प्रो. प्रदीप को डा. रामविलास शर्मा आलोचना सम्मान
हिंदी आलोचना में जिस तरह के साध्य की जरूरत है वह हिंदी में विरल होती जा रही है : नामवर सिंह
जोकहरा स्थित श्री
रामानन्द सरस्वती पुस्तकालय में ‘गोष्ठी : इतिहास और आलोचना’ विषय पर आयोजित एक भव्य
समारोह में हिंदी के सुप्रसिद्ध आलोचक प्रो.नामवर सिंह ने प्रो.प्रदीप सक्सेना को
शॉल, प्रशस्ति पत्र, नगद राशि प्रदान
कर वर्ष 2012 का डॉ.रामविलास शर्मा आलोचना सम्मान से सम्मानित किया। श्री
रामानन्द सरस्वती पुस्तकालय, जोकहरा, केदार शोध पीठ (न्यास), बॉंदा, डॉ.रामविलास शर्मा आलोचना सम्मान आयोजन समिति की ओर से प्रदान किए जाने
वाले सम्मान समारोह के दौरान महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति विभूति नारायण राय, वरिष्ठ साहित्यकार
प्रो.निर्मला जैन, प्रो.चौथीराम यादव,
भारत भारद्वाज, दिनेश कुशवाह, प्रदीप
सक्सेना, रमेश कुमार मंचस्थ थे।
अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो. नामवर सिंह
ने कहा कि हिंदी आलोचना में जिस तरह के साध्य की जरूरत है वह हिंदी में विरल होती
जा रही है। रामविलास शर्मा ने जो श्रम और साधना की हिंदी आलोचना के लिए, उस परंपरा में एक मात्र हिंदी
आलोचक प्रदीप सक्सेना दिखाई देते हैं। प्रदीप सक्सेना ने अपने इतिहास लेखन और
आलोचना का कार्य रामविलास शर्मा की परंपरा का निर्वहन करते हुए किया है, वह इस सम्मान के हकदार हैं।
स्वागत वक्तव्य में विभूति नारायण राय ने
कहा कि प्रदीप सक्सेना आलोचना के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। ‘अठारह सौ सत्तावन और भारतीय
नवजागरण’ में इन्होंने मार्क्सवादी इतिहास-विज्ञान की तत्वमीमांसा
को भारतीय परिवेश में ज्ञानमीमांसा में परिवर्तित कर उसका सार्थक उपयोग किया है।
उन्होंने कहा कि इस वर्ष डॉ.रामविलास शर्मा जी का जन्म शताब्दी वर्ष है। विश्वविद्यालय
में उनके नाम पर बने सड़क व साहित्य विद्यापीठ में लगाई गई प्रतिमा का अनावरण
उनके सुपुत्र द्वारा किया गया। इस वर्ष प्रदीप सक्सेना जैसे मार्क्सवादी आलोचक
को यह सम्मान दिया गया, इसके लिए उन्हें बधाई।
सुप्रसिद्ध साहित्यकार प्रो. निर्मला जैन ने कहा कि रामविलास जी
ने हिंदी इतिहास लेखन की परंपरा का नए सिरे से मूल्यांकन किया है। उनके इतिहास
लेखन में जो अंतर्विरोध हैं, उस पर बातचीत होनी चाहिए, किंतु इस बातचीत में हमें यह सावधानी बरतनी होगी कि हिंदी साहित्य में
जो उन्होंने नई आलोचना दृष्टि दी है इस ओर भी हमें ध्यान देने की जरूरत है। वरिष्ठ
साहित्यकार चौथीराम यादव ने कहा कि रामविलास शर्मा ने भाषा वैज्ञानिकों के
परंपरागत भाषा संबंधी चिंतन से अलग हटकर क्षेत्रीय भाषा के महत्व को स्थापित
किया। रामविलास जी के लेखन में हाशिए का समाज व चिंतन अनुपस्थित रहा है, इस पर पुर्नमूल्यांकन किए जाने की जरूरत है।
अलीगढ़ विश्वविद्यालय से आए वक्ता रमेश
कुमार ने कहा कि समकालीन हिंदी आलोचना में प्रदीप सक्सेना, अपनी निर्भ्रांत इतिहास चेतना और
आलोचकीय विवेक से समय, समाज और संस्कृति के जन-विरोधी चिंतन
का प्रतिपक्ष रचते हैं। प्रतिपक्ष की इस सर्जना में जो सौंदर्यशास्त्र निर्मित
होता है, वह अपनी प्रकृति में बहुआयामी है।
इस दौरान प्रदीप सक्सेना ने कहा कि स्वतंत्रता
के समय राष्ट्रीय आंदोलन का जो स्वरूप था उसकी एक झलक यहां दिखाई पड़ती है। यह
पुस्तकालय सांस्कृतिक नवजागरण का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनता जा रहा है। आज पूरी
दुनिया एक ध्रुवीय हो गई है। अमेरिका को दुनिया में जहां भी लाभ दिखता है, वहां वह सभी तरह की नीतियों में
हस्तक्षेप कर अपनी बात मनवाता है। पहले हम साम्राज्यवादी ताकतों के सामने लड़ने
को तत्पर रहते थे पर आज नव साम्राज्यवाद में कुछ छिपी ताकतें हमारे दिलों पर राज
करती हैं। हरेक गांव में एक ऐसा ही सांस्कृतिक केंद्र हो ताकि नव औपनिवेशिक
ताकतों से मुकाबला किया जा सके।
साहित्यकार भारत भारद्वाज ने कहा कि राम
विलास जी का मूल्यांकन होना बाकी है, पुर्नमूल्यांकन होना चाहिए। आलोचना साहित्य का विवेक है, आलोचक को विवेक का सम्मान करना चाहिए। रामविलास सम्मान प्रदीप जी को
मिला है, आशा है कि आपनी आलोचकीय दृष्टि में साहित्य के
विवेक को बनाए रखेंगे।
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के इलाहाबाद क्षेत्रीय
केंद्र के प्रभारी व आयोजक प्रो.संतोष भदौरिया ने प्रदीप सक्सेना के व्यक्तित्व
एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इनके लेखन में विचार की प्रधानता है जो
इनकी आलोचनात्मक सर्जना में अंतर्धारा की तरह प्रवहमान है।
डॉ.रामविलास शर्मा आलोचना सम्मान के संयोजक
नरेन्द्र पुण्डरीक ने कहा कि यह सम्मान हिंदी के ऐसे ओलाचक को उत्साहित करने
के लिए दिया जाता है,
जिसकी आलोचना सामर्थ्य एक तरफ विभिन्न प्रकाशनों से पहचान में आयी है और दूसरी
तरफ उसके पास अभी इतना समय बचा है जिससे वह पूरी तरह से विकसित कर सके।
प्रगतिशील लेखक संघ, उ.प्र. के महासचिव संजय श्रीवास्तव
ने संचालन किया और श्रीप्रकाश मिश्र ने आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर हिना देसाई, सुधीर शर्मा, कांति लाल शर्मा, राकेश श्रीमाल, प्रो. बद्री प्रसाद, रामशकल पटेल, हरि मंदर पांडेय, डॉ. बी.के.पांडेय, अमित विश्वास, विनय भूषण, मनोज सिंह,
डॉ.गुफरान अहमद खान, उदभ्रांत, हीरा
लाल, ए.के.सिंह सहित बड़ी संख्या में पुस्तकालय के
विद्यार्थी व हिंदी के सुधी जन उपस्थित रहे।
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