व्यावसायिकता हावी होने से सिनेमा कला को नुकसान : वी. एस. कुंडु
सिनेमा पर व्यवसाय हावी हुआ है। फिल्में कैसी बने यह बाजार तय करने
लगा है। सिनेमा में व्यावसायिकता आने से इस कला को नुकसान हो रहा है। उक्त
प्रतिपादन फिल्म प्रभाग के महानिदेशक वी.एस. कुंडु ने किया। वे महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय
में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, फिल्म प्रभाग, मुंबई के सहयोग से 15 ,16, 17 और 18 अक्टूबर
को आयोजित अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह के उदघाटन के अवसर पर बोल रहे थे। समारोह की
अध्यक्षता कुलपति विभूति नारायण राय ने की। इस अवसर पर कुलसचिव डॉ. कैलाश खामरे,
नाटयकला एवं फिल्म अध्ययन विभाग के अध्यक्ष प्रो. सुरेश शर्मा, अखिल भारतीय
वृत्तचित्र परिषद के महामंत्री संस्कार देसाई मंचस्थ थे।
महोत्सव का उदघाटन विश्वविद्यालय हबीब तनवीर सभागार में मंगलवार को
हुआ। कुंडु ने कहा कि सिनेमा के सौ साल में काफी तरक्की हुई है। इसका इस्तेमाल
शिक्षा और सामाजिक विकास के लिए भी होता रहा है। सिनेमा एक सामुदायिक कला है जो
नाटक और विज्ञान के मिलन से विकसित हुई है। यह माध्यम मनोरंजन के साथ संवेदनशील
भी है। वर्तमान समय में सिनेमा व्यावसायिक जाल में फंसा हुआ नजर आ रहा है। कला से
फिल्म को दूर किया जा रहा है। मौका देख कर फिल्में रिलीज की जा रही हैं। ऐसे में
दर्शकों का मोहभंग हो रहा है। उन्होंने कहा कि सिनेमा को समझने के लिए उसकी भाषा
को सीखना जरूरी होता है। सिनेमा की विषयवस्तु पर उन्होंने कहा कि आज टीवी के
कार्यक्रमों और सिनेमा की विषयवस्तु एकदम हलके दर्जे की होती है। विज्ञापनदाता
विषयवस्तु को तय करने लगे हैं। उन्होंने आवश्यकता जताई की नई पीढी को भाषा
सीखकर जज्बे के साथ इस सृजन धर्म को निभाना चाहिए।
अध्यक्षीय उदबोधन
में कुलपति विभूति नारायण राय ने कहा कि सिनेमा कैसा बने इसके लिए जनसाधारण की राय
लेनी चाहिए, परंतु ऐसे फैसले में जनता की कोई दखल नहीं होती। जनता ही ऐसा पसंद
करती है, यह दलिल देते हुए निर्माता हलके दर्जे की फिल्मे परोसते हैं। वे अवास्तविकता
को वास्तविक दिखाने की कोशिश करते हैं। इसके लिए हम ही जिम्मेदार हैं क्योंकि
हममें वह चेतना विकसित नहीं हो पायी, जिससे कि हम वैसी फिल्मों को नकार भी सकें।
उन्होंने माना कि दुनिया में हिंदी के प्रचार-प्रसार में हिंदी और बंबईया फिल्मों
ने महती भूमिका अदा की है। समारोह का प्रारंभ अतिथियों द्वारा दीपप्रज्ज्वलन एवं
छात्रों द्वारा कुलगीत प्रस्तुति से हुआ। कार्यक्रम का संचालन डॉ. ओमप्रकाश भारती
ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन कुलसचिव डॉ. कैलाश खामरे ने प्रस्तुत किया। उदघाटन
के बाद गांधीजी पर आधारित 6 फिल्में दिखाई गई। समारोह में श्रीमती पद्मा राय, कवि
विनोद कुमार शुक्ल, कथाकार दूधनाथ सिंह समेत विश्वविद्यालय के अध्यापक, अधिकारी
तथा शोधार्थी एवं विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। दोपहर के बाद ‘शिप ऑफ थीसियस’ प्रदर्शित की गई। समारोह
के दौरान बी.एस. कुंडु, फिल्मकार असीम सिन्हा एवं अखिल भारतीय वृत्तचित्र परिषद के
महामंत्री संस्कार देसाई ने मास्टर क्लास िलया तथा नई फिल्म संस्कृति के स्वरूप
पर प्रकाश डाला।
आज होगा प्रदर्शनी का उदघाटन - 16 अक्तूबर को सुबह दस बजे समता भवन में ‘भारतीय सिनेमा के सौ
साल’ विषय पर प्रदर्शनी आयोजित है। इसका उदघाटन विश्ववि़द्यालय के कुलपति
विभूति नारायण राय करेंगे। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार का फिल्म
प्रभाग, मुंबई अपने परिसर में एक बृहद् फिल्म संग्रहालय बनाने जा रहा है। यह
प्रदर्शनी उसकी पूर्व भूमिका है। प्रदर्शनी में 19वीं सदी के फिल्म कैमरे भी
प्रदर्शित किए हैं। समारोह के तीसरे दिन 17 अक्तूबर को 11 फिल्में दिखाई जाएंगी।
इनमें सत्यजित राय की चर्चित फिल्म ‘प्रतिद्वंद्वी’ भी शामिल है। तीसरे दिन 14 फिल्में दिखाई जाएंगी। इनमें श्याम
बेनेगल निर्देशित और असीम सिन्हा द्वारा संपादित फिल्म ‘जुबैदा’ भी है। फिल्म के
सहायक निर्देशक असीम सिन्हा फिल्म से जुड़े प्रश्नों का उत्तर देंगे। ‘जुबैदा’ समारोह की समापन फिल्म होगी। समापन समारोह की अध्यक्षता माननीय कुलपति
विभूति नारायण राय करेंगे। कथाकार दूधनाथ
सिंह और फिल्मकार संस्कार देसाई समापन व्याख्यान देंगे।
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