दलित साहित्य की हो रही है क्लोनिंग –प्रो. तुलसीराम
हिंदी विश्वविद्यालय में दलित अभिव्यक्ति पर विमर्श
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में हिंदी समय के दूसरे दिन `दलित अभिव्यक्ति` सत्र में सुविख्यात चिंतक प्रो. तुलसीराम ने
कहा कि दलित साहित्य में नेतृत्व का प्रश्न खड़ा हो गया है। भारतीय साहित्य
में दलित साहित्य के प्रभाव को देखते हुए कुछ लोग दलित साहित्य की क्लोनिंग कर
रहे हैं।
प्रो.
तुलसीराम ने डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर और दलित साहित्य को अपने भाषण के केंद्र में
रखते हुए कहा कि शिक्षित समाज की ही अभिव्यक्ति हो सकती है। ऐसा समाज अपना दुख, दर्द
विभिन्न मंचों से व्यक्त कर सकता है। मजदूर और गरीबों पर कोई ध्यान नहीं देता
क्योंकि वह अपने आपको अभिव्यक्त नहीं
कर सकता। समाज में स्थापित कुछ संगठन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को आघात पहुंचा
रहे हैं। इसे कल्चरल पोलिस की संज्ञा देते हुए उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में
अभिव्यक्ति की आजादी का सवाल हमारे सामने बड़ी चुनौती के रूप में उभर रहा है।
आशीष नंदी प्रकरण का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि नंदी का बयान एकदम गलत है
परंतु मुकदमें चलाकर ऐसे सवाल हल नहीं हो सकते। अच्छे साहित्य के लिए स्पर्धात्मक
अभिव्यक्त्िा की जरूरत है। आत्मकथा और दलित साहित्य के संबंध को रेखांकित करते
हुए उन्होंने कहा कि दलित आत्मकथा केवल दलित ही लिख सकता है। उन्होंने अपने वक्तव्य
में आर्यों का भारत आना, गांधी आंबेडकर संबंध, आंबेडकर कालमार्क्स विमर्श आदि पर
अपनी बात रखी। उन्होंने आंबेडकर साहित्य के अनुवादक चांगदेव खैरमोडे की पुस्तकों
का उल्लेख करते हुए मेनिफेस्टो ऑफ शेडयुल कास्ट, लैंड नेशनलाईजेशन,
लेबर पार्टी आदि की भी चर्चा की।
कृष्णा
किरवले ने महाराष्ट्र और दलित साहित्य का उल्लेख करते हुए कहा कि महाराष्ट्र
में दलित साहित्य की चौथी पीढ़ी चल रही है। इन तमाम पीढ़ियों के लेखन में दलित
साहित्य ही मुखर है। वर्तमान समय में दलित साहित्य को सम्यक साहित्य, आंबेडकरी सम्मेलन, विद्रोही सम्मेलन,
समतावादी सम्मेलन जैसे नाम दिये जा रहे हैं। यह साहित्य एक जाति का नहीं अपितु
सभी जातियों का एक संयुक्त समूह है। उन्होंने कहा कि दलित लेखन को नकारना पूरे
आंदोलन को नकारने जैसा है। लिखने वालों की
प्रेरणा आंबेडकर रहे हैं और यह साहित्य तलवार की बजाय लेखनी को हथियार मानता है।
स्वामी सहजानंद सरस्वती संग्रहालय में दलित अभिव्यक्ति पर हुई बहस में जे. वी.
पवार, जयप्रकाश कर्दम, कृष्णा किरवले, जयनंदन, प्रो. हेमलता माहेश्वर, डॉ. निशा
शेंडे आदि वक्ताओं ने भी अपने विचार रखे।
सत्र का संचालन सहायक प्रोफेसर संदीप सपकाले ने किया।
आप की सभी प्रस्तुति पढ़ता रहा हूँ पर टिप्पणी करने से बचता रहा हूँ किन्तु नेक काम को प्रोत्साहित न करना उसे हतोत्साहित करने के समान है. अतः ऐसे रचनात्मक कार्यों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
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