शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013


हिंदी विश्‍वविद्यालय में विश्‍व मातृभाषा दिवस पर संगोष्‍ठी का आयोजन
हाशिए की भाषाओं को बचाने की जरूरत – प्रो. देवराज
महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय में विश्‍व मातृभाषा दिवस (दि. 21 फरवरी) के उपलक्ष्‍य में ‘भाषाओं और भाषाई विविधता को बढ़ावा व सुरक्षा देने के लिए सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का उपयोग’ विषय पर आयोजित परिचर्चा में अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. देवराज ने कहा कि हमें हाशिए की भाषाओं को बचाने की आवश्‍यकता है। मातृभाषा को बचाना ही संस्‍कृति को बचाना है। मनुष्‍य को बचाने के लिए भाषा और बोलियों को जीवित रखना जरूरी है।
    विश्‍वविद्यालय के हबीब तनवीर सभागार में आयोजित परिचर्चा की अध्‍यक्षता मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता तथा संचार एवं मीडिया अध्‍ययन केंद्र के अध्‍यक्ष प्रो. अनिल कुमार राय अंकित ने की। इस अवसर पर प्रमुख वक्‍ता के रूप में हिंदी समयडॉटकॉम के प्रभारी राजकिशोर उपस्थित थे। प्रो. देवराज ने विभिन्‍न भाषाओं और बोलियों में लिखे गये साहित्‍य और इतिहास का संदर्भ लेते हुए अपनी बात रखी। उनका कहना था कि हमारा जीवन ही बोलियों में है। हमारी लोकसंपदा, लो‍कशिल्‍प, लोकसंगीत और लोकचिकित्‍सा भी उन बोलियों और भाषाओं में सुरक्षित है, जो आज के दौर में हाशिए पर हैं। सभी मा‍तृभाषाएं आपस में प्‍यार और एक दूसरे को जोड़ने की बात करती है। अपने सारगर्भित वक्‍तव्‍य में उन्‍होंने उत्‍तर पूर्व के राज्‍यों की भाषाओं एवं बोलियों पर विस्‍तार से प्रकाश डाला। मुख्‍य वक्‍ता के रूप में राजकिशोर ने कहा कि छोटे-छोटे समूहों को अपने निकट के बड़े समूहों में विलयित हो जाना नहीं आता होता, तो सभ्‍यता का विकास नहीं होता। बड़ी भाषाएं छोटी भाषाओं को नहीं मार सकती, जब तक छोटी भाषाएं खुद आत्‍महत्‍या के लिए तैयार न हो। उन्‍होंने तर्क दिया कि हर भाषा को संख्‍या बल चाहिए, लेकिन संख्‍या हमेशा शक्ति के रूप में परिवर्तित नहीं हो सकती। उन्‍होंने कहा कि हर भाषा का अपना अर्थशास्‍त्र होता है। जहां यह अर्थशास्‍त्र नहीं बचता वहां उस भाषा का शोकगीत लिखने की शुरूआत हो जाती है। अध्‍यक्षीय उदबोधन में प्रो. अनिल के राय अंकित ने कहा कि हमारी भाषाएं 8 वीं अनुसूची तक ही सीमित हैं। संख्‍या बल से भाषा नहीं बच सकती उसे शक्ति चाहिए। उन्‍होंने कहा कि राजनीतिकरण और बाजारीकरण के चलते बो‍ली, भाषाएं नहीं बच सकती। अंत में उन्‍होंने भाषाओं को बचाने के लिए वैज्ञानिक आधार बनाए जाने पर बल दिया। कार्यक्रम का संचालन एवं धन्‍यवाद ज्ञापन हिंदी अधिकारी राजेश यादव ने किया। अतिथिओं का स्‍वागत बहुवचन के संपादक अशोक मिश्र और असिस्‍टेंट प्रोफेसर अनिल कुमार दुबे ने किया। 

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