मंगलवार, 29 अक्टूबर 2013



वर्जनाओं के विरुद्ध थे राजेंद्र यादवः जगदीश्वर चतुर्वेदी

मीडिया मर्मज्ञ तथा कोलकाता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डा. जगदीश्वर चतुर्वेदी ने कहा है कि कथाकार राजेंद्र यादव वर्जनाओं के विरुद्ध थे। डा. चतुर्वेदी आज महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कोलकाता केंद्र द्वारा राजेंद्र यादव की याद में आयोजित शोक सभा में अध्यक्षीय वक्तव्य दे रहे थे। उन्होंने कहा कि समाज में जितनी वर्जनाएं व निषेध हैं, उन सबका राजेंद्र यादव में प्रतिरोध किया। इस मामले में उन्होंने कभी कोई समझौता नहीं किया। वे प्रतिवादी लेखक थे। उनका मूल्यांकन इस आधार पर नहीं होगा कि उन्हें लेकर कितने विवाद हुए, बल्कि उनका मूल्यांकन उनकी रचनाओं के आधार पर होगा। डा. चतुर्वेदी ने दिल्ली की मुलाकातों के अलावा कोलकाता में प्रभा खेतान के घर राजेंद्र यादव के साथ हुई मुलाकात के संस्मरण भी सुनाए।
डा. चतुर्वेदी ने कहा कि हंस के संपादक के रूप में राजेंद्र यादव ने हिंदी को एक अलग पहचान दी। अस्सी के बाद हिंदी के साहित्यिक परिदृश्य को उनकी संपादन कला ने बदल दिया। दलित व स्त्री विमर्श चलाया। संपादन करते समय कभी भी उन्होंने अपने राजनीतिक आग्रह को हावी नहीं होने दिया। संपादक के नाते उन्हें अपनी इच्छा के विरुद्ध लगातार निबंध लिखना पड़ा। पत्रकार रवि प्रकाश ने कहा कि राजेंद्र यादव ने ऐसे समय आखिरी सांस ली, जब उन्हें लेकर एक अवांछित विवाद चल रहा था। उन्होंने कहा कि राजेंद्र यादव ने सैकड़ों लेखक पैदा किए। वे अपनी रचनाओं के मार्फत चिर काल तक बचे रहेंगे। हिंदी विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर तथा कोलकाता केंद्र के प्रभारी डा. कृपाशंकर चौबे ने कहा कि यादव जी ने जिस गहरी संलग्नता से स्त्री विमर्श व दलित विमर्श चलाए, उसका जोड़ मिलना कठिन है। शोकसभा के आखिर में विश्वविद्यालय के सहायक क्षेत्रीय निदेशक प्रकाश त्रिपाठी समेत सभी उपस्थित लोगों ने दो मिनट मौन रखकर राजेंद्र यादव को श्रद्धांजलि अर्पित की।

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