‘राज्यों का पुनर्गठन और मीडिया दृष्टि : तेलंगाना और विदर्भ के संदर्भ में’ विषय पर परिसंवाद में वक्ताओं ने रखे विचार
विकास के लिए छोटे राज्यों की है जरूरत
महात्मा गांधी
अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में ‘राज्यों का
पुनर्गठन और मीडिया दृष्टि : तेलंगाना और विदर्भ के संदर्भ में’ विषय पर मंगलवार को आयोजित परिसंवाद में एचएमटीवी,
द हंस इंडिया डेली, हैदराबाद के प्रधान संपादक के. रामचंद्र मूर्ति, लोकमत, नागपुर के प्रधान
संपादक सुरेश द्वादशीवार तथा हिंदुस्तान टाइम्स और इंडियन एक्सप्रेस के पूर्व
संपादक सी. के नायडू ने माना कि विकास के लिए छोटे राज्यों की आवश्यकता है। कार्यक्रम
की अध्यक्षता कुलपति विभूति नारायण राय ने की।
चर्चा
की शुरूआत करते हुए सी. के. नायडू ने कहा कि छोटे राज्यों की बात आजादी से पहले
यानी 1920 से ही चल रही है। तब भाषायी आधार पर राज्य बनाने की बात कहीं गई थी।
कुछ राज्य बने भी परंतु अलग राज्य बनने पर कितना विकास हुआ यह सोचने की बात है।
छोटे राज्य बनाने का समर्थन डॉ. आंबेडकर, कन्हैयालाल मुंशी आदि ने किया था। उन्होंने
भाषा के साथ-साथ आर्थिक, राजनैतिक आधार को भी देखे जाने की भूमिका ली थी। चर्चा की
कडी में प्रो. सुरेश द्वादशीवार ने छोटे राज्यों की संकल्पना से लेकर वे बनने के
बाद की स्थिति का विश्लेषण अपने वक्तव्य में किया। विदर्भ राज्य निर्मिति और
विकास का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि जेवीपी कमिशन ने विदर्भ की मांग मंजूर
की थी। इस कमिशन ने लोगों द्वारा स्वतंत्र राज्य बनाने की मांग से ही पहले राज्य
बनाने का संकेत दिया था। 1956 के राजनीतिक परिदृष्य का हवाला देते हुए द्वादशीवार
ने कहा कि 1956 का आंदोलन शक्तिशाली था। इस आंदोलन के चलते विदर्भ में 53 विधायक चुनकर आए थे। पंरतु बाद
में इस तरह का आंदोलन जारी नहीं रह सका। उन्होंने कहा कि पिछले 60 वर्ष में जिस
तरह महाराष्ट्र का विकास हुआ वैसा विदर्भ का नहीं हो सका। जहां एक तरफ मुंबई में
रहनेवालों की वार्षिक आय 94000 हैं वहीं गडचिरोली में रहनेवालों की आय 17000 रूपये
से भी कम है। उन्होंने विदर्भ में हो रही किसान आत्महत्याएं और मेलघाट में हो
रहे कुपोषण का मुद्दा उठाते हुए इसे राजनीति की असफलता करार दिया। छोटे राज्य के
समर्थन में उन्होंने कहा कि विदर्भ की आबादी 2 करोड है और दुनिया में 100 देश ऐसे
है जिनकी आबादी विदर्भ राज्य से भी कम है। 100 से अधिक देशों का भौगोलिक क्षेत्र
तो विदर्भ से भी कम है। उन्होंने माना कि विदर्भ शांति से ही बनेगा, बंदूक से
नहीं।
के.
रामचंद्र मूर्ति ने कहा कि तेलंगाना की समस्या विदर्भ जैसी ही है। उन्होंने कहा
कि आंध्र प्रदेश में सब कुछ हैदराबाद में ही केंद्रित हो गया है। इसी लिए वहा सब
लोग हैदराबाद को ही चाहते है। सीमांध्रा और तेलगांना के बीच भी हैदराबाद को लेकर खींचतान
जारी है। अध्यक्षीय उदबोधन में कुलपति विभूति नारायण राय ने कहा कि विश्वविद्यालय
में छोटे राज्यों के पुनर्गठन के बारे में हुई बहस एक स्वस्थ बहस रही। उन्होंने
माना कि जहां हम छोटे राज्यों की बात कर उसका समर्थन करते है वहीं छोटे राज्यों
के खराब उदाहरण भी हमारे सामने मौजूद है। उन्होंने कहा कि केंद्र को चाहिए की वह
राज्य पूनर्गठन आयोग बनाएं और हर राज्य के बारे में केस-टू-केस सोच कर वहां की
आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक पहलुओं को ध्यान में रखकर राज्य बनाने पर विचार
करें। चर्चा के दौरान सुनील घोडके, अर्चना त्रिपाठी, प्रेम कुमार तथा भारती देवी
आदि छात्र-छात्राओं ने सवाल उपस्थित किए जिसका समाधान मंचासीन वक्ताओं ने किया। प्रारंभ
में विभिन्न विभागों के छात्र-छात्राओं ने विश्वविद्यालय का कुलगीत प्रस्तुत
किया। कार्यक्रम का संचालन परिसंवाद के संयोजक तथा संचार एवं मीडिया अध्ययन
केंद्र के निदेशक प्रो. अनिल कुमार राय ने किया। आभार केंद्र के सहायक प्रोफेसर
डॉ. अख्तर आलम ने माना। इस अवसर पर जाने-माने लेखक से. रा. यात्री, नाटयकला एवं फिल्म
अध्ययन विभाग के अध्यक्ष प्रो. सुरेश शर्मा, सहायक प्रोफेसर धर्वेश कठेरिया, राजेश
लेहकपुरे, संदीप वर्मा, जनसंपर्क अधिकारी बी. एस. मिरगे समेत छात्र-छात्राएं बड़ी
संख्या में उपस्थित थे।
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