बुधवार, 30 अक्टूबर 2013

डेक पर अंधेरा उपन्यास का लोकार्पण एवं परिचर्चा



महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के नागार्जुन सराय स्थित फैकल्टी क्लब सभागार में सुप्रसिद्ध कवि- कथाकार हीरालाल नागर के उपन्यास ‘डेक पर अंधेरा’ का लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कथाकार दूधनाथ सिंह ने किया। इस मौके पर एक एक चर्चा गोष्ठी भी हुई जिसमें कथाकार हीरालाल नागर ने संक्षेप में अपनी बात रखने के उपरांत उपन्यास के एक अंश का पाठ किया।
 चर्चा गोष्ठी में अपनी अध्यक्षीय टिप्पणी में दूधनाथ सिंह ने कहा कि हिंदी में युद्ध पर उपन्यास नहीं के बराबर लिखे गए हैं। उन्होंने कहा कि युद्ध पर भदंत आनंद कौसल्यायन द्वारा अनुवादित उपन्यास ‘२५वां घंटा’ एक महत्वपूर्ण कृति है। सेना में नौकरी के दौरान अर्जित अनुभवों के आधार पर ऐसा उपन्यास लिखना साहस का काम है। उन्होंने कहा कि मैं प्रोजेक्ट बनाकर उपन्यास लिखने के खिलाफ हूं। श्रीलंका में शांति सेना का भेजा जाना उस समय की एक बड़ी राजनीतिक गलती थी। उन्होंने विस्तार से विदेशों में लिखे गए ‘वार एंड पीस’ और अन्य कई उपन्यासों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि युद्ध विषय पर यह हिंदी में पहला उपन्यास है। 
प्रख्यात आलोचक सूरज पालीवाल ने कहा कि यह उपन्यास है न कि कथा कोलाज। इसमें एक उपन्यास की गति और जीवन है। यह उपन्यास सबसे अलग है। यह मध्यवर्ग और छोटे परिवार के सैनिकों के जीवन की छोटी-छोटी महत्वाकांक्षाओं और एषणाओं का जीवंत दस्तावेज है। यह उपन्यास श्रीलंका के जनजीवन, वहां के गांव, खेती, हरियाली, सुंदर लड़कियां, बाजार, तथा भारत श्रीलंका के संबंधों पर आम आदमी की राय को सहजता के साथ व्यक्त करता है। उन्होंने कहा कि अपने समय के यथार्थ को पकड़ना आसान काम नहीं है। लिट्टे की गतिविधियों पर यह पहला प्रामाणिक उपन्यास है। 
कथाकार और ‘बहुवचन’ पत्रिका के संपादक अशोक मिश्र ने कहा कि इस उपन्यास की संपूर्ण कथा लिट्टे के विरुद्ध भारतीय शांति सेना के द्वारा श्रीलंका में जाकर चलाए गए `आपरेशन पवन` की गाथा भर नहीं है बल्कि यह शांति सेना के असंख्य सैनिकों के भारत से समुद्री जहाज की रवानगी के साथ शुरू होकर वापसी तक की पूरी कहानी को यह कृति सूक्ष्मतम ब्यौरों के साथ अभिव्यक्ति करती है। कोलाज की शिल्प में लिखा गया आख्यान या वृतांत भर नहीं है। साथ ही उपन्यास में आत्मकथा, संस्मरण के साथ कई विधाओं का समन्वय भी है। यहां वह कला भी है जो कथा में इतिहास कहती है और उसकी प्रमाणिकता को भी बचाती है।  
 ‘अभिनव कदम’ पत्रिका के संपादक जयप्रकाश धूमकेतु ने कहा कि ‘डेक पर अंधेरा’ उपन्यास अपने सहज पठनीयता में पाठक को बहा ले जाता है और यही कृति की सफलता है। उन्होंने कहा कि अगर किसी कृति में पठनीयता नहीं है तो वह किसी काम की नहीं है। कार्यक्रम के अंत में कथाकार और कुलपति श्री विभूति नारायण राय भी संगोष्ठी में शामिल हुए। आखर अद्यतन के तत्वावधान में हुए इस कार्यक्रम का संचालन रूपेश कुमार सिंह ने किया। इस मौके पर सहायक प्रो. उमेश कुमार सिंह, अकादमिक संयोजक डा. शोभा पालीवाल, अशोक नाथ त्रिपाठी, अमरेंद्र कुमार शर्मा, हुस्न तबस्सुम निहां, मनोज कुमार पांडेय सहित बड़ी संख्या में छात्रों की उपस्थिति रही।  

मंगलवार, 29 अक्टूबर 2013



वर्जनाओं के विरुद्ध थे राजेंद्र यादवः जगदीश्वर चतुर्वेदी

मीडिया मर्मज्ञ तथा कोलकाता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डा. जगदीश्वर चतुर्वेदी ने कहा है कि कथाकार राजेंद्र यादव वर्जनाओं के विरुद्ध थे। डा. चतुर्वेदी आज महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कोलकाता केंद्र द्वारा राजेंद्र यादव की याद में आयोजित शोक सभा में अध्यक्षीय वक्तव्य दे रहे थे। उन्होंने कहा कि समाज में जितनी वर्जनाएं व निषेध हैं, उन सबका राजेंद्र यादव में प्रतिरोध किया। इस मामले में उन्होंने कभी कोई समझौता नहीं किया। वे प्रतिवादी लेखक थे। उनका मूल्यांकन इस आधार पर नहीं होगा कि उन्हें लेकर कितने विवाद हुए, बल्कि उनका मूल्यांकन उनकी रचनाओं के आधार पर होगा। डा. चतुर्वेदी ने दिल्ली की मुलाकातों के अलावा कोलकाता में प्रभा खेतान के घर राजेंद्र यादव के साथ हुई मुलाकात के संस्मरण भी सुनाए।
डा. चतुर्वेदी ने कहा कि हंस के संपादक के रूप में राजेंद्र यादव ने हिंदी को एक अलग पहचान दी। अस्सी के बाद हिंदी के साहित्यिक परिदृश्य को उनकी संपादन कला ने बदल दिया। दलित व स्त्री विमर्श चलाया। संपादन करते समय कभी भी उन्होंने अपने राजनीतिक आग्रह को हावी नहीं होने दिया। संपादक के नाते उन्हें अपनी इच्छा के विरुद्ध लगातार निबंध लिखना पड़ा। पत्रकार रवि प्रकाश ने कहा कि राजेंद्र यादव ने ऐसे समय आखिरी सांस ली, जब उन्हें लेकर एक अवांछित विवाद चल रहा था। उन्होंने कहा कि राजेंद्र यादव ने सैकड़ों लेखक पैदा किए। वे अपनी रचनाओं के मार्फत चिर काल तक बचे रहेंगे। हिंदी विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर तथा कोलकाता केंद्र के प्रभारी डा. कृपाशंकर चौबे ने कहा कि यादव जी ने जिस गहरी संलग्नता से स्त्री विमर्श व दलित विमर्श चलाए, उसका जोड़ मिलना कठिन है। शोकसभा के आखिर में विश्वविद्यालय के सहायक क्षेत्रीय निदेशक प्रकाश त्रिपाठी समेत सभी उपस्थित लोगों ने दो मिनट मौन रखकर राजेंद्र यादव को श्रद्धांजलि अर्पित की।

हिंदी विश्विविद्यालय में कथाकार राजेंद्र यादव को श्रद्धांजलि



राजेंद्र यादव ने साहित्यिक पत्रकारिता के नवयुग का निर्माण किया – प्रो. अरविंदाक्षन

हंस के संपादक और प्रसिद्ध साहित्‍यकार राजेंद्र यादव के निधन पर महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय में साहित्‍य विद्यापीठ की ओर से मंगलवार को हबीब तनवीर सभागार में शोक सभा आयोजित की गई। इस अवसर पर अपनी शोक संवेदना व्‍यक्‍त करते हुए प्रतिकुलपति प्रो. ए. अरविंदाक्षन ने कहा कि राजेंद्र यादव ने साहित्यिक पत्रकारिेता के माध्‍यम से नवयुग का निर्माण किया। उन्‍होंने न केवल उपन्‍यास बल्कि कहानी, निबंध, समीक्षाएं, अनुवाद आदि क्षेत्र में भी रचनात्‍मक कार्य किया। इस अवसर पर आवासीय लेखक कवि ऋतुराज व कहानीकार दूधनाथ सिंह, साहित्‍य विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. सूरज पालीवाल मंचासीन थे। विदित हो कि कथाकार राजेंद्र यादव का 28 अक्‍तूबर की रात निधन हुआ। उनका जन्‍म 28 अगस्‍त 1929 को आगरा में हुआ था।
प्रो. सूरज पालीवाल ने कहा कि दलित विमर्श और स्‍त्री विमर्श राजेंद्र यादव की ही देन है। उनमें विरोध सहने की ताकत थी और हंस के संपादकीय में उन्‍होंने अनेक मुद्दें उठाएं। कवि ऋतुराज ने कहा कि राजेंद्र यादव का लेखन एक सामाजिक आंदोलन था। उन्‍होंने साहित्‍य की द्वंद्वात्‍मकता पर काम किया और हंस के माध्‍यम से इसे एक सामाजिक आंदोलन का रूप दिया। दूधनाथ सिंह ने राजेंद यादव से जुड़े कईं संस्‍मरण सुनाएं। उन्‍होंने कहा कि राजेंद्र यादव ने कहानी की दो पीढि़यां पैदा की। स्‍त्री मुक्ति पर लिखकर उन्‍होंने साहित्‍य जगत में अपनी नई पहचान बनाई और दलित विमर्श का नारा देकर इसे विमर्श के रूप में समस्‍त हिंदी साहित्‍य के पटल पर प्रस्‍तुत किया। दूधनाथ सिंह ने कहा कि मैं लगातार 20 वर्ष से उनके जन्‍मदिन 28 अगस्‍त के दिन उनके यहां जाता रहा। उन्‍होंने राजेंद्र यादव की लंबी साहित्यिक यात्रा पर प्रकाश डाला। संचालन साहित्‍य विभाग के अध्‍यक्ष प्रो. के. के. सिंह ने किया। उपस्थितों द्वारा दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि अर्पित की गयी। इस अवसर पर अध्‍यापक एवं छात्र-छात्राएं प्रमुखता से उपस्थित थे।

सोमवार, 28 अक्टूबर 2013

रचनात्‍मकता की भूमि बने वर्धा – कुलपति विभूति नारायण राय

महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय का परिसर अब पंचटीला से गांधी हिल्‍स में परिवर्तित हुआ है। अनेक प्रकार की भौगोलिक समस्‍याओं के होते हुए भी यह विश्‍वविद्यालय इसके साथ स्‍थापित हुए विश्‍वविद्यालयों से आगे है। मैं चाहता हूं यह विश्‍वविद्यालय रचनात्‍मकता की वजह से जाना जाए और वर्धा एक रचनात्‍मकता की भूमि बनें। उक्‍त उदगार विश्‍वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय ने सोमवार को आयोजित उनके सम्‍मान में बधाई और शुभकामनाएं कार्यक्रम में व्‍यक्‍त किये। कुलपति के रूप में अपने कार्यकाल के पांच वर्ष उन्‍होंने पूरे किये और उन्‍हें राष्‍ट्रपति महोदय के आदेश के तहत और तीन महीने का सेवाविस्‍तार दिया गया, इस उपलक्ष्‍य में विश्‍वविद्यालय के शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक कर्मचारी संघ के संयुक्‍त तत्‍वावधान में हबीब तनवीर सभागार में एक समारोह का आयोजन किया गया। इस समारोह में कुलपति राय ने विवि के विकास में योगदान को रेखांकित करते हुए सभी को धन्‍यवाद दिया।
वरिष्‍ठ प्रोफेसर मनोज कुमार की अध्‍यक्षता में आयोजित समारोह में प्रतिकुलपति प्रो. ए. अरविंदाक्षन, शैक्षणिक कर्मचारी संगठन के अध्‍यक्ष प्रो. संतोष भदौरिया, शिक्षकेतर कर्मचारी संघ के अध्‍यक्ष विजयपाल पांडे तथा महासचिव मनोज द्विवेदी मंचस्‍थ थे।
समारोह का ‘सृजन और निर्माण की सफलता के पांच वर्ष’ नाम दिया गया था। विवि की विकास यात्रा पर बोलते हुए कुलपति राय ने कहा सभी ने मिलकर काम करने से यह सफलता हासिल हुई है। अब यहां इमारतें बन गयी हैं अब हमें अकादमिक कंटेंट पर काम करना होगा। ज्ञान का उत्‍पादन कर ऐसे छात्र और अध्‍यापक तैयार करने होंगे जिसके ऊपर शैक्षणिक जगत में विवि का नाम फक्र से लिया जा सके। वर्धा शब्‍दकोश का जिक्र करते हुए उन्‍होंने कहा कि अब तक हिंदी में बने शब्‍दाकोशों से परे है यह शब्‍दकोश। इसके नियमित संस्‍करण प्रकाशित होने रहने पर यह एक दिन ऑक्‍सफोर्ड शब्‍दकोश की तरह विश्‍व में पहचाना जाएगा। उन्‍होंने कहा कि विश्‍वविद्यालय का समाजविज्ञान कोश भी बनकर तैयार है जिसे शीघ्र ही प्रकाशित किया जाएगा। ‘मसि कागद छुयों नहीं कलम गहृयों नहीं हाथ’ क‍बीर की पंक्ति का उल्‍लेख करते हुए उन्‍होंने कहा कि आज समय तकनीक आधारित हो गया है जिसका विस्‍तार सोशल मीडिया और इंटरनेट आदि पर कई रूपों में देखा जा सकता है, हमें चाहिए हिंदी को अधिक से अधिक तकनीक से जोडें। इसी दिशा में दुनिया में हिंदी का पहला स्‍पेल चेकर इस विश्‍वविद्यालय ने तैयार किया है। विवि की तकनीक आधारित और एक सफलता का उल्‍लेख करते हुए उन्‍होंने कहा कि हिंदीसमयडॉटकॉम अब विश्‍व के हिंदी प्रेमियों में पहचाने जाने लगा है।
मैंने अपने कार्यकाल में 17 देशों की यात्रा की और जहां गया वहां इसकी चर्चा सुनने को मिली। तकनीक से हमें मिली इस सफलता की वजह से अब हमें कोई इग्‍नोर नहीं कर सकता और हमारी उपस्थिति हर जगह दर्ज की जा रही है।
इस अवसर पर प्रो. अरविंदाक्षन ने कहा कि केवल इमारतों की वजह से ही नहीं बल्कि विवि के अंदर की गतिविधियों से भी दूरदर्शिता झलकती है। इलाहाबाद केंद्र के प्रभारी प्रो. संतोष भदौरिया ने कहा कि कुलपति राय ने अपने ऊर्जा भरे और रचनात्‍मक वर्ष विवि को दिये हैं। डॉ. एम. एल. कासारे ने कहा कि कुलपति राय ने सेक्‍युलर सोसायटी की कल्‍पना कर इसे वास्‍तव में उतारा है। अध्‍यक्षीय उदबोधन में प्रो. मनोज कुमार ने कहा कि कुलपति राय ने अपने सपनों को वर्धा की धरती पर उतारा है। उनके पांच वर्ष का सफर विचारधारा का सफर है। समारोह का संचालन सहायक प्रोफेसर तथा शैक्षणिक कर्मचारी संघटन के महासचिव निशीथ राय ने किया। आभार मनोज द्विवेदी ने माना। समारोह में अध्‍यापक, अधिकारी, कर्मी एवं छात्र-छात्राएं भारी संख्‍या में उपस्थित थे।

रविवार, 27 अक्टूबर 2013

हिंदी विवि में ‘वर्धा शब्दकोश’ और स्पेल चेकर ‘सक्षम’ का लोकार्पण



वर्धा शब्‍दकोश में हैं ज्ञान के विविध अनुशासनों के शब्‍द भंडार : प्रो.जैन
महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय की बहुआयामी परियोजना के तहत प्रकाशित वर्धा शब्‍दकोश का लोकार्पण हिंदी की सुप्रसिद्ध आलोचक प्रो.निर्मला जैन ने शनिवार को नागार्जुन सराय में आयोजित एक भव्‍य समारोह में किया। इस अवसर पर कुलपति विभूति नारायण राय, प्रतिकुलपति प्रो.ए.अरविंदाक्षन, वर्धा शब्‍दकोश के संपादक प्रो.आर.पी.सक्‍सेना मंचस्‍थ थे। समारोह में शमशेर रचनावली’, हिंदी स्‍पेल चेकर सॉफ्टवेयर सक्षम’, ब्‍लॉग समय डॉट कॉम एग्रीगेटर और बहुवचन पत्रिका के सिनेमा विशेषांक का भी लोकार्पण मंचस्‍थ अतिथियों द्वारा किया गया।
वर्धा शब्‍दकोश के संपादक प्रो.आर.पी.सक्‍सेना ने कहा कि कुलपति श्री राय का मिशन था कि यह एक मानक शब्‍दकोश के रूप में जाना जाए। इसे ध्‍यान में रखकर ही वर्धा शब्‍दकोश का निर्माण किया गया है। उन्‍होंने इस बात पर जोर दिया कि हिंदी शब्‍दकोशों में वर्तनी की एकरूपता का प्राय: अभाव है। वर्धा शब्‍दकोश इस दृष्टि से भी महत्‍वपूर्ण है कि इसमें वर्तनी की एकरूपता का ध्‍यान रखते हुए बहुधा प्रयुक्‍त शब्‍दों को समाहित किया गया है।
बतौर मुख्‍य अतिथि प्रो.निर्मला जैन ने कहा कि कुलपति राय अपना काम बड़ी तन्‍मयता के साथ करते हैं। वे जो ठान लेते हैं, उसे पूरा कर ही लेते हैं। उन्‍होंने कहा कि वर्धा शब्‍दकोश का प्रकाशन हिंदी जगत के लिए एक ऐतिहासिक महत्‍व रखता है। यह अपने ढंग का पहला हिंदी शब्‍दकोश है, जिसमें बोलचाल की भाषा में अक्‍सर प्रयुक्‍त होने वाले शब्‍दों को प्राथ‍मिकता के आधार पर शामिल किया गया है। इसमें ज्ञान के विविध अनुशासनों के शब्‍दों को लिया गया है।
विश्‍वविद्यालय के आवासीय लेखक प्रो.दूधनाथ सिंह ने शमशेर रचनावली के संदर्भ में बोलते हुए शमशेर की कविताओं के कालक्रमिक अध्‍ययन की कठिनाइयों का संकेत किया। उन्‍होंने शमशेर की कविताओं में विषयों के वैविध्‍य की चर्चा करते हुए उनके भाव सौंदर्य को रेखांकित किया। भाषा विद्यापीठ के एसोशिएट प्रोफेसर जगदीप सिंह दांगी ने कहा कि विश्‍वविद्यालय के अंतरराष्‍ट्रीय स्‍वरूप को ध्‍यान में रखकर पहली बार हिंदी वर्तनी परीक्षक सक्षम सॉफ्टवेयर का निर्माण किया गया है। इससे हिंदी में काम करने वाले लोगों को शुद्ध हिंदी लिखने में मदद मिलेगी। इस सॉफ्टवेयर में लगभग सत्‍तर हजार शब्‍द शामिल हैं, निकट भविष्‍य में इसमें शब्‍दों की संख्‍या दो लाख तक हो जाएगी। ब्‍लॉग समय डॉट कॉम के संदर्भ में लीला के प्रभारी गिरीश चंद्र पांडेय ने कहा कि यह हिंदी जगत के लिए तोहफे के समान है, इससे जुड़कर एक साथ कई ब्‍लॉगों की खबरें समेकित रूप में देखी जा सकेंगी।
अध्‍यक्षीय वक्‍तव्‍य में कुलपति विभूति नारायण राय ने कहा कि हिंदी भाषा के संवर्धन के लिए ज्ञान के उत्‍पादन में आज का दिन खास महत्‍व का होगा। आज ऐसे शब्‍दकोश और सॉफ्टवेयर का लोकार्पण हुआ है जो हिंदी जगत के लिए अद्वितीय है। उन्‍होंने कहा कि मेरे मन में बहुत दिनों से यह बात चल रही थी कि अंग्रेजी की तरह ही हिंदी में कोई स्‍पेल चेकर हो, जो गलत शब्‍द टाइप करते ही हमें सही शब्‍द बताए। उन्‍होंने इस बात पर अफसोस जाहिर किया कि हिंदी शब्‍दकोशों की हर वर्ष समीक्षा नहीं होती। इस कारण नए प्रचलित शब्‍दों को उनमें जगह नहीं मिल पाती है। हमारा यह प्रयास होना चाहिए कि अंग्रेजी के ऑक्‍सफोर्ड और कैम्ब्रिज शब्‍दकोशों की तरह हिंदी में वर्धा शब्‍दकोश का निरंतर संशोधन और प‍रिवर्धन होता रहे ताकि नए प्रचलित शब्‍दों और उनकी अर्थ छवियों से हिंदी के प्रयोगकर्ताओं को परिचित कराया जा सके। उन्‍होंने सक्षम सॉफ्टवेयर, ब्‍लॉगसमयडॉटकॉम की उपादेयता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज के तकनीक प्रधान युग में कोई भाषा तभी जीवित रहेगी जब वह तकनीक और प्रौद्योगिकी से जुड़कर चलेगी। इस दृष्टि से हिंदी के विकास के संदर्भ में इस बात की अनदेखी नहीं की जा सकती है। भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष पूरे होने पर कई पत्रिकाओं ने विशेषांक निकाले हैं। बहुवचन का यह सिनेमा विशेषांक बहुत ही अच्‍छा निकला है, कई अच्‍छे लेख सिनेमा के नए विमर्श के लिए उपयोगी साबित होंगे।       
साहित्‍य विभाग के अध्‍यक्ष प्रो.के.के.सिंह ने संचालन किया तथा प्रकाशन प्रभारी डॉ.बीरपाल सिंह ने आभार व्‍यक्‍त किया।