पाठक ही साहित्यकार का आईनाः काशीनाथ सिंह
हिंदी के सुपरिचित साहित्यकार काशीनाथ सिंह ने कहा है कि
पाठक ही किसी लेखक का आईना होता है। डा. सिंह महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी
विश्वविद्यालय के कोलकाता केंद्र में आयोजित संवाद कार्यक्रम में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि पाठक ही लेखक को कैरेक्टर
सर्टिफिकेट देते हैं। उन्होंने कहा कि वे विश्वविद्यालय के बनाए लेखक नहीं हैं,
अपितु पाठकों के बनाए लेखक हैं।
महात्मा गांधी
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कोलकाता केंद्र ने संवाद कार्यक्रम के पहले
भारतीय भाषा परिषद के रचना समग्र पुरस्कार से सम्मानित होने के उपलक्ष्य में
काशीनाथ सिंह की कृतियों पर कहासुनी कार्यक्रम का रखा था जिसमें काशीनाथ के
उपन्यास ‘अपना
मोर्चा’ पर रवि
प्रकाश, ‘काशी का
अस्सी’ पर
हरिराम पांडेय, ‘रेहन पर
रग्घू’ पर केके
श्रीवास्तव, ‘महुआ चरित’ पर महेंद्र कुशवाहा, ‘घोआस’ नाटक पर डा. कामेश्वर सिंह, ‘घर का जोगी जोगड़ा’ पर तारकेश्वर मिश्र ने आलेख पढ़े। वक्ताओं ने कहा कि
काशीनाथ सिंह ने विधाओं को तोड़ा है और हर विधा की आलोचना के लिए रचनात्मक चुनौती
खड़ी की है। काशीनाथ जी की कृतियों पर बीज वक्तव्य दिया कोलकाता केंद्र के प्रभारी
डा. कृपाशंकर चौबे ने।
काशीनाथ सिंह की कृतियों पर आलेख पढे जाने के बाद लेखक से
संवाद कार्यक्रम रखा गया जिसमें काशीनाथ सिंह ने कहा कि उन्हें विश्वविद्यालय ने
लेखक नहीं बनाया, अपितु विश्वविद्यालय की चारदिवारी के बाहर की सड़कों, गांवों, बाजारों की भाषा व परिवेश ने बनाया। कार्यक्रम में काशीनाथ सिंह की कक्षा के छात्र
रहे डा. प्रमथ नाथ मिश्र, समाजवादी चिंतक राजेंद्र राय, साहित्य के शोधार्थी
प्रतीक सिंह तथा शिक्षा निकेतन के प्रिंसिपल मंगलेश्वर राय समेत भारी संख्या में
अध्यापक, शोधार्थी व साहित्य प्रेमी उपस्थित थे। कार्यक्रम की शुरुआत सुशील कांति
के काव्य संगीत से हुई। कार्यक्रम
का संचालन अभिजीत सिंह ने किया।
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