शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2013


हाशिए का समाज बने कविता का केन्‍द्र : बद्रीनारायण

वरिष्‍ठ कवि और विचारक बद्रीनरायण ने कहा कि हाशिए का समाज ही कविता का केन्‍द्र है। अपने उत्‍स से कटकर कोई भी कविता जीवित नहीं रह सकती। भूमंडलीकरण के दबावों के बीच लालचहीन हाशिए के समाज से आने वाले लोग ही कविता को उसकी अपनी वाजिब जगह दिलाएंगे। वे महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा द्वारा आयोजित हिंदी का दूसरा समय कार्यक्रम के अतंर्गत शुक्रवार को महादेवी वर्मा कक्ष में आयोजित कविता का दूसरा समय और सामर्थ्‍य नामक समानांतर सत्र में बीज वक्‍तव्‍य दे रहे थे। इस अवसर पर नई दिल्‍ली से आए वरिष्‍ठ कवि उपेन्‍द्र कुमार ने कहा कि कविता से पाठक दूर नहीं हुई है। यह भ्रम प्रकाशकों के द्वारा फैलाया जा रहा है। हर अच्‍छी कविता सुनने वाले के मन में एक कविता पैदा करतीहै। यह शाश्‍वत मानवीय संवेदनाओं की वाहक है। कोलकाता विश्‍वविद्यालय में हिंदी विभागाध्‍यक्ष प्रो. रामअहृलाद चौधरी ने कहा कि कविता परंपरा का पानी है।जिस तरह दरिया को नहीं बांटा जा सकता उसी तरह कविता भी नहीं बंट सकती। बंटवारे के बाद फैज अहमद फैज पाकिस्‍तान चले गए पर उनकी कविता का बंटवारा नहीं हो सका । कविता जख्‍मी लोगों को ताकत देती है। इस अवसर पर वरिष्‍ठ कवि विजय किशोर मानव ने कहा कि कविता समय के साथ बदलती है। हर युग की कविता अपने समय के साथ संवाद करती है। कवि मिथिलेश श्रीवास्‍तव ने काव्‍य छवियों के माध्‍यम से वर्तमान जीवन यथार्थ को बहुत ही संवेदनात्‍मक ठंग से प्रस्‍तुत किया। वरिष्‍ठ कवि प्रतापराव कदम ने कहा कि कविता को उसके युगीन परिवेश में देखने की जरूरत है। इस अवसर पर रवीन्‍द्र स्‍वपनिल प्रजापति , श्रीमती बृजबाला शर्मा और कुमार वीरेन्‍द्र ने भी अपने वक्‍तव्‍य रखे। अध्‍यक्षीय वक्‍तव्‍य देते हुए शेरजंग गर्ग ने कहा कि संवेदना और मानवीय सरोकारों से युक्‍त कविता ही शाश्‍वत रहती है। यह मनुष्‍य को नष्‍ट होने से बचाती है। यह मानवता की रक्षा के लिए बनी है। महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा में हिंदी विभागाध्‍यक्ष प्रो. के. के. सिंह ने कार्यक्रम का संचालन किया। 

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