चेतना से कलम का सिपाही बनना है- वरवर राव
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में
आयोजित हिंदी के समय के दूसरे दिन अन्य जनांदोलन सत्र में विचारोत्तेजक बहस हुई।
प्रख्यात चिंतक वरवर राव ने कहा कि समाज और व्यवस्था को बदलने के लिए आंदोलन होने
चाहिए। उन्होंने कहा कि देश में महिला, आदिवासी और विस्थापितों के
आंदोलन चल रहे हैं। देश के कई हिस्सों में व्याप्त असमानता को भी बातचीत का विषय
बनाया जाना चाहिए। आंध्र और महाराष्ट्र के कई हिस्सों में काफी असमानता है।
उन्होंने कहा कि आज हम नंदीग्राम, सिंगुर, या छत्तीसगढ़ में हो रहे विस्थापन पर बात नहीं करते। आज भी
अस्पृश्यता और अछूत का दौर महाराष्ट्र में चल रहा है। राव ने लेखकों की भूमिका याद
दिलाते हुए कहा कि हमारा ध्यान इस पर होना चाहिए कि हमें पूंजी का दास बनना है या
चेतना से कलम का सिपाही बनना है। प्रगतिशील लेखक संघ की भूमिका आज समाप्त हो रही
है जो कि चिंतनीय है। जनांदोलन से जुडे अरविंद अंजुम ने अपनी बात झारखंड के संदर्भ
में रखी। उन्होंने कहा कि पहले हमारी धारणा थी कि विकास के लिए बलिदान जरूरी है।
उन्होंने एक महत्वपूर्ण बात कही कि जनांदोलन में विचारधारा का अभाव है और मुद्दे
हावी हैं इसलिए जरूरी है कि इसका वैचारिक आधार पुख्ता किया जाए। नंदीग्राम डायरी
के लेखक पुष्पराज ने कहा कि आज पूरे मीडिया में कहीं से भी एक संपादक नहीं कहता कि
आप जनांदोलन पर लिखिए। उन्होंने बताया कि पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम में संघर्षरत
लोग कहते थे- ‘जान देबो जमीन देबो ना’ मैं ऐसे लोगों की बात लिखने वाला पत्रकार हूं। आप राजसत्ता
के साथ रहना चाहते हैं या आम जनता के साथ यह खुद आपको तय करना होगा। उन्होंने कहा
कि जन आंदोलन की पत्रकारिता होनी चाहिए और कलम के सिपाहियों की फौज खड़ी होनी
चाहिए। युवा कथाकार सत्यानारायण पटेल ने कुछ अधिक तल्ख अंदाज में अपनी बात मध्य
प्रदेश में हो रहे जन आंदोलनों के संदर्भ में रखी। उन्होंने कहा कि चकाचौंध दुनिया
को एक अंधेरे भरी आबादी के गटर में धकेल रही है। इक्कीसवीं सदी का संघर्ष मनुष्यों
और पशुओं के बीच है। प्रो. रमेश दीक्षित ने कहा कि अभिव्यक्ति की जो आजादी भारत
में है वह किसी दूसरे देश में नहीं है। उन्होंने कहा कि परिवर्तन की संभावना
संसदीय लोकतंत्र सबसे अधिक है और हमें उसका भरसक इस्तेमाल करना चाहिए। आज
बाजारवादी शक्तियों का प्रतिरोध नहीं हो रहा है,
जिसका प्रतिरोध किये जाने की ज्यादा जरूरत है। उन्होंने कहा कि भारत अमेरिकी
पूंजीवाद का एजेंट नहीं है। कथाकार औऱ चिंतक प्रेमपाल शर्मा ने संक्षेप में कहा कि
भारत में पिछले दो वर्षों में जन आंदोलनों के लिए कुछ जमीन तैयार हुई है और
संभावना है कि यह सिलसिला आगे भी चलता रहेगा। आम जनता के लिए हरियाणा में साहित्य
उपक्रम प्रकाशन के माध्यम से साहित्य के लिए माहौल बनाने वाले विकास नारायण राय ने
कहा कि भाषा और साहित्य दो अलग-अलग चीजें हैं। उन्होंने कहा कि आज अच्छा साहित्य
लिखा जा रहा लेकिन वह वह लाखों पाठकों तक नहीं पहुंच पा रहा है। उन्होंने कहा कि
साहित्य में बहुत ताकत है बस जरूरत है उसको आम जनता तक पहुंचाने की। आलोचक खगेंद्र
ठाकुर ने सत्र में हुई बहस पर अपनी टिप्पणी की। सभागार में कुलपति विभूति नारायण
राय, कथाकार से.रा. यात्री, गंगा प्रसाद
विमल, संजीव, शिवमूर्ति, जयप्रकाश धूमकेतु, अशोक मिश्र, प्रकाश त्रिपाठी, स्वाधीन, मनोज मोहन, प्रो.के के सिंह,
अमरेंद्र कुमार शर्मा, सहित विश्वविद्यालय के शोधार्थी व
छात्र बड़ी संख्या में उपस्थित थे। कायर्क्रम का सफल संचालन वरिष्ठ पत्रकार व
चिंतक रामशरण जोशी ने किया।
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