ललित कला में सांस्कृतिक संकट -विजय शंकर
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में आयोजित हिंदी का
दूसरा समय कार्यक्रम के चौथे दिन सोमवार को हिंदी प्रदेश में ललित कला विषय पर
आयोजित सत्र की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध कला मर्मज्ञ विजयशंकर ने कहा कि
ललित कला की सारी विधाओं जैसे चित्रकारी, संगीत, थिएटर इत्यादि में सांस्कृतिक संकट का सवाल बड़ी गहरायी तक
पहुंच गया है। ललित कला के विकसित हो जाने के प्रति भी दुख प्रकट किया। इसका कारण
खोजते हुए उन्होंने कहा कि ललित कलाओं से संबंधित लोगों का जुड़ाव व्यक्तिगत स्तर
तक की रहता है। उक्त विषय के अगले वक्ता गोपाल शर्मा ने कहा कि 18 वी शताब्दी
से लेकर अब तक थिएटर में जो परिवर्तन हुए हैं वे कम है। उन्होंने ग्रीक थियेटर, चीनी थियेटर के बारे में विचार प्रस्तुत किया। साथ ही उन्होंने
मशहूर चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन से जुड़े संस्मरण को सुनाया। आनंद सिंह ने कहा
कि हिंदी प्रदेशों में खासकर मध्य प्रदेश में चित्रकला, मूर्तिकला की प्रदर्शनियाँ तो आयोजित होती है किंतु हिंदी
भाषी अन्य प्रदेशों जैसे कि उत्त्रप्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ आदि में इसका अभाव है। साथ ही रंगमंच पर अपनी
चिंता जताते हुए कहा कि हिंदी के मौलिक नाटकों का प्लेटफार्म हिंदी भाषी प्रदेशों
में कम है। इसके अलावा इन क्षेत्रों में संग्रहालय तथा नाटय समारोहों की भी कमी
दिखायी देती है। विपिन चौधरी ने कहा कि
ललित कला का विकास लोक संस्कृति से ही होता है। हरियाणा, मालवा, राजस्थान आदि के गावों एवं
स्थानीय परिवेश की संस्कृति को देखते हुए ललित कला के विकास को बताया। हिंदी
प्रदेश में संगीत , साहित्य आदि की चिंता करते हुए
सुलभा कोरे ने कहा कि आज परंपरागत चित्रकारी, पेंटिंग कम दिख रही है।
मराठी, बंगाली, गुजराती आदि क्षेत्रो में चित्रकारी की समृद्ध परपंरा है।
वहां तरह-तरह के आयोजन किये जाते हैं किन्तु हिंदी प्रदेश इससे अछूता होता जा रहा
है। हिंदी रंगमंच की पीड़ा को प्रस्तुत करते हुए राजकुमार कामले ने कहा कि हिंदी
में नये नाटक नहीं लिखे जा रहे है और जिन नाटकों का मंचन प्रमुख रूप से किया जा रहा
है। वे विदेशी अनूदीत कृति के है।
इसके
अलावा उन्होंने ललित कला के परिप्रेक्ष्य में सरकार की उदासीनता को भी बताया।
हिंदी प्रदेश में ललित कला में हो रही भारी गिरावट पर चिंता जताई। उन्होंने लोगों
के अपनी संस्कृति, परंपरा एवं भाषा, बोली
आदि से कटते जाने को रेखांकित किया। कार्यक्रम का संचालन राकेश श्रीमाल ने किया।
कार्यक्रम में छात्र- छात्राएं एवं शोधार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें