं। विश्‍व बैंक जैसी संस्‍थाओं की नीतियां यही बताती है कि हम रोबोट में तब्‍दील होकर काम करें, कोई सवाल न करें। दूर शिक्षा में सिर्फ रोजगार के पाठ्यक्रम ही नहीं हो अपितु सामाजिक विज्ञान के विषयों को यथायोग्‍य स्‍थान दिया जाना चाहिए। दलितों, महिलाओं के विकास हेतु पाठ्यक्रमों को अपनाए जाने की जरूरत है।
      कार्यक्रम का संचालन दूर शिक्षा निदेशालय के क्षेत्रीय निदेशक डॉ.जे.पी.राय ने किया तथा कुलसचिव डॉ.के.जी.खामरे ने आभार व्‍यक्‍त किया। इस अवसर पर प्रो.रामशरण जोशी, प्रो.संतोष भदौरिया, प्रो.सुरेश शर्मा, डॉ.बी.के.श्रीवास्‍तव, अशोक मिश्र, डॉ.रवीन्‍द्र टी.बोरकर, संगोष्‍ठी के संयोजक अमरेन्‍द्र कुमार शर्मा, शैलेश मरजी कदम, डॉ.सुरजीत कु.सिंह, डॉ.अशोक नाथ त्रिपाठी अनिर्बाण घोष, अमित राय, सुनील कु.सुमन, चित्रा माली, विधु खरे दास, अमित विश्‍वास, रयाज हसन सहित बड़ी संख्‍या में अध्‍यापक, शोधार्थी और विद्यार्थी मौजूद रहे। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें