साहित्य जीवन से कट चुका है- रवींद्र कालिया
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी
विश्वविद्यालय के हिंदी का दूसरा समय कार्यक्रम के पहले दिन सआदत हसन मंटो कक्ष
में हिंदी कथा साहित्य पर हुई बहस पर अध्यक्षीय टिप्पणी करते हुए प्रख्यात
कथाशिल्पी और नया ज्ञानोदय के संपादक रवींद्र कालिया ने कहा कि हमारा समय को समझने
का दावा खोखला है। साहित्य जीवन से कट चुका है। स्त्री की स्थिति आज भी दारुण
है। हमारे लेखक किसानों की स्थिति से बेखबर हैं। समाज तेजी से बदला है। देखा जा
रहा है कि समाज की गति साहित्य से तेज है। पहले साहित्य समाज का दर्पण हुआ करता
था, आज ऐसा नहीं है।
साहित्य आज समाज के पीछे लंगड़ाता हुआ चल रहा है। उन्होंने कहा कि भाषा समय के
साथ बदलती है। हमें आज प्रेमचंद, फैज, गालिब की
भाषा प्रासंगिक लगती है। आज के कई रचनाकारों की भाषा खोखली हो चुकी है। उन्होंने
कहा कि चर्चा नई पीढ़ी के द्वारा लिखी जा रही रचनाओं पर केंद्रित होनी चाहिए थी।
अंत में उन्होंने कहा कि चीजें, वहीं चमकाई जाती हैं, जहां जंग लग जाता है।
प्रख्यात कथाकार और विश्वविद्यालय
में रायटर इन रजिडेंस संजीव ने नई पीढ़ी के लेखकों द्वारा उपन्यास न लिखे जाने का
मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि पिछले दिनों हिंदी के एक बड़े प्रकाशक द्वारा युवा
लेखकों के लिए हिंदी उपन्यास प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था, जिसमें उनको पुरस्कार
देने लायक उपन्यास नहीं मिले। उन्होंने कहा कि उपन्यास विधा नये लेखकों को
आकर्षित नहीं कर पा रही है। उन्होंने कहा कि आज युवा लेखकों के पास सरोकार नहीं
हैं और उनका पूरा ध्यान करिअर की ओर है।
कथाकार अखिलेश ने कहा कि यह एक साथ
निर्माण और ध्वंस का समय है। यह ऊपर से जितना चमकदार है, अंदर से वह उतना
धूसर, कालिख भरा
है। आज से पहले सरल यथार्थ का समय था। उन्होंने कहा कि आज बहुत बड़ा मध्यवर्ग
तैयार हुआ है। आज के कहानीकारों ने कहानी की भाषा और शिल्प को बदला है।
युवा लेखिका हुस्न तबस्सुम निहां ने
मुस्लिम समाज की महिला लेखकों को होने वाली पारिवारिक दिक्कतों का उल्लेख किया।
उन्होंने शिकायत के अंदाज में कहा कि साहित्यिक जगत मुस्लिम लेखिकाओं को नकार रहा
है। कथाकार जयनंदन ने कहा कि आज हिंदी में अच्छी कहानियां लिखी जा रही हैं। उन्होंने
जोर देकर कहा कि हिंदी में लिखकर रोटी नहीं कमाई जा सकती जबकि अंग्रेजी में ऐसा
संभव है।
वरिष्ठ कथाकार ममता कालिया ने कहा कि
कथा साहित्य का अगला समय वही है जो कहानियां हमें याद रह जाएं। प्रियदर्शन मालवीय
ने कहा कि हिंदी के कहानीकार जोखिम उठाना नहीं चाहते और बच-बचाकर चलते हैं। सच्चाई
यह है कि जोखिम न उठाना ही हिंदी कहानी की मुख्य समस्या है। हम जटिल प्रश्नों
से टकराना नहीं चाहते। चंदन पांडे ने अपने वक्तव्य में कहा कि जातिवाद के जहर पर
हिंदी में नगण्य लेखन मिलता है। भष्टाचार के नाम पर आज तक हमारे पास श्रीलाल शुक्ल
का रागदरबारी, विभूति
नारायण राय का तबादला ही है। आज हिंदी कथा साहित्य की पाठकों तक पहुंच बहुत
चिंतनीय है जबकि हिंदी पट्टी में 10-15 करोड़ की आबादी वाला मध्यवर्ग है।
सत्र के दौरान साठोत्तरी कहानी के प्रतिनिधि कथाकार
काशीनाथ सिंह मंच पर उपस्थित थे। कथा साहित्य पर हुई बहस में कथाकार जयनंदन, मोहम्मद
आरिफ, कैलाश
वनवासी, मनोज
रूपड़ा,
रमणिका गुप्ता, सृंजय,
शिवमूर्ति ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर सभागार में वरिष्ठ कथाकार
से.रा. यात्री, राजकिशोर, मनोज
मोहन सहित सैकड़ों रचनाकार, शिक्षक,
शोधार्थी और छात्र उपस्थित थे।
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