दलित अब मुखर नायक : नामवर सिंह
हिंदी का दूसरा समय कार्यक्रम का उदघाटन
प्रख्यात आलोचक प्रो. नामवर सिंह ने कहा
कि जहां तक हिंदी के दूसरे समय का सवाल है समय को मैं एक वृहतर संदर्भ में देख रहा
हूं। एक समय पहले था, जब वर्ष 2009 में हिंदी समय का वृहद आयोजन किया गया था और अब 2013
में यह हिंदी का दूसरा समय है।
विश्वविद्यालय के कुलाधिपति प्रो. नामवर
सिंह ने यह बात आज यहां महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के हजारी
प्रसाद द्विवेदी सभागार में पांच दिनों तक चलने वाले हिंदी के साहित्यिक महाकुंभ
‘हिंदी का दूसरा समय’ के उद्घाटन अवसर पर कही।
उन्होंने कहा कि हिंदी साहित्य की शुरुआत 1000 ईस्वी में हुई। यह
समय आधुनिक भारतीय भाषाओं के निर्माण का समय रहा है। यह विश्वविद्यालय हिंदी की
दूसरी परंपरा का निर्माण कर रहा है। दूसरी सहस्राब्दी की शुरुआत लोक भाषाओं के उदय
और लोकसाहित्य के उदय के साथ हुई। उस समय के साहित्य के मूल में भक्ति की भावना
प्रधान थी। स्त्री को पहली बार वाणी साहित्य में मिली। उन्होंने कहा कि मीरा ने
राजघराना तक छोड़ दिया था। सिंह ने विशेष जोर देकर कहा कि दुनिया आबादी दलित और स्त्री
ने बड़ी संख्या में साहित्य की रचना की। यह दूसरा समय था जिसकी एक सहस्राब्दी
पार हुई। भारतीय इतिहास में यह दूसरी परंपरा कही जाएगी। आज स्थिति यह है कि स्त्री
लेखन को लेकर धड़ाधड़ पत्र-पत्रिकाओं के विशेषांक निकल रहे है। अब कई विश्वविद्यालयों
में स्त्री विमर्श के पाठयक्रम बन गए है। भीमराव आंबेडकर दलित को मूक नायक कहते
थे वह अब मुखर नायक हो गया है। दलितों में अभी पुरुष ही लिख रहे है। आने वाले समय
में यह सवाल भी उठने वाला है कि दलित अपनी स्त्रियों को कितनी आजादी देते है। उन्होंने
अपनी बात का समापन करते हुए कहा हिंदी के तीसरा समय का आयोजन मुझे उम्मीद है कि
विभूति नारायण राय ही करेंगे। भविष्य के कार्यक्रम के लिए यहां से एक नई दिशा तय
होगी। यह आयोजन वागविलास के लिए नहीं होगा।
वरिष्ठ
आलोचक प्रो. निर्मला जैन ने कहा कि यह आयोजन साहित्य और भाषा के महाकुंभ की तरह
है। उन्होंने कहा कि हिंदी की अवधारणा सिर्फ साहित्य के रूप में नहीं है, हिंदी
को सब की भाषा बनना है। उन्होंने उम्मीद जताई की इस आयोजन के माध्यम से हम अपनी
परंपरा, इतिहास, ताकत, कमजोरियों और भविष्य की चुनौतियों पर बात करेंगे। हिंदी का
दूसरा समय की अभिनव कल्पना करने वाले कथाकार और विश्वविद्यालय के कुलपति विभूति
नारायण राय ने अपनी अध्यक्षीय टिप्पणी में कहा कि हिंदी का दूसरा समय का आशय दूसरी
परंपरा की खोज है। हिंदी का दूसरा समय कार्यक्रम के संयोजक राकेश मिश्र ने संक्षेप
में आयोजन की रूपरेखा पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि पहले हिंदी समय के आयोजन
से लेकर पिछले साढ़े चार वर्षों के दौरान हिंदी साहित्य और विभिन्न अनुशासनों
में आए बदलाव को हम यहां अलग-अलग विषयों पर आयोजित सत्रों में समझने की कोशिश
करेंगे। इस अवसर पर जयप्रकाश धूमकेतु के संपादन में प्रकाशित अभिनव कदम के नए अंक
लोकार्पण मंच द्वारा किया गया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में हिंदी के कवि, कथाकार,
आलोचक और विश्वविद्यालय के कर्मचारी उपस्थित थे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें