परिवर्तन की चेतना कभी मात नहीं खाती : रामजी राय
दोस्त से ही बहस हो सकती है, दुश्मन का तो विरोध होता
है। सरकारों ने तो भगत सिंह को मारा है, मगर देश के अवाम ने
उन्हे जिन्दा रखा है, अपने दिलों में,
परिवर्तन कामी चेतना में, भगत सिंह लोगों की जरूरत हैं और
हमेशा रहेगा। आज भगत सिंह को याद करते हुए मुझे पाश, शांवेज
और मुक्तिबोध की याद आ रही है। मुक्तिबोध ने अपनी कविता में कहा था कि मैं उस
किताब का अगला पन्ना पढ़ना चाहता हूँ। ये आज भी सच है कि परिवर्तन कामी चेतना कभी
मात नहीं खाती, इंची टेप से उसे नापा नहीं जा सकता, आंदोलन के जितने रंग रूप आज छिटके हैं वे आशा और उम्मीद जगाते हैं।
उक्त उद्बोधन समकालीन जनमत के संपादक रामजी
राय ने ‘भगत सिंह से दोस्ती’ विषय पर आयोजित गोष्ठी की अध्यक्षता करते
हुए महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय केंद्र, इलाहाबाद के सत्यप्रकाश
मिश्र सभागार में व्यक्त किए। गोष्ठी के विशिष्ट अतिथि जियाउल हक ने कहा कि भगत
सिंह के लेखन और उनके क्रांतिकारी व्यक्तित्व को लोगों के बीच ले जाने के लिए
हमें साल के 365 दिन काम करना होगा। ईमानदारी से एक साथ आना होगा तभी समाज में
अवाम के हित में कुछ किया जा सकता है। बतौर वक्ता सुधांशु मालवीय ने कहा कि आज
दुख का अंबार है, दुख से निकलने का कोई रास्ता नहीं सूझता, आज क्रांति का सपना पीछे छूट रहा है। आजादी का सही इतिहास आज तक नहीं
लिखा गया। भगत सिंह के चिंतन में गजब की स्पष्टता है,
आंदोलन की खरी समझदारी उनमें थी, उनका चिंतन हमें शत्रु की
स्पष्ट पहचान कराता है, उन्होंने श्रमिक जनता की आजादी से
कम कुछ भी नही चाहा। दूसरे वक्ता स्त्री अधिकार संगठन से जुड़ी पदमा सिंह ने कहा
कि भगत सिंह ने समाजवाद का, शोषण से मुक्ति का सपना देखा था।
खास संदर्भों में उन्होंने नास्तिकता को व्याख्यायित किया, समाजवाद के सपने को जीवित रखना अब सबकी जिम्मेदारी है, क्रांतिकारिता जड़वत नहीं होनी चाहिए, समाजवाद की
नई जमीन तैयार करने की जरूरत है। वक्ता के रूप में युवा कवि अंशु मालवीय
ने कहा कि भगत सिंह के व्यक्तित्व का यूटोपिया मानीखेज है। अंबेडकर, गांधी और भगत सिंह के बीच के अंतरक्रिया को हमे समझना चाहिए, ‘विद्यार्थी और राजनीति’ उनका महत्वपूर्ण लेख है। युवा सक्रियताओं की अपनी सीमा हो सकती है, किन्तु उसे नये तरीके से कंस्ट्रक्ट करने की जरूरत है। गोष्ठी की
प्रस्तावना कार्यक्रम के संयोजक प्रो.संतोष भदौरिया ने रखी, अतिथियों का स्वागत अनिल रंजन भौमिक ने किया। गोष्ठी के अंत में
भगत सिंह के जीवन पर आनन्द पटवर्धन द्वारा निर्मित वृत्तचित्र ‘उन दोस्तों की याद प्यारी’ का प्रदर्शन किया
गया, जिसे दर्शकों ने बहुत सराहा।
कार्यक्रम में प्रमुख रूप से हरिश्चन्द्र
अग्रवाल, मीना
राय, सुधीर सिंह, झरना मालवीय, हिंमाशु रंजन, जयकृष्ण राय तुषार, अरविंद विन्दु, सुरेश कुमार शेष, रविनंदन सिंह, सीमा आजाद,
विश्वविजय, फज़्ले हसनैन, अनुपम आनन्द, अविनाश मिश्रा, सुरेद्र राही,
असरार गांधी, फखरूल करीम, सालिहा
जर्रीन, गुफरान अहमद खां, असरफ अली बेग
सहित बडी संख्या में साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे।
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