मंगलवार, 10 सितंबर 2013

आपने पर कतर दिए मेरे, अब मेरी कैद क्‍या रिहाई क्या

इलाहाबाद क्षेत्रीय केंद्र में जुटे ख्‍यातनाम कवि

सांझा संस्‍कृति के शहर इलाहाबाद में महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के क्षेत्रीय केंद्र इलाहाबाद के सत्‍य प्रकाश मिश्र सभागार में जब शहर के तमाम ख्‍यातनाम कवि और शायर काव्‍य पाठ के लिए जुटे तो शाम कवितामय हो गई। भीष्‍म साहनी और फिराक गोरखपुरी की स्‍मृति को समर्पित काव्‍य संध्‍या में सभी कवि और शायरों ने अपनी सर्वोत्‍तम कविताओं का पाठ किया। कार्यक्रम की शुरूआत भीष्‍म साहनी की प्रगतिशील चेतना और फिराक गोरखपुरी के सांझा संस्‍कृति के पैरोकार होने को रेखांकित करने से हुई। उनकी स्‍मृति को और जाग्रत करने के लिए प्रो. अली अहमद फातमी ने उनकी एक नज्‍म पढ़ी। युवा शायर और गुफ्तगू पत्रिका के संपादक इम्तियाज़ गाजी ने अपनी रचनाएं प्रस्‍तुत करते हुए सबका ध्‍यान आकृष्‍ट किया। उनकी पंक्तियां थी – जिसका दुश्‍मन नहीं कोई, उससे बच के रहा कीजिए। युवा कवियित्री संध्‍या नवोदिता ने अपनी दो विचारोत्‍तेजक कविताएं प्रस्‍तुत की। अपनी देश देश कविता में देश को संबोधित करते हुए उस पर आसन्‍न संकटों को मार्मिक ढ़ंग से प्रकट किया, उनकी दूसरी कविता देश के मुखिया की चुप्‍पी पर केंद्रित थी। युवा कवि अंशुल त्रिपाठी ने क्‍या कहूं उनसे’, यास्‍मीन’, पिघलती हुई दुनिया’, एक अदीब के घर शीर्षक कविताएं पढ़कर खूब प्रशंसा पाई। अनहद पत्रिका के संपादक युवा कवि संतोष चतुर्वेदी ने हमारी धरती’, जिंदगी’, अनोखा रंग है पानी का प्रस्‍तुत की। जिसमें उनकी पढ़ी गई कविता जो पानी पर केंद्रित थी खूब सराहा गया। वरिष्‍ठ नवगीतकार यश मालवीय ने अपनी रचनाओं से सबका ध्‍यान आकृष्‍ट किया। उन्‍होंने इन दिनों शीर्षक से रचना पढ़ी। उनकी पक्तियां थी- बॉंधता है घड़ी लेकिन बीमार है, यह हमारे दौर का फनकार है। वरिष्‍ठ कवि नंदल हितैषी ने सही जगह’, धार शीर्षक कविताएं पढ़ कर समाज पर करारा तंज कसा। उनकी रचनाओं में मारक व्‍यंग्य ध्‍वनियां थी। प्रसिद्ध गज़लकार एहतराम इसलाम ने खूब वाहवाही बटोरी उन्‍होंने अन्‍त में एक शेर पढ़ा आपने पर कतर दिए मेरे, अब मेरी कैद क्‍या, रिहाई क्‍या जिसे बार-बार श्रोताओं ने सुनना चाहा। पेशे से वकील और बुजुर्ग शायर एम.ए. कदीर ने भगदड़ नाम से नज़्म प्रस्‍तुत की। उन्‍होंने कहा- हालांकि आधियों ने मचाई उथल-पुथल, चीजें पहुंच गई अपने मकाम पर। वरिष्‍ठ शायर सुरेश कुमार शेष ने अपनी प्रस्‍तुति की शुरूआत में एक शेर कहा अब तो कदम-कदम पर यहां राम भक्‍त हैं, अब कोई देश भक्‍त रहे तो कहां रहे। जिसे श्रोताओं ने जमकर सराहा। गोष्‍ठी के अन्‍त में वरिष्‍ठ नाटककार एवं कवि अजित पुष्‍कल ने अपनी कविता पढ़ी जिसकी पक्तियां थी- कवि जब चुप रहता है सुलगता है सौरमंडल की आंच में तपता है शब्‍द।
गोष्‍ठी की अध्‍यक्षता उर्दू के ख्‍यातनाम आलोचक ए.ए. फातमी ने की। उन्‍होंने अपने अध्‍यक्षीय वक्‍तव्‍य में कहा कि गोष्‍ठी में पढ़ी गई सभी रचनाएं उम्‍दा थी, जो आज के हालात पर सोचने के लिए मजबूर करती हैं, प्रेरणा देती हैं। इस तरह के आयोजनों से हम अपने शहर की सांझा संस्‍कृति और शायर,कवि, अदीबों की रचनाओं से रूबरू होते हैं। आयोजन के लिए उन्‍होंने हिंदी विश्‍वविद्यालय के कुलपति श्री विभूति नारायण राय और केंद्र के प्रभारी प्रो. संतोष भदौरिया का शुक्रिया अदा किया। गोष्‍ठी की शुरूआत में सभी कवि शायर, अदीबों का परिचय प्रो. संतोष भदौरिया ने दिया। स्‍वागत सहायक क्षेत्रीय निदेशक डॉ. यशराज सिंह पाल और असरार गांधी ने किया।

काव्‍य पाठ के दौरान प्रमुख्‍य रूप से सुरेन्‍द्र राही, नीलम शंकर, अविनाश मिश्र, अनिल रंजन भौमिक, वीनस केसरी, शाहनवाज़ आलम, सम्‍पन्‍न श्रीवास्‍तव, सौरभ पाण्‍डेय, विपिन श्रीवास्‍तव, सत्‍येन्‍द्र सिंह, अमरेन्‍द्र, रोहित सिंह सहित शहर के तमाम काव्‍य प्रेमी उपस्थित थे।

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