‘भय के देश में सूर्योदय
हो जाएं’
कविताओं ने लांघी
देश की सरहदें
टर्की ,एस्टोनिया के कवियों ने किया विभोर
अच्छे बच्चों की तलाश में
रहते हैं हम
और
मिलते ही ले आते हैं घर
अक्सर
30 रुपए महीने
और
दो वक्त खाने पर।
मासूम
बच्चों के प्रति हमारी संवेदनहीनता को उजागर करती वरिष्ठ कवि नोश सक्सेना के ‘अच्छे बच्चे’ कविता की इन
पंक्तियों ने श्रोताओं के ह्दय को छू लिया। ‘अंतरराष्ट्रीय कविता महोत्सव कृत्या 2013’ के दूसरे दिन
सोमवार को भी शब्दों ने देशों की सरहद लांघते हूए और दिलों को जोड़ दिया। महात्मा
गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय तथा कृत्या के संयुक्त तत्वावधान
में विश्वविद्यालय के हबीब तनवीर सभागृह में आयोजित कविता महोत्सव में चार सत्र
हुए जिनमें देश-विदेश के नामी कवि-कवयित्रियों ने विविध रसों की कविताओं का पाठ
किया।
कन्नड़ कवि
एच.एस.शिवप्रकाश ने कामना की –
भय के देश में
सूर्योदय हो जाएं।
धुंध भरी घाटियां
साफ हो जाएं।
दृष्टिकोण नियति देवता
अपनी दृष्टि वापस पाएं
और उन आंखों से
करूणा
की वर्षा हो जाएं।
तुर्की के कवि
मैतिन चंगेज ने प्यार के नर्मों-नाजुक अहसास को कुछ यूं बयां किया –
शायद यही इश्क होता है
तुम्हारे मुखड़े पर
थर्राता हुआ
गर्म खून दौड़ा चला जाता है।
इस्टोलिया की युवा
कवयित्री त्रिन सूमत्स का सच के बारे में कहना था –
सच
हरदम एक कदम पीछे रहता है
ताकि
हम बोल सके ज्यादा से ज्यादा
इस बारे में।
दिनेशकुमार शुक्ल
ने गीत और कविता सूनाकर खूब वाहवाही लूटी। बसंत त्रिपाठी के तेवर थे –
इस सदी को समझने के
लिए
नहीं चाहिए बहुत सिद्धांत
बहुत-बहुत भाष्य
इसे तो असंतोष से समझा जा
सकता है
जो भरता जा रहा सबके भीतर।
कविता महोत्सव में
उडिया कवयित्री प्रवासिनी महाखुद, हरप्रसाद दास, अंग्रेजी कवि सुदीप सेन, चिली के कवि सर्जियो इन्फेन्ते, इटली की कवयित्री
जिंगाने जिगोने, हिंदी
कवयित्री रति सक्सेना और हरदीप कौर ने भी अपनी कविताओं से भाव-विभोर किया। प्रास्ताविक
रति सक्सेना तथा संचालन अर्चना त्रिपाठी और ऊर्वशी ने किया। मूल कविता का अनुवाद
पठन आशुतोष चंदन, राजलक्ष्मी
शर्मा तथा रश्मि पटेल ने किया।
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महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय
तथा कृत्या के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित अंतरराष्ट्रीय कविता महोत्सव के दूसरे
दिन सोमवार को चिली, टर्की तथा एस्टोनिया के कवियों ने अपनी कविताओं
के माध्यम से श्रोताओं को भाव विभोर कर
दिया।
चिली
के मशहूर कवि,लेखक ओर स्वीडन के विश्वविद्यालय के अध्यापक
सर्जिओ इन्फेन्ते के ‘उपन्यास के बारे में’ कविता
सुनायी। उनके कविता के शब्द कुछ इस तरह थे..
रात
गहरी है, हर पसार में,
इसे नाम देने वाले शब्द, अलाव नहीं जगा पाते,
नायक की भों पर सितारा अपनहचानी राहों को मुश्किल से दिखा पा रहा है।
तिर्किन सूमेट की कविता इस प्रकार थी...
चुन सकती हूं
बिल्कुल तुम्हारी तरह
कि मुझे पीडि़त होना है या नहीं
गर तुमने चुन ही लिया है तो
तुम्हारे पास पूछने कुछ सवाल जरूर होंगे
और तुमसे पूछ़ने के लिए
औरों के पास होंगे
तुमसे कहीं अधिक
उनकी और एक कविता के भाव कुछ इस प्रकार थे..
संगीत भी कविता की तरह सच से बहुत दूर है
तात्पर्य दोनों बहुत करीब है
शायद दोनों सच हो भी नहीं सकते
सच हमेशा एक कदम पीछे रखता है
ताकि हम बोल सकें
ज्यादा से ज्यादा
इस बारे में
टर्की से आए कवि मेटिन चेंगिज ने अपनी विभिन्न
भाव प्रकट करने वाली कविताएं प्रस्तुत की। इनमें मेरा बेटा कविता में कहा...
मेरा बेटा काफी कुछ मेरे जैसा है
उसकी मां जमीन जैसी
मैं दूर हूं कैद में
उसकी मां ने उसे चलना सिखाया।
वहीं इश्क इस कविता में उन्होंने अपने को इस
लहजे में व्यक्त किया...
कुछ तो है तुम्हारे चेहरे पर अचानक एक आकाश साफ
हो रहा है
फिर से बारीश हो रही है,
दरख्तों पर, सड़कों पर
मैं सोचता हूं कुछ तो महक रहा गर्मी के गुलाब की
तरह
और ये, तुम्हारे मुखड़े के सूरज पर बढ़ता जाता है
हबीब तनवीर सभागार में कवि सुदीप सेन,
प्रवासिनी महाकुद, नरेश सक्सेना,
दिनेश कुमार शुक्ल, बसंत त्रिपाठी आदि कवियों ने अपनी कविताएं प्रस्तुत
की। कविता का अनुवाद कविता महोत्सव की निदेशक तथा कृत्या की संस्थापक रति सक्सेना
और राजलक्ष्मी
शर्मा ने किया। हिंदी में अनूदित कविता का पाठ नाट्यकला एवं फिल्म अध्ययन के
आशुतोष चंदन, रश्मि पटेल ने किया तथा संचालन उर्वशी और
अर्चना त्रिपाठी ने किया। समारोह में कुलपति विभूति नारायण राय, महोत्सव की निदेशक रति सक्सेना, संयोजन सचिव राकेश मिश्र, प्रो. सुरेश शर्मा, प्रो. सूरज पालीवाल सहित विभिन्न
भाषा-भाषी कवि, छात्र-छात्राएं एवं शोधार्थी बड़ी संख्या
में उपस्थित थे।
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