मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013


भाषा की जाति से हो रही है परेशानी- रघु ठाकुर

हिंदी विश्‍वविद्यालय में पांच दिवसीय हिंदी समय का समापन


महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय में विगत पांच दिनों से चल रहे ‘हिंदी का दूसरा समय’ कार्यक्रम का आज मंगलवार को समापन हुआ। इस अवसर पर मुख्‍य अतिथि के रूप में अपनी बात रखते हुए सुपरिचित समाजवादी चिंतक रघु ठाकुर ने कहा कि आज मूल्‍यों का संकट है। शिक्षा का बाजारीकरण हो गया है, पैसे का बोलबाला है। समाज में यह स्थिति पैदा हो गयी है कि आज कोई भी मां अपने बेटे को भगतसिंह और बेटी को लक्ष्‍मीबाई नहीं बनाना चाहती। उन्‍होंने कहा कि हमें जाति शब्‍द से परेशानी होती है चाहे वह भाषा की जाति हो या अन्‍य प्रकार की। इसे मिटाने ने के लिए हमें आज के समय में कबीर से सीख लेनी चाहिए। कार्यक्रम की अध्‍यक्षता विश्‍वविद्यालय के प्रतिकुल‍पति प्रो. ए. अरविंदाक्षन ने की। इस अवसर पर मंच पर कार्यक्रम के संयोजक राकेश मिश्र, प्रेम कुमार मणि, राजेन्‍द्र राजन, प्रो. रामशरण जोशी उपस्थित थे।
रघु ठाकुर ने कहा कि जिस समय लोहिया ने देश में आंदोलन को सम्‍भाला था उस समय जाति और लिंग के बंटवारे से मुक्ति पाने की बात की थी, क्‍या इससे बड़ी प्रगतिशिलता की कोई और बात हो सकती है। हिंदी भाषी राजनीति का उल्‍लेख करते हुए रघु ठाकुर ने कहा कि नवसामंतवाद, नव-ब्राम्‍हणवाद जैसी कई बीमारियां हिंदी राजनीति में पैदा हो गयी हैं, जिससे हमें बचाने का प्रयास करना होगा। प्रेम कुमार मणि ने कहा कि हिंदी पट्टी में गतिशिलता और राजनीति पर आकलन करनी ही रही होगी। हिंदी नवजागरण के बारे में उन्‍होंने कहा कि इसकी चर्चा सबसे पहले डॉ. राम विलास शर्मा के यहां मिलती है। उनका कहना था कि गांधी जी ने हिंदी पट्टी वालों से पूछा था कि आपके यहां कोई टैगोर क्‍यों नहीं हुआ। गांधी जी के इसी सवाल में हिंदी की गतिशीलता का सवाल भी छिपा हुआ है। हिंदी का दूसरा समय को लोकप्रियता और प्रगतिशीलता से जोड़ते हुए राजेन्‍द्र राजन ने भी अपनी बात डॉ. रामविलास शर्मा के हवाले से कही। डॉ. प्रेम सिंह ने जायसी की पक्तियों का उल्‍लेख करते हुए कहा कि प्रगतिशीलता ने दो तरह की राजनीति पैदा की है, यह कुछ को बाहर कर देती है और कुछ को अपने साथ शामिल कर लेती है। समापन समारोह की अध्‍यक्षता करते हुए प्रो. अरविंदाक्षन ने कहा कि इन पांच दिनों में आए विद्वानों के बीच से बहुत सार्थक विचार आए, यही नहीं हिंदी का दूसरा समय इस मामले में भी सार्थक कहा जाएगा कि इसमें देशभर के साहित्‍यकारों ने शिरकत कर इसे सफल बनाया। उन्‍होंने कहा कि इस कार्यक्रम में ऐसा कुछ है जो हमें आगे चलने के लिए प्रेरित कर रहा है। उन्‍होंने इच्‍छा जाहिर की कि तीसरे समय में हम आम लोगों के लिए हिंदी में सामग्री उपलब्‍ध कराने की कोशिश करें, ताकि उनको कुछ ऐसा दिया जा सके जिससे एक नई सोच और वैचारिकता विकसित हों।  कार्यक्रम के संयोजक राकेश मिश्र ने इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए देश भर से पहुंचे साहित्‍यकारों, पत्रकारों, आंदोलनकारियों और राजनीतिक चिंतकों के प्रति आभार व्‍यक्‍त किया। कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए विश्‍वविद्यालय के परिसर विकास विभाग, वित्‍त विभाग एवं अन्‍य समितियों ने पूरी जिम्‍मेदारी के साथ अपने कर्तव्‍य का निर्वहन किया। कार्यक्रम का संचालन संचार एवं मीडिया अध्‍ययन केंद्र के प्रो. रामशरण जोशी ने किया। समापन पर देश भर से आए बुद्धिजीवी, विश्‍वविद्यालय के छात्र, अध्‍यापक, कर्मचारी आदि उपस्थित थे। 

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