रविवार, 28 अप्रैल 2013


अब विष्‍णु प्रभाकर का भी घर है इस संग्रहालय में: प्रो.ए.अरविंदाक्षन

हिंदी विवि में विष्‍णु प्रभाकर की पुत्री अनीता ने किया विष्‍णु प्रभाकर मार्ग का उदघाटन

अवारा मसीहा’, सत्‍ता के आर-पार तथा अर्द्धनारीश्‍वर जैसी अनमोल कृति रचनेवाले हिंदी के मूर्धन्‍य साहित्‍यकार विष्‍णु प्रभाकर के नाम पर महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा में समता भवन व महापंडित राहुल सांकृत्‍यायन केंद्रीय पुस्‍तकालय के समीप नवनिर्मित अकादमिक भवन को जोड़ने वाली सड़क का नामकरण विष्‍णु प्रभाकर मार्ग किया गया है। आज शुक्रवार को विश्‍वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रो.ए.अरविंदाक्षन, कुलसचिव डॉ.के.जी.खामरे, राइटर-इन-रेजिडेंस प्रो.दूधनाथ सिंह, ऋतुराज सहित कई प्रमुख हस्तियों की मौजूदगी में एक गरिमामय कार्यक्रम के दौरान विष्‍णु प्रभाकर की पुत्री-अनीता, अर्चना, पुत्र-अतुल कुमार, अमित कुमार ने विष्‍णु प्रभाकर मार्ग का उद्घाटन किया।
    
विष्‍णु प्रभाकर के परिवार जनों ने उनकी अप्रकाशित डायरी, पांडुलिपियां, निजी उपयोग की वस्‍तुएं, अनमोल पत्र आदि वस्‍तुएं विश्‍वविद्यालय के स्‍वामी सहजानंद सरस्‍वती संग्रहालय को सौंपी। इस अवसर पर संग्रहालय में आयोजित कार्यक्रम की अध्‍यक्षता करते हुए विश्‍वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रो.ए.अरविंदाक्षन ने कहा कि यह संग्रहालय अब विष्‍णु प्रभाकर का भी घर हो गया है। इस संग्रहालय में दुर्लभ पांडुलिपियां, अनमोल पत्र व विभिन्‍न पत्र-पत्रिकाओं के प्रवेशांक हैं प्रो.रंजना अरगडे ने शमशेर से जुड़ी सामग्री तथा राजलक्ष्‍मी वर्मा ने राम कुमार वर्मा के साहित्‍य-पांडुलिपि सहित जीवन से जुड़ी वस्‍तुएं प्रदान की हैं और इस कड़ी में विष्‍णु प्रभाकर जी के परिवार से उनके द्वारा लिखी गई अप्रकाशित डायरी सहित अन्‍य सामग्रियां प्राप्‍त हुई हैं। यह संग्रहालय के सराहनीय नए पड़ाव का एक और कदम है। मैं आश्‍वस्‍त हूँ कि इस सामग्री का उपयोग शोधार्थी करेंगे और भावी पीढ़ी, ऐसे महत्‍वपूर्ण रचनाकार को आत्‍मसात कर सकेंगे।

     बतौर मुख्‍य अतिथि प्रो.दूधनाथ सिंह ने कहा कि विष्‍णु जी के प्रारंभिक त्रासद जीवन का प्रभाव उनके लेखन में देखने को मिलता है। उनकी जीवन-यात्रा में अंतरतम की गहराई तक छू जाने वाली सहज सादगी और आस्‍था ने मुझे चकित और मुग्‍ध किया। उन्‍होंने कहा कि वैचारिक दृष्टि से विष्‍णु प्रभाकर पवित्रतावादी थे। विष्‍णु जी की अवारा मसीहा तथा पांडेय बेचन शर्मा उग्र की अपनी खबर अन्‍यतम कृतियां हैं।  
    
वक्‍ता के रूप में साहित्‍य विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो.सूरज पालीवाल ने कहा कि विष्‍णु प्रभाकर अपने समय व समाज के दु:ख व चिंताओं को हमारे समक्ष रखने के लिए आक्रोश से नहीं भरते थे अपितु शालीनता के साथ उत्‍तर देते थे। उनके साहित्‍य को पढ़ने से ऐसा लगता है कि वे सत्‍य को पाने के लिए गहरे में उतरते हैं। शरतचंद्र पर जो आरोप लगे, उसे प्रमाणिकता के साथ उन्‍होंने खारिज किया। उन्‍होंने कहा कि विष्‍णु जी न केवल बड़े लेखक हैं बल्कि बड़े आदमी भी थे। 
कार्यक्रम में साहित्‍य विद्यापीठ के विभागाध्‍यक्ष प्रो.के.के.सिंह ने कहा कि विष्‍णु प्रभाकर सन् 1930 के दशक से लिखना शुरू करते हैं और उनकी रचनात्‍मकता का स्‍त्रोत कभी सूखता नहीं है। उनकी रचना अवारा मसीहा को क्‍लासिक का दर्जा मिल चुका है। गांधीवादी मूल्‍यों में आस्‍था रखने वाले आर्यसमाजी विष्‍णु प्रभाकर ने बंगला साहित्‍य सीखकर शरतचंद्र पर लिखा। तांगेवाला कहानी का जिक्र करते हुए उन्‍होंने कहा कि विष्‍णु जी मानवीय संवेदना को उकेरते हैं। 1940 के दशक में दिल्‍ली में हुए सांप्रदायिक दंगे के बीच बीमार बच्‍चे की दवा के लिए पैसा कमाने के लिए तांगेवाला तांगा दौड़ाता है। विष्‍णु प्रभाकर पर एक बड़ी संगोष्‍ठी का आयोजन किए जाने की जरूरत है ताकि उनपर नए तरीके से काम हो सके।
स्‍त्री अध्‍ययन के विभागाध्‍यक्ष प्रो.शंभु गुप्‍त ने कहा कि विष्‍णु प्रभाकर हिंदी के गिने-चुने लेखकों में हैं जो संयुक्‍त परिवार में विश्‍वास करते थे। आज हमारे हिंदी साहित्‍य जगत में पारिवारिकता की अवधारणा धीरे-धीरे लुप्‍त होती जा रही है। साहित्‍य रचने में राहुल सांकृत्‍यायन, रामविलास शर्मा के बाद विष्‍णु प्रभाकर का ही नाम आता है। लेकिन हिंदी आलोचना की एक अजीब सी स्थिति है कि विष्‍णु जी मुख्‍यधारा में आने से रह गए। उनके साहित्‍य पर सर्वसमावेशी तरीके से शोध किए जाने की जरूरत है। उन्‍होंने कहा कि विष्‍णु जी ने जीवन में नैतिकता का ध्‍यान रखा और शरतचंद्र को विषय बनाया। स्‍त्री अस्मिता, स्‍त्री चेतना और उसका अस्तित्‍व शरतचंद्र के साहित्‍य का केंद्रीय तत्‍व है।
विष्‍णु प्रभाकर के साथ बिताए पलों को साझा करते हुए डॉ.ओ.पी.मिश्रा ने कहा कि परिवर्तन ही उनका लक्ष्‍य था। उनका साहित्‍य बिना आक्रोश के प्रतिरोधी चेतना को जगाती है। भारतीय भाषाओं से उनका गहरा लगाव था लेकिन वे हिंदी के हिमायती थे। सृजन विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता व संग्रहालय के प्रभारी प्रो.सुरेश शर्मा ने स्‍वागत वक्‍तव्‍य में कहा कि विष्‍णु प्रभाकर ने विपुल साहित्‍य रचा है। उन्‍होंने 8 उपन्‍यास, 35 कहानी-संग्रह, 3 लघुकथा संग्रह, 14 नाटक, 65 संपादित पुस्‍तकें सहित कई विधाओें में लेखन किया है। हमें संग्रहालय में उनकी पांडुलिपियां सहित हजारी प्रसाद द्विवेदी, दिनकर, अश्‍क, राजेन्‍द्र प्रसाद आदि के पत्र प्राप्‍त हुए हैं, जो विष्‍णु जी को लिखे गए हैं।  
इस दौरान विष्‍णु प्रभाकर की सुपुत्री अनीता ने कविता का पाठ किया। पुत्र अतुल कुमार ने पिता के संस्‍मरणों को साझा करते हुए कहा कि उनका परिवार विशाल है, उनके चाहनेवालों को देखकर ऐसा लगता है। हम चाहते हैं कि परिवार में संबंध बना रहे और वार्तालाप भी जारी रहे। दूसरे पुत्र अमित ने कहा कि पिता जी सदैव भागो मत, दौड़ो वक्‍तव्‍य को चरितार्थ करते हुए जीवन के संघर्षों से कभी भागे नहीं।
वैचारिक कार्यक्रम की शुरूआत विष्‍णु प्रभाकर की प्रतिमा पर माल्‍यार्पण कर की गई। संचालन साहित्‍य विद्यापीठ की एसोशिएट प्रोफेसर डॉ.प्रीति सागर ने किया। आभार व्‍यक्‍त करते हुए प्रो.रामशरण जोशी ने कहा कि विष्‍णु प्रभाकर सहज, सरल व मानवीय थे। वह अपने लेखन में मानवीय संवेदना को सहजता के साथ रखते थे। उनपर गांधीवाद, मानवतावाद और एक सीमा तक मार्क्‍सवाद का भी प्रभाव था। वह हिंदी साहित्‍य में अजातशत्रु के रूप में जाने जाएंगे। इस अवसर पर अशोक मिश्र, प्रकाश चन्‍द्रायन, अमित विश्‍वास, राजेश्‍वर सिंह, इंजीनियर अवस्‍थी सहित बड़ी संख्‍या में अध्‍यापक, शोधार्थी व विद्यार्थी उपस्थित रहे।


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