निर्वचन और अनुवाद का अंतःसंबंध इस विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय
संगोष्ठी के पहले दिन उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता प्रो. अरविंदाक्षन ने की। मुख्य
अतिथि के रूप प्रो. के. एल. वर्मा निदेशक केंद्रीय हिंदी
निदेशालय दिल्ली उपस्थित थे। इस सत्र का संचालन डॉ. सिद्दीकी ने किया। संगोष्ठी का
विषय प्रवर्तन करते हुए डॉ. अन्नपूर्णा
सी. ने संगोष्ठी की विषय रूपरेखा पर प्रकाश डाला। अपने बीज वक्तव्य में प्रो.
देवराज ने कहा कि भारतीय संदर्भ में अनुवाद की प्रविधि को विकसित करना अधिक आवश्यक
है जिससे कि हम इस विधा को अधिक समृद्ध कर सकेंगे। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के एल
वर्मा ने केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा अनुवाद पर हो रहे विभिन्न योजनाओं की
जानकारी दी और कहा कि अनुवाद के संदर्भ में सभी भारतीय भाषाओं में कार्य होना
चाहिए। माननीय प्रतिकुलपती महोदय प्रो. अरविंदाक्षन ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में
निर्वचन पर आधारित प्रायोगिक कोर्स के निर्माण पर ज़ोर दिया जिससे कि भविष्य में
कुशल निर्वचक निर्माण हो सके। इस सत्र का धन्यवाद ज्ञापन दीपक पांडे ने किया।
प्रथम
सत्र में अनुवाद की आधुनातन स्थिति इस विषय पर हुए प्रथम सत्र की अध्यक्षता प्रो.
ललितांबा ने की। प्रमुख वक्ता के रूप डॉ. उषा उपाध्याय, प्रो. उमाशंकर उपाध्याय, डॉ. उत्तम पारेकर, डॉ. सी. अन्नपूर्णा उपस्थित थे। इस सत्र का संचालन डॉ. सिद्दीकी ने किया।
डॉ. उषा उपाध्याय ने गुजरात में साहित्यिक अनुवाद की स्थिति पर प्रकाश डाला। डॉ.
उत्तम पारेकर ने ‘Corelation between Interpretation and Translation’ इस विषय पर शोध प्रपत्र प्रस्तुत करते हुए मराठी कविता से अंग्रेजी अनुवाद
की समस्याओं पर अपने विचार व्यक्त किए। प्रो. उमाशंकर उपाध्याय ने भाषाविज्ञान, अनुवाद और निर्वचन के सैद्धांतिक पक्ष पर अपने विचार व्यक्त किए। डॉ. सी.
अन्नपूर्णा ने निर्वचन के सिद्धांतों की चर्चा अपने वक्तव्य में की। अपने
अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. ललितांबा ने अनुवाद के वैश्विक परिप्रेक्ष्य को श्रोताओं
के सामने रखा।
द्वितीय
सत्र की अध्यक्षता प्रो. शंकर बुंदेले और डॉ. दीपक पांडे ने की। वक्ता के रूप में
प्रो. ललितांबा, डॉ. विजय कुमार महंती,
डॉ. तुलसी रमण, डॉ. सिद्दीकी उपस्थित थे। इस सत्र का संचालन
डॉ. रामप्रकाश यादव ने किया। डॉ. दीपक ने अपने वक्तव्य में केंद्रीय हिंदी
निदेशालय द्वारा संचालित कार्यक्रमों से श्रोताओं को अवगत कराया। प्रो. ललितांबा
ने अनुवाद और निर्वचन में प्रतीक व्यवस्था की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। अनुवाद का
आधार निर्वचन होना चाहिए की नहीं इस विषय पर भी अपने विचार व्यक्त किए। डॉ. विजय
कुमार महंती ने अनुवाद के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर प्रकाश डाला। इसके साथ ही
अनुवाद की प्रक्रिया पर भी उन्होंने अपने विचार व्यक्त किए। डॉ. तुलसी रमण ने अपने
वक्तव्य में अनुवाद के ऐतिहासिक संदर्भ पर प्रकाश डालते हुए साहित्यिक अनुवाद के
विभिन्न आयामों तथा साहित्य, संस्कृति की शब्दावली के अर्थों
के ऐतिहासिक संदर्भों का अपने शोध प्रपत्र में विस्तृत विवेचन विश्लेषण किया। डॉ. सिद्दीकी ने अपने वक्तव्य में अनुवाद और
निर्वचन के अंतःसंबंधों पर अपने विचार व्यक्त किए। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में
प्रो. डॉ. शंकर बुंदेले ने सत्र में चर्चित विभिन्न विषयों पर संक्षित टिप्पणी
देते हुए अनुवाद और निर्वचन पर अपने विचार व्यक्त किए।
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