अन्वेषी व्यक्तित्व के धनी थे राहुल : विभूति नारायण राय
महापंडित राहुल सांकृत्यायन केंद्रीय पुस्तकालय में राहुल सांकृत्यायन के जन्म दिवस पर हुआ विमर्श
राहुल सांकृत्यायन
के जन्मदिवस पर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के महापंडित राहुल
सांकृत्यायन केंद्रीय पुस्तकालय के सभागार में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता
करते हुए कुलपति विभूति नारायण राय ने कहा कि राहुल सांकृत्यायन
अन्वेषी प्रकृति के थे, उन्होंने हजारों
विलुप्तप्राय एवं दुर्लभ पांडुलिपियों का संग्रह कर भारतीय ज्ञान चिंतन को
समृद्धि प्रदान की। राहुल जी ने ब्राह्मणवाद के खिलाफ झंडा उठाया था। ‘वोल्गा से गंगा तक’, ‘सतमी के बच्चे’, ‘बहुरंगी मधुपुरी’, ‘कनैला की कथा’ जैसी कहानी संग्रह सहित कई विधाओं पर लिखने वाले राहुल सांकृत्यायन
के कार्यों और विचारों की आज भी प्रासंगिकता है और प्रत्येक काल खण्ड में यह
प्रासंगिकता बनी रहेगी। उन्होंने जिस बेहतर दुनिया, समाज और मनुष्य का सपना देखा था। उस सपने को सार्थक करने की दिशा में
हमें पहल करने की जरूरत है। जब इस केंद्रीय पुस्तकालय का नामकरण किया जाना था तो
हम सभी को राहुल सांकृत्यायन के नाम पर रखना ही उचित प्रतीत हुआ। जैसा कि दूधनाथ
सिंह जी ने कहा कि राहुल जी इलाहाबाद में भी रहे और बहुत सारी सामग्री वहां मौजूद
हैं, मैं विश्वविद्यालय के इलाहाबाद केंद्र के प्रभारी प्रो.संतोष
भदौरिया से अनुरोध करूँगा कि वे उन सामग्रियों को स्वामी सहजानंद सरस्वती
संग्रहालय को उपलब्ध कराने की कोशिश करें।
विश्वविद्यालय के ‘राइटर-इन-रेजिडेंस’ प्रो.दूधनाथ सिंह ने कहा कि राहुल जी मार्क्सवादी दार्शनिक, बौद्ध दार्शनिक के रूप में वैचारिक यायावर की तरह लिखते रहे। वे मूलतः
लोक के दूत थे। उन्हें भोजपुरी और लोक भाषाओं से लगाव था। वे दुनिया की 36 भाषाओं के जानकार थे।
वे लोकभाषा व बोलियों की स्वतंत्रता के पक्ष में थे। अनेकानेक प्रसंगों को उद्धृत
करते हुए दूधनाथ सिंह ने राहुल सांकृत्यायन के निजी जीवन से लेकर यात्रा-प्रसंगों, राजनीतिक-दृष्टि से लेकर लोक-पीड़ा व साहित्य-समझ से लेकर सांस्कृतिक
विस्तार तक पर व्यापक वक्तव्य देते हुए कहा कि उनके रचनात्मक व वैचारिक योगदान को
न सिर्फ याद करने की जरूरत है बल्कि मिशनरी भाव से काम करने की जरूरत है।
‘राइटर-इन-रेजिडेंस’ ऋतुराज ने कहा कि समाज, साहित्य व संस्कृति
की बेहतरी के लिए राहुल जी द्वारा किए गए कार्यों में उनका वैशिष्ट्य दिखाई देता
है। महाचेता राहुल जी की घुमक्कड़ी वृत्ति में उन्हें दुनिया की अनेक भाषाओं, बोलियों, संस्कृतियों और समाज
को नजदीक से देखने का मौका दिया। इस मौके ने राहुल जी के व्यक्तित्व को रूपांतरित
करने का कार्य किया है। अनेक देशों से दुर्लभ पाण्डुलिपियों और ज्ञान-संपदा को
भारत ले आने का राहुल जी का काम उनकी क्षमता को दर्शाता है।
संचालन पुस्तकालयाध्यक्ष
डॉ.मैत्रेयी घोष ने किया। इस अवसर पर कुलसचिव डॉ.के.जी.खामरे, वित्ताधिकारी संजय भास्कर गवई, प्रो.रामशरण जोशी, प्रो.अनिल के.राय अंकित, प्रो.सूरज पालीवाल, प्रो.रामवीर सिंह, प्रो.के.के.सिंह, प्रो. हनुमान शुक्ला, प्रो.शुभू गुप्त, प्रो.देवराज, अशोक मिश्र, अमित विश्वास, डॉ.मिथिलेश, आनन्द मण्डित मलयज, नटराज वर्मा, चित्रलेखा अंशु सहित बड़ी संख्या में अध्यापक, कर्मी, शोधार्थी व विद्यार्थी उपस्थित रहे।
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