सोमवार, 30 सितंबर 2013

लोकसंगीत की तान से सराबोर हुआ विश्वविद्यालय परिसर



लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने फैलाई लोक गीतों की सुगंध

लोकशैली, शास्त्रीयता और सुफियाना के मेल से अलग अंदाज में लोकसंगीत को प्रस्तुत कर देश-दुनिया में ख्याति बटोर चुकी मशहूर गायिका मालिनी अवस्थी ने महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय परिसर में 28 सितंबर की शाम ऐसे सुरों का जादू बिखेरा कि विश्‍वविद्यालय परिसर सराबोर हो गया।  एक से बढ़कर एक लोक गीत प्रस्‍तुत कर उन्‍होंने शनिवार की शाम को और भी संगीतमय बना ड़ाला। समाज से विलुप्‍त होती जा रही लोक संस्‍कृति और लोक गीतों से उन्‍होंने दर्शकों को रू-ब-रू भी कराया। उन्‍होंने निमियां की डाढ़ मैया, झुमका गिरा रे, रेलियां बैरन पिया को लिये जाए रे, संईया मिले लरिकइयां मैं का करूं, पान खाये संईया हमारों, काहे को ब्‍याही विदेश, आज तो जान पे बन आयी है, अल्‍ला ये अदा इन हसिनों की, हाय मैं तेरे कुर्बान, कजरारे-कजरारे, सजाना डोलिया लेके आजा, जैसे गीतों की प्रस्‍तुति ने श्रोताओं को झुमने पर मजबूर कर दिया। मिर्जापुर कइले गुलजार हो, कचौड़ी गली सुन कइल बलमू, पिया मेंहंदी मंगा द मोतीझिल से... जैसे कुछ मशहूर गीतों को अलहदा अंदाज में गाकर मालिनी ने लोगों को खूब नचाया। लोकराग-लोकरस के इस खास शाम में वर्धा के विभिन्‍न महाविद्यालयों के छात्र, लॉयस और उत्‍तम स्‍टील कंपनी के कर्मी, गणमान्‍य नागरिक तथा विश्‍वविद्यालय परिवार के सदस्‍यों की भी खास उपस्थिति रही।
     
कार्यक्रम के प्रारंभ में मालिनी अवस्‍थी और उनकी टीम का स्‍वागत कुलपति विभूति नारायण राय द्वारा चरखा देकर किया गया। मालिनी ने बिरहा, पचरा, धोबिया गीत, आल्हा आदि के गीतों को तो पेश किया ही उसी शिद्दत और समर्पण से कजरी, चैती, फगुआ गीत और शास्त्रीय शैली के लोकगीतों को भी प्रस्तुत किये। कार्यक्रम का संचालन एवं संयोजन संचार एवं मीडिया अध्‍ययन केंद्र के शोधार्थी धीरेंद्र कुमार राय ने किया। धन्‍यवाद ज्ञापन छात्र कल्‍याण अधिष्‍ठाता प्रो. हनुमान प्रसाद शुक्‍ल प्रस्‍तुत किया।

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