रविवार, 21 अप्रैल 2013



 सृजन एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया -त्रिपुरारी शरण

दूरदर्शन के महानिदेशक ने बताए फिल्‍म बनाने के तौर-तरीके

सृजन एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया होती है। यदि आप सच्‍चे सृजनधर्मी है तो आपको मानसिक और शारीरिक रूप से बलवान होना पड़ता है। मेरी‍ फिल्‍म वो सुबह किधर निकल गयी  जीवन, आकांक्षा और महत्‍वाकांक्षा और सत्‍य-असत्‍य के बीच कितना तनाव होता है इसे पकड़ने की कोशिश करती है। इस आशय के विचार दूरदर्शन के महानिदेशक, भारतीय फिल्‍म एवं टेलीविजन संस्‍थान, एफटीआईआई पुणे के पूर्व निदेशक त्रिपुरारी शरण ने व्‍यक्‍त किये।
वे महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय में भारतीय सिनेमा के सौ साल के उपलक्ष्‍य में आयोजित विशेष व्‍याख्‍यान में रविवार को बतौर मुख्‍य अतिथि बोल रहे थे। कार्यक्रम की अध्‍यक्षता कुलपति विभूति नारायण राय ने की। इस अवसर पर त्रिपुरारी शरण द्वारा निर्देशित फिल्‍म वो सुबह किधर निकल गयी का प्रदर्शन किया गया। प्रदर्शन के उपरांत प्रतिभागियों से रूबरू होते हुए उन्‍होंने फिल्‍म बनाने की तक‍नीक और खुबियों के बारे में अपने विचार रखे। प्रतिभागियों से फिल्‍म के बारे में पूछे गये सवाल का उन्‍होंने समाधान किया। उन्‍होंने कहा कि यह फिल्‍म दुनिया के 12 देशों में प्रदर्शित की गयी। इस फिल्‍म के में जीवन के संघर्ष को दर्शाया गया है। इसकी पटकथा वास्‍तविकता पर आधारित है।
अध्‍यक्षीय उदबोधन में कुलपति राय ने कहा कि विश्‍वविद्यालय के नाट्यकला एवं फिल्‍म अध्‍ययन विभाग द्वारा पहली बार इस प्रकार के पाठ्यक्रम का आयोजन हमारे लिए एक विलक्षण अनुभव सा है। जितनी कल्‍पना नहीं की गयी थी उससे अधिक रिस्‍पांस इसको भारत को कोने-कोने से मिला। प्रतिभागियों की उत्‍सुकता और उत्‍साह को देखते हुए विश्‍वविद्यालय भविष्‍य में इस प्रकार के आयोजनों को व्‍यापक स्‍तर पर सफल कर सकेगा। उन्‍होंने नाट्यकला विभाग के अध्‍यक्ष प्रो.सुरेश शर्मा समेत सभी अध्‍यापकों और आयोजन समिति की प्रशंसा की। प्रारंभ में सृजन विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. सुरेश शर्मा ने त्रिपुरारी शरण का परिचय दिया। कुलपति राय ने स्‍मृतिचिन्‍ह देकर त्रिपुरारी शरण का स्‍वागत किया। रविवार की शाम त्रिपुरारी शरण की ही और एक फिल्‍म ‘जब दिन चले रात चले का प्रदर्शन हबीब तनवीर सभागार में किया गया। 

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